कानून प्रवर्तन एजेंसियां सरहदों को बाधा न माने: अमित शाह
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अपराध और अपराधी भौगोलिक सीमाओं का सम्मान नहीं करते हैं। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नयी दिल्ली: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि अपराध और अपराधी भौगोलिक सीमाओं का सम्मान नहीं करते हैं, इसलिए विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों को किसी भी सीमा को बाधा न मानकर आपराधिक मामलों को सुलझाने के लिए इन सीमाओं को अहम बिंदु के रूप में देखना चाहिए।
शाह ने यहां ‘‘राष्ट्रमंडल कानूनी शिक्षा संघ (सीएलईए)- राष्ट्रमंडल अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल सम्मेलन’’ (सीएएसजीसी) को संबोधित करते हुए कहा कि जब हाल ही में बनाए गए तीन आपराधिक न्याय कानून लागू हो जाएंगे, तो प्राथमिकी दर्ज होने के तीन साल के भीतर ही लोगों को उच्च न्यायालय के स्तर तक न्याय मिल सकता है।
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डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के अनुसार उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब वाणिज्य और अपराध के मामलों में भौगोलिक सीमाओं का कोई मतलब नहीं रह गया है।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि न्याय मिलने की प्रक्रिया के लिए सीमा पार चुनौतियां मौजूद हैं, लेकिन वाणिज्य, संचार, व्यापार तथा अपराध के लिए कोई सीमा नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘अपराध और अपराधी भौगोलिक सीमाओं का सम्मान नहीं करते हैं। इसलिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को भौगोलिक सीमाओं को बाधा नहीं मानना चाहिए। भविष्य में आपराधिक मामलों के समाधान के लिए भौगोलिक सीमाएं एक अहम बिंदु होनी चाहिए।’’
शाह ने कहा कि भौगोलिक सीमाएं न तो व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं और न ही अपराध के लिए।
उन्होंने कहा, ‘‘व्यापार और अपराध दोनों ही सीमाहीन होते जा रहे हैं और ऐसे समय में व्यापार विवादों और अपराध से सीमाहीन तरीके से निपटने के लिए हमें कुछ नयी व्यवस्था और परंपरा शुरू करनी होगी।’’
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शाह ने कहा कि सरकारों को इस दिशा में काम करने की जरूरत है, क्योंकि साइबर धोखाधड़ी के छोटे मामलों से लेकर वैश्विक संगठित अपराध तक, स्थानीय विवाद से लेकर सीमा पार विवाद तक, स्थानीय अपराध से लेकर आतंकवाद तक, सभी में कुछ न कुछ संबंध हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी देश दूसरे देशों के कानूनों के साथ समन्वय बनाए बिना सुरक्षित नहीं रह सकता।
उन्होंने भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का जिक्र करते हुए कहा कि तीन नए कानूनों के पूर्ण कार्यान्वयन के बाद भारत में दुनिया की सबसे आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली होगी।
ये कानून क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। गृहमंत्री ने कहा कि सरकार ने इस मॉडल पर काम किया है कि न्याय के अनिवार्य रूप से तीन पहलू होने चाहिए- सुलभ, किफायती और जवाबदेही।
शाह ने कहा कि न्याय की पूरी प्रणाली में 3ए यानी ‘एक्सेसिबल, अफॉर्डेबल और अकाउंटेबल’ बनाना बहुत जरूरी है। इन तीनों के लिए प्रौद्योगिकी का अधिकतम प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नए आपराधिक न्याय प्रणाली के तीनों कानूनों में प्रौद्योगिकी को भी स्थान दिया गया है और फॉरेंसिक को भी जगह दी गई है।
साक्ष्य आधारित अभियोजन को बढ़ावा देने के लिए हमने सात साल और उससे ज्यादा की सजा के प्रावधान वाले मामलों की जांच के लिए वैज्ञानिक अधिकारी का दौरा अनिवार्य किया है।
शाह ने कहा, ‘‘मैं सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि इन तीन कानूनों के लागू होने के बाद देश में दर्ज किसी भी प्राथमिकी के मामले में उच्च न्यायालय के स्तर तक, तीन साल के भीतर न्याय होगा।’’
उन्होंने कहा कि सम्मेलन का दायरा सिर्फ अदालतों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका संबंध राष्ट्रमंडल देशों और एक तरह से पूरी दुनिया के आम लोगों से है।
शाह ने कहा कि हर देश के संविधान में न्याय और अधिकार एक सामान्य कारक हैं और यह न्यायिक प्रणाली ही है जो उन अवधारणाओं को जमीन पर साकार करने और अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुंचाने का काम करती है।
उन्होंने कहा कि छोटे स्तर की साइबर धोखाधड़ी का वैश्विक संगठित अपराध से संबंध बहुत गहरा होता जा रहा है।
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गृहमंत्री ने कहा, ‘‘स्थानीय विवादों से लेकर सीमा पार विवादों तक रिश्ता गहरा होता जा रहा है। छोटी-मोटी चोरी से लेकर बैंकिंग प्रणाली और डेटा को हैक करने तक की पूरी प्रक्रिया पूरी हो गई है और स्थानीय अपराध के साथ अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का संपर्क भी गहरा होता जा रहा है।’’
उन्होंने कहा कि अपराध और अपराधी सीमाओं को नहीं पहचानते, इसलिए उन पर नियंत्रण पाने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को मजबूत करना होगा, अन्यथा अनियंत्रित अपराध व्यापार को कठिन बना देगा।
शाह ने कहा कि कई मुद्दों पर बहुत काम किया गया है, जैसे विनिमय दर में उतार-चढ़ाव, व्यापार-सुरक्षा संधियां, अंतरराष्ट्रीय मानकों और विनियमन शिकायतों तथा अनुबंध और विवाद समाधान से संबंधित मुद्दे।
उन्होंने कहा कि अभी भी कई मुद्दे हैं जहां अपराध पर नियंत्रण के लिए काम करने की जरुरत है।
गृहमंत्री ने प्रौद्योगिकी के उपयोग को इस हद तक बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया कि अगले 100 वर्षों में प्रौद्योगिकी में होने वाले सभी परिवर्तनों को इसमें शामिल किया जा सके।
उन्होंने कहा कि बदलते परिदृश्य के कारण न्यायपालिका को भी बदलना होगा और सीमा पार के मामलों को देखते हुए न्याय की पूरी प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल अपनाना होगा।
उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रणाली में कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित अनुवाद प्रक्रिया से बहुत लाभ हो सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम 19वीं सदी के कानूनों से 21वीं सदी में न्याय नहीं दे सकते।’’