Site icon Hindi Dynamite News

Geetanjali Shree Booker Prize: जानिये ‘बुकर’ पुरस्कार से सम्मानित गीतांजलि श्री का यूपी से ये खास रिश्ता

अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2022 जीतने वाली पहली भारतीय मशहूर लेखिका गीतांजलि श्री का उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से गहरा नाता रहा है पढ़िए पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
Published:
Geetanjali Shree Booker Prize: जानिये ‘बुकर’ पुरस्कार से सम्मानित गीतांजलि श्री का यूपी से ये खास रिश्ता

मैनपुरी: अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2022 जीतने वाली पहली भारतीय मशहूर लेखिका गीतांजलि श्री का उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से गहरा नाता रहा है ।

साहित्यकार विनोद माहेश्वरी ने शुक्रवार को कहा कि मैनपुरी की धरती पर जन्म लेने वाली गीतांजली श्री को पुरस्कार मिलने से मन प्रसन्न है। उनके स्वजन यहां कहां रहते थे, इसकी जानकारी नहीं है। लेखिका को बुकर पुरस्कार मिला, यह सुनकर अच्छा लगा है।

इतिहासकार एडवोकेट कृष्ण मिश्रा कहते है कि गीतांजली श्री के स्थानीय जुड़ाव से भले ही अनजान हैं। यहां पैदी हुई लेखिका को पुरस्कार मिला, यह सुनकर खुशी हो रही है। इससे साहित्यकार प्रेरित होंगे। कवि साहित्यकार संजय दुबे कहते है कि मैनपुरी से गीतांजली का नाता है, अब पुरस्कार मिला है। यह प्रेरणादाई है। इस पुरस्कार से मैनपुरी के साहित्यकार खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

साहित्यकार महालक्ष्मी सक्सेना मेधा कहती है कि मैनपुरी से गीतांजलि श्री का भले ही ज्यादा जुड़ाव नहीं रहा, उनको बुकर पुरस्कार मिला है, यह मैनपुरी के लिए गौरव की बात है। इस पुरस्कार से प्रेरणा मिलेगी। गीतांजलि श्री को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिलने पर मैनपुरी जिले में हर्ष का माहौल है । लेखिका गीतांजलि श्री जन्म 12 जून 1957 को मैनपुरी में हुआ था। लेखिका गीतांजलि श्री के पिता अनिरुद्व पांडेय सिविल सेवा में थे। उनके जन्म के दौरान उनकी तैनाती मैनपुरी में बतौर कलेक्टर के पद पर थी। बचपन के दो साल का समय उन्होंने मैनपुरी में गुजारा। इसके बाद उनके पिता का स्थानांतरण हो गया और वे फिर कभी लौटकर मैनपुरी नहीं आईं।

गीतांजलि श्री बताती हैं कि उन्हें तो मैनपुरी के संबंध में कुछ याद नहीं हैं, लेकिन उनकी मां श्री पांडेय ने उन्हें जो बताया वह आज भी याद है। वे कहती हैं कि मेरा सौभाग्य है कि मैनपुरी से मेरा जुड़ाव रहा है।

गौरतलब है कि टांब आफ सैंड विश्व के उन 13 पुस्तकों में शामिल थी, जिसे अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए लिस्ट में शामिल किया गया था। टांब आफ सैंड प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली किसी भी भारतीय भाषा की पहली किताब बन गई है।

गीतांजलि श्री ने तीन उपन्यास और कई कथा संग्रह लिखे हैं। उनकी कृतियों का अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, सर्बियन और कोरियन भाषाओं में अनुवाद हुआ है। वहीं गीतांजलि श्री अब दिल्ली में रहती हैं और उनकी उम्र 64 साल है। उनकी अनुवादक डेजी राकवेल एक पेंटर एवं लेखिका हैं, जो अमेरिका में रहती हैं। उन्होंने हिंदी और उर्दू की कई साहित्यिक कृतियों का अनुवाद किया है।

बुकर पुरस्कार इंग्लैंड द्वारा लेखन के क्षेत्र में दिया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार है। इसकी स्थापना सन 1969 में इंग्लैंड की बुकर मैकोनल कंपनी ने गई थी। इसमें 50 हजार पाउंड की राशि लेखक को दी जाती है। पुरस्कार के लिए पहले उपन्यासों की सूची तैयार की जाती है और फिर पुरस्कार वाले दिन की शाम के भोज में पुरस्कार विजेता की घोषणा की जाती है। पहला बुकर पुरस्कार अलबानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को मिला था। (वार्ता)

Exit mobile version