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Madhya Pradesh: कूनो नेशनल पार्क से भटक कर माधव राष्ट्रीय उद्यान में पहुंचा चीता ‘ओबन’, पढ़िये पूरा अपडेट

मध्य प्रदेश के श्योपुर में कूनो नेशनल पार्क (केएनपी/कूनो) से भटकने के बाद नर चीता ‘ओबन’ पड़ोसी जिले शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उद्यान (एमएनपी) में पहुंच गया है।
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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Madhya Pradesh: कूनो नेशनल पार्क से भटक कर माधव राष्ट्रीय उद्यान में पहुंचा चीता ‘ओबन’, पढ़िये पूरा अपडेट

श्योपुर: मध्य प्रदेश के श्योपुर में कूनो नेशनल पार्क (केएनपी/कूनो) से भटकने के बाद नर चीता ‘ओबन’ पड़ोसी जिले शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उद्यान (एमएनपी) में पहुंच गया है।

गौरतलब है कि माधव राष्ट्रीय उद्यान में हाल ही में दो बाघों को छोड़ा गया है।

वन विभाग के एक अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि चीते का पड़ोसी जिले के जंगल में प्रवेश करना प्राकृतिक प्रक्रिया है और अभी तक उसके बचाव की कोई योजना नहीं है।

इस महीने में यह दूसरी बार है जब पिछले साल नामीबिया से कूनो में लाए गए आठ चीतों में से एक, पांच साल का ‘ओबन’ कूनो से भटक गया है। कूनो का मुख्य वन क्षेत्र 748 वर्ग किमी का है और इसके आसपास का बफर क्षेत्र 487 वर्ग किमी का है।

वन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, ‘ओबन’ रविवार से केएनपी से बाहर है। उन्होंने बताया कि इससे पहले, वह दो अप्रैल को भी कूनो से बाहर निकला था और चार दिन बाद शिवपुरी जिले के बैराड़ से उसे वापस लाया गया था।

कूनो के वन मंडल अधिकारी (डीएफओ) प्रकाश कुमार वर्मा ने कहा कि शिवपुरी जिले के माधव नेशनल पार्क (एमएनपी) में मंगलवार को ‘ओबन’ की हलचल दर्ज की गई।

गौरतलब है कि इस साल मार्च में, बाघों की आबादी को बढ़ाने और उनके संरक्षण के लक्ष्य से एमएनपी में एक बाघ और बाघिन को छोड़ा गया है।

यह पूछे जाने पर कि क्या एमएनपी में बाघों की मौजूदगी के कारण दोनों (बाघ और चीता) में संघर्ष हो सकता है, वर्मा ने कहा, '(माधव) राष्ट्रीय उद्यान में बाघ हैं, लेकिन इससे कोई समस्या नहीं होगी, क्योंकि सभी जानवर खतरे को देखते हुए अपनी रक्षा कर सकते हैं।'

गौरतलब है कि पिछले साल 17 सितंबर को नामीबिया से आठ चीते कूनो लाए गए थे वहीं इस साल 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को यहां लाया गया। इनमें से एक चीते की किडनी के समस्या के चलते मौत हो गई है।

इससे पहले, देश के आखिरी चीते की मृत्यु वर्तमान छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में 1947 में हुई थी और इस प्रजाति को 1952 में देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।

सरकार फिर से देश में चीतों की आबादी को बढ़ाने के प्रयास में है।

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