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Shardiya Navratri: नवरात्रि के सातवें दिन इस तरह करें शक्ति की देवी कालरात्रि की पूजा, जानिये पूजा के विधि-विधान

देवी कालरात्रि का पूजन रात्रि के समय बहुत शुभ माना जाता है। पुराणों के अनुसार, शुंभ, निशुंभ के साथ रक्तबीज का विनाश करने के लिए देवी ने कालरात्रि का रूप धारण किया था। देवी कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण है, इसलिए इनको कालरात्रि कहा जाता है। डाइनामाइट न्यूज़ की इस रिपोर्ट में जानिये देवी कालरात्रि के बारे में
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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Shardiya Navratri: नवरात्रि के सातवें दिन इस तरह करें शक्ति की देवी कालरात्रि की पूजा, जानिये पूजा के विधि-विधान

नई दिल्ली: नवरात्रि के सातवें दिन शक्ति की देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। देवी कालरात्रि का पूजन रात्रि के समय बहुत शुभ माना जाता है। पुराणों के अनुसार, शुंभ, निशुंभ के साथ रक्तबीज का विनाश करने के लिए देवी ने कालरात्रि का रूप धारण किया था।  

डाइनामाइट न्यूज़ की इस रिपोर्ट में पढ़िये देवी मां कालरात्रि के बारे में

कालरात्रि नाम का महत्व

देवी कालरात्रि का रंग कृष्ण वर्ण है, इसलिए इनको कालरात्रि कहा जाता है। देवी कालरात्रि शत्रुओं में भय पैदा कर देने वाली देवी हैं। शत्रुओं का काल हैं। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी भी कहा जाता है।

शनि ग्रह पर नियंत्रण

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं अर्थात इनकी पूजा से शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है।
माता का यह स्वरूप उपासकों को काल से भी बचाता है अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। 

घने अंधकार की तरह

इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।

अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ

माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।

मां कालरात्रि की पूजा विधि 
मां कालरात्रि की पूजा शुरू करने से पहले उन्हें कुमकुम, लाल पुष्प और रोली लगाएं। इसके बाद माता को नींबुओं की माला और गुड़हल की फूल पहनाएं और फिर उनके आगे तेल का ही दीपक जलाएं। इस दिन मां को लाल फूल अर्पित करने का विधान है। साथ ही इस दिन माता की आरती के बाद सिद्ध कुंजिका स्तोत्र, काली पुराण, काली चालीसा, अर्गला स्तोत्रम, का पाठ करना चाहिए। माता को पूजा में गुड़ या गुड़ से बने व्यंजनों का भोग लगाना चाहिए।

मां कालरात्रि का मंत्र
1  जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि।
जय सार्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तुते॥

ॐ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।
एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ॐ।।

2  ॐ कालरात्र्यै नम:। एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि।
3  ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम: । 

मां कालरात्रि का मंदिर 

1) कालरात्रि-वाराणसी मंदिर काशी के कालिका गली में देवी कालरात्रि का प्राचीन मंदिर स्थापित है। काशी का यह अद्भुत व इकलौता मंदिर है जहां भगवान शंकर से रुष्ट होकर माता पार्वती आईं और उन्होंने सैकड़ों साल तक यहां कठोर तपस्या की। 

2) कालरात्रि माता की जो मन से पूजा अर्चना करता है, उसे मां के दिव्य स्वरूप में विकराल रौद्र रूप के साथ-साथ ममतामयी स्वरूप भी नजर आता है। भक्त जो भी मां से मांगते हैं, माता उसे पूर्ण करतीं हैं।

3) कालरात्रि मंदिर, डुमरी बुजुर्ग गांव ,नयागांव, सारण (बिहार) में छपरा-हाजीपुर सडक मार्ग पर दिघवारा- सोनपुर के बीच नयागांव के समीप डुमरी बुजुर्ग गांव मे 550 वर्ष पुराना मां कालरात्रि का प्राचीनतम मंदिर है। 

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