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‘सरकार को न जिंदा होने की खबर है और न ही मरने की’

अजीबोगरीब स्थिति है। इराक के मोसुल में लापता 39 भारतीयों के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है लेकिन सरकार है कि अभी भी कह रही है कि उन्हें कुछ भी ठोस पता नही।
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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‘सरकार को न जिंदा होने की खबर है और न ही मरने की’

नई दिल्ली: विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इराक में लापता 39 भारतीयों के मसले पर कहा कि, फिलहाल सरकार को उनके न जिंदा होने की और न ही मरने की खबर है। लापता नागरिकों के बारे में ठोस प्रमाण के बिना उनकी फाइल बंद नहीं होगी। सुषमा बुधवार को लोकसभा में इस मसले पर विपक्ष के आरोपों का जवाब दे रहीं थीं। पिछले दो-तीन दिनों से विपक्ष इस मामले में सुषमा पर गलत बयानी का आरोप लगा रहा था।  

सरकार ने अपने नागरिकों को ढूंढने का भरपूर प्रयास 

उन्होंने कहा, हमारी सरकार ने अपने नागरिकों को ढूंढने का भरपूर प्रयास किया है। उन्होंने कहा 9 जुलाई को मोसुल के आजाद होने की घोषणा के साथ ही 10 जुलाई को हमारे विदेश राज्य मंत्री मोसुल पहुंचे। वापस आने पर वीके सिंह ने बताया था कि पकड़े जाने के बाद उन्हें अस्पताल में रखा गया। बाद में खेती के काम में लगा दिया गया। 2016 के बाद से हमारा उनसे कोई संपर्क नहीं है। हमारे पास जो जानकारी थी, उसे पीड़ित परिवारों के साथ साझा किया। मैं 12 बार पीड़ित परिवारों से मिली। बिना सबूत किसी को मृत घोषित करना पाप है और मैं ऐसा नहीं कर सकती। विपक्ष का मुझ पर गुमराह करने का आरोप सही नहीं है।

ठोस सबूत के बिना किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते: सुषमा

मोसुल की वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनज़र सुषमा ने कहा, जेल ढहने की तस्वीर का यह मतलब नहीं कि सभी लोग मार दिए गए हैं। उन्होंने उदाहरण स्वरुप, एक घटना का जिक्र किया कि मेजर धनसिंह थापा को पहले शहीद घोषित किया गया था पर बाद में वो जिंदा निकले। उन्होंने कहा, ठोस सबूत के बिना किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते। सिर्फ एक व्यक्ति कह रहा है वो मारे गए जबकि हमारे कई कई सूत्र कह रहे हैं वो जिंदा हैं।

उल्लेखनीय है कि 2014 में इराक के शहर मोसुल पर आईएस के कब्जे से पहले पंजाब के 39 लोग वहां एक कंस्ट्रकशन कंपनी में श्रमिक के तौर पर काम कर रहे थे। बाद में वे लापता हो गए।

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