ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन को उच्च प्राथमिता देना, कड़ी निगरानी रखना जरूरी

डीएन ब्यूरो

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन के मामले पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा कि इससे निपटने के लिए इस विषय को उच्च प्राथमिकता देना और सख्त निगरानी करना आवश्यक है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन के मामले पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा कि इससे निपटने के लिए इस विषय को उच्च प्राथमिकता देना और सख्त निगरानी करना आवश्यक है।

एनजीटी ने कहा कि वर्तमान आदेश के दायरे में, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों द्वारा दाखिल किए गए आंकड़ों का संकलन और देश में अपशिष्ट प्रबंधन की पृष्ठभूमि की तुलना करने के अलावा आगे के कदमों के लिए निर्देश देना एवं विश्लेषण करना शामिल है।

एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए.के. गोयल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, ‘‘चूंकि अधिकरण ने सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को हर छह महीने में प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिन पर आवश्यकता पड़ने पर अधिकरण आगे विचार-विमर्श कर सकता है, ऐसे में सुनवाई फिलहाल के लिए समाप्त होती है। बशर्ते, आवश्यकता पड़ने पर आदेश के पालन की निगरानी की आवश्यकता न हो।’’

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल भी इस पीठ का हिस्सा थे।

पीठ ने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए इस विषय को उच्च प्राथमिकता देनी होगी, कड़ी निगरानी करनी होगी और केंद्र सरकार एवं राज्यों में उच्च स्तर की प्रशासनिक कवायद सुनिश्चित करनी होगी।

पीठ ने कहा कि इसके लिए विशेष निगरानी प्रकोष्ठ का गठन करके निर्धारित समय सीमा पर काम पूरा नहीं होने पर जवाबदेही तय की जानी होगी।

पीठ ने कहा कि ठोस कचरा प्रबंधन के मामले पर 1996 से 2014 तक उच्चतम न्यायालय एवं एनजीटी ने नजर रखी और हालांकि वैधानिक नियम एवं नीतियां मौजूद थीं, लेकिन हकीकत में पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए।

उसने कहा, ‘‘कचरे के ढेर मीथेन और अन्य गैस को पैदा कर रहे हैं, जो बीमारियों और लोगों की मौत होने का कारण हैं ... हमारा निष्कर्ष यह है कि कानून बनाना और अदालतों/न्यायाधिकरणों द्वारा निर्देश देना सुशासन का विकल्प नहीं हैं और जब तक प्रशासन इस विषय को उच्च प्राथमिकता नहीं देता, तब तक अवांछनीय स्थितियों को दूर नहीं किया जा सकता।’’

पीठ ने कहा कि लोगों के साथ मिलकर काम करना और मानसिकता में बदलाव समय की मांग है।

तरल अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में पीठ ने कहा कि नालों, नदियों और जल निकायों में मल-जल को बहाए जाने से पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान होने के अलावा सभी जीवित प्राणियों के लिए पेयजल की कमी हो जाती है।

पीठ ने कहा, ‘‘(गंगा और यमुना सहित) बड़ी संख्या में नदियों, झीलों, तटीय क्षेत्रों और अन्य जल निकायों का पानी इस तरह से प्रदूषित हो रहा है। इससे युद्धस्तर पर निपटने की आवश्यकता है। इसके लिए जहां व्यवहार्य हो, वहां स्वदेशी प्रौद्योगिकी या इसी प्रकार की अन्य प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की जरूरत है, लेकिन मलजल की एक भी बूंद पेयजल में मिलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।’’










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