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पूजास्थल कानून बनने के बाद काशी और मथुरा के मुद्दे नहीं उठाए जाने चाहिए

प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एएम समूह) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बुधवार को कहा कि ज्ञानवापी के मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिकाओं को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से खारिज करने को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जाएगी। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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पूजास्थल कानून बनने के बाद काशी और मथुरा के मुद्दे नहीं उठाए जाने चाहिए

नयी दिल्ली: प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एएम समूह) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बुधवार को कहा कि ज्ञानवापी के मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिकाओं को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से खारिज करने को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार मौलाना मदनी ने यहां संवादददाताओं से बातचीत में पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए कहा, “ज्ञानवापी मामले में (मस्जिद की) कमेटी उच्चतम न्यायालय जाने की तैयारी कर रही है और जहां तक मैं जानता हूं उन्होंने कुछ वकीलों से बातचीत भी कर ली है।”

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के स्वामित्व को लेकर वाराणसी की एक अदालत में लंबित मूल वाद की पोषणीयता और ज्ञानवापी परिसर का समग्र सर्वेक्षण कराने के निर्देश को चुनौती देने वाली सभी पांच याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दीं।

न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने सुनवाई के दौरान कहा कि वर्ष 1991 में वाराणसी की अदालत में दायर मूल वाद पोषणीय (सुनवाई योग्य) है और यह पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से निषिद्ध नहीं है।

मदनी ने कहा, “हम देश की सबसे बड़ी अदालत में अपना मामला रखेंगे और जो उसका फैसला आएगा उसे मानेंगे, क्योंकि उच्चतम न्यायालय हमारे देश में सबसे बड़ी अदालत है और उसके बाद कोई कानूनी रास्ता नहीं बचता।’’

उन्होंने कहा, “ पूजास्थल कानून बनने के बाद हमें उम्मीद थी कि अब किसी और मस्जिद का मसला नहीं उठेगा, लेकिन सांप्रदायिक सोच वाली ताकतों ने उन्हें खत्म नहीं होने दिया। ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की ईदगाह का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया।”

मदनी ने कहा, “मेरा मानना है कि जब 1991 का कानून बन चुका था तो बाबरी मस्जिद के अलावा किसी और मसले को नहीं उठाना चाहिए था और सांप्रदायिक ताकतें इस देश में कभी भी हिंदू-मुस्लिम एकता कायम नहीं होने देंगी।”

मदनी ने कहा कि सत्तारूढ़ दल में एक भी मंत्री मुसलमान नहीं है जो मुसलमानों की समस्याएं उनके सामने रख सके।

यह पूछे जाने पर कि क्या वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दारुल उलूम देवबंद के दौरे का न्यौता देंगे तो मदनी ने कहा, ‘‘दारुल उलूम किसी को आमंत्रित नहीं करता। जो लोग भी वहां गए, खुद गए। जो भी जाता है, उसका हम स्वागत करते हैं।’’

इज़राइल फलस्तीन मसले पर मदनी ने कहा कि फलस्तीन के लोगों को उनका आज़ाद मुल्क मिलना चाहिए जो इज़राइल के साथ-साथ रहे।

उन्होंने कहा कि गाजा में अब युद्ध विराम होना चाहिए।

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