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कानपुर: अंधेरे में जी रहे कुम्हार के दीयों से रोशन होते हैं कई घर

दीपावली के पर्व पर रोशनी बिखेरने में दीये और कुम्हार की भूमिका को नकारना असंभव सा है। शहर में वर्षों पुराना एक ऐसा भी कुम्हार है, जिसके दीयों से शहर के कई घर वर्षों से दीपावली पर रोशन होते हैं, लेकिन कई कारणों से अंधेरे में जीने को मजबूर हैं।
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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कानपुर: अंधेरे में जी रहे कुम्हार के दीयों से रोशन होते हैं कई घर

कानपुर: पूरे देश मे दीपावली को लेकर जोर-शोर से तैयारियां शुरू हो गई है। दीपावली पर्व पर रोशनी बिखेरने में दीये और दीये बनाने वाले कुम्हार की भूमिका सराहनीय होती है। कानपुर शहर में एक ऐसा है भी कुम्हार है, जिसे दीपावली के बेसब्री से इंतजार रहता है। इसी कुम्हार के दीयों से शहर के कई घर दीपावली पर रोशन होते हैं।

अनवरगंज अफीम कोठी के पास रहने वाले दयाशंकर प्रजापति का पूरा परिवार 12 महीने दीया बनाने का काम करता है। उन्हें दीवाली का खास इंतज़ार रहता है। 44 वर्षीय दयाशंकर प्रजापति बचपन से ही दीया बनाने का काम करते आ रहे हैं। दयाशंकर को 2 साल पहले पैरालिसिस का अटैक पड़ चुका है, जिसके बाद से उन्हें चलने फिरने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। दयाशंकर के दिए बनाने की मदद के लिए उनका सारा परिवार उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करता है। दयाशंकर पत्नी सीतादेवी और 4 बच्चों के साथ रहते हैं।

 

बेटी बनना चाहती है टीचर

दया शंकर की बेटी रूबी जो कि दसवीं कक्षा की छात्रा है। पढ़ाई के साथ साथ अपने पिता का भी दिए बनवाने में सहयोग करती है।

डाइनामाइट न्यूज से बातचीत के दौरान रूबी ने बताया कि पिता जी चल-फिर नही पाते, हम उनकी मदद करते हैं। रूबी का कहना है वो बड़ा होकर पढ़ाना चाहती है। दयाशंकर की पत्नी सीता देवी ने बताया कि पति की बीमारी के बाद हम लोग जैसे-तैसे अपना पेट पालने के लिए 12 महीने दिए का काम करते हैं। दीपावली का इंतज़ार रहता है और 3 महीने पहले से ही दिए बनाने की तैयारी में जुट जाते हैं।
दयाशंकर ने बताया कि बचपन से ही हम दिए बनाते चले आ रहे हैं। जिस इलेक्ट्रिक चाक पर दिए बनाये जा रहे है, उसे कोलकाता से लाये हैं, जिसकी कीमत तब 7 हज़ार रुपये थी। 

 

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