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यूपी निकाय चुनाव में ओपी राजभर को नहीं मिला किसी पार्टी का साथ, जानिये कैसे लड़ेगी सुभासपा

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी राज्य में होने वाले आगामी नगरीय निकाय चुनाव अकेले दम पर लड़ेगी। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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यूपी निकाय चुनाव में ओपी राजभर को नहीं मिला किसी पार्टी का साथ, जानिये कैसे लड़ेगी सुभासपा

लखनऊ: सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी राज्य में होने वाले आगामी नगरीय निकाय चुनाव अकेले दम पर लड़ेगी।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक राजभर ने पांच नगर निगमों के लिए महापौर चुनाव के प्रत्याशियों के नामों की घोषणा भी की। उन्होंने लखनऊ में संवाददाताओं से बातचीत में कहा, “हमारी पार्टी आगामी नगरीय निकाय चुनाव अकेले दम पर लड़ेगी। पहले चरण में पार्टी ने महापौर पद के चुनाव के लिए पांच उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है।”

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार राजभर ने बताया कि सुभासपा ने अलका पांडेय को लखनऊ से, महेश प्रजापति को प्रयागराज से, दयाराम भार्गव को गाजियाबाद से, रमेश राजभर को कानपुर से और नंद तिवारी को वाराणसी से महापौर चुनाव का उम्मीदवार बनाया है।

इसके अलावा, उन्होंने यह भी घोषणा की कि सुभासपा 117 नगर पंचायतों और 87 नगर पालिकाओं में चुनाव लड़ेगी।

राजभर ने कहा, “नगरीय निकाय चुनाव के लिए अन्य उम्मीदवारों के नामों की घोषणा आने वाले दिनों में की जाएगी। पार्टी चुनाव में जातिगत जनगणना, घरेलू बिजली बिल में छूट और जनता को अन्य सुविधाएं मुहैया कराने का मुद्दा उठाएगी।”

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव की अधिसूचना जारी करते हुए राज्य निर्वाचन आयुक्त मनोज कुमार ने रविवार को पत्रकारों को बताया था कि चुनाव दो चरणों में चार मई तथा 11 मई को होगा, जबकि मतों की गिनती 13 मई को की जाएगी।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) की सहयोगी रह चुकी सुभासपा पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों के कुछ महीनों बाद सपा से अलग हो गई थी।

सुभासपा ने 2022 में उत्तर प्रदेश की 17 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से छह सीटों पर उसे जीत हासिल हुई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन किया था, लेकिन दोनों दलों की राहें कुछ साल बाद जुदा हो गई थीं

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