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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भारत विरोधी भावनाएं भड़काने के आरोपी की जमानत पर सुनाया ये फैसला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने तथा व्हाट्सऐप पर विभिन्न समूह बनाकर हथियारों के अधिग्रहण को बढ़ावा देने के आरोपी, लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य इनामुल हक की जमानत याचिका खारिज कर दी है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
Post Published By: डीएन ब्यूरो
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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भारत विरोधी भावनाएं भड़काने के आरोपी की जमानत पर सुनाया ये फैसला

प्रयागराज:  इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने तथा व्हाट्सऐप पर विभिन्न समूह बनाकर हथियारों के अधिग्रहण को बढ़ावा देने के आरोपी, लश्कर-ए-तैयबा के सदस्य इनामुल हक की जमानत याचिका खारिज कर दी है।

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार इनामुल हक के खिलाफ सहारनपुर के देवबंद पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 121-ए (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने) और 153-ए (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

प्राथमिकी के मुताबिक, कुछ सामग्री की बरामदगी के आधार पर यह पाया गया कि हक ने व्हाट्सऐप पर एक समूह बनाया जिसका उपयोग ‘जिहादी’ साहित्य के प्रसार के लिए किया जा रहा था। वह इस समूह का एडमिन था और इस पर जिहादी वीडियो अपलोड किया करता था।

हक ने यह बात स्वीकार की कि वह लश्कर-ए-तैयबा समूह से जुड़ा था और व्हाट्सऐप समूह चला रहा था। इस समूह के 181 सदस्य थे जिनमें पाकिस्तान के 170 सदस्य, अफगानिस्तान के तीन सदस्य और मलेशिया एवं बांग्लादेश का एक-एक सदस्य शामिल था। वह ऐसा ही एक अन्य ग्रुप भी चला रहा था जिससे जुड़ने के लिए वह लोगों को उकसाता था।

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने पिछले सप्ताह संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा, “मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं कि वह व्हाट्सऐप पर दो ग्रुप का एडमिन था जिसमें मुख्य रूप से विदेशी नागरिक सदस्य थे और ये ग्रुप कथित तौर पर हथियार जमा करने तथा धार्मिक पूर्वाग्रह को बढ़ावा दे रहा था।’’

अदालत ने कहा, “यद्यपि अनुच्छेद 19 के तहत धर्म का अनुसरण करने और उसका प्रचार-प्रसार करने की अनुमति दी जाती है, लेकिन प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों को देखते हुए और इन आरोपों की गंभीरता पर विचार करते हुए जमानत देने का कोई आधार नहीं है इसलिए यह जमानत याचिका खारिज की जाती है।’’

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