महराजगंज : हर साल बदल जाती है किताबें, अभिभावक बेहाल, प्रशासन मौन

महराजगंज में चल रहे कुछ निजी स्कूलों में मनमाने ढंग से शिक्षण शुल्क वसूला जा रहा है। इससे गरीब अभिभावक परेशान हैं। डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट में पढ़ें पूरी डिटेल..

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 13 April 2019, 11:43 AM IST
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महराजगंज: जिले में चल रहे कुछ निजी स्कूलों में मनमाने ढंग से शिक्षण शुल्क वसूला जा रहा है। इससे गरीब अभिभावक परेशान हैं। 

निजी स्‍कूलों में शिक्षा के नाम पर लूट

नए शिक्षण सत्र के लिए शुरुआत हो चुकी है। प्रवेश शुरू होते ही जिले के प्राइवेट स्कूलों में किताब, फीस और तमाम अन्‍य तरीकों से अभिभावकों को जमकर चूना लगाया जा रहा हैं। 
सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों में वह पुस्तकें पढ़ा सकते थे जिस विषयवस्तु को प्रशिक्षित शिक्षक और एनसीआरटी जैसी संस्था प्रकाशित कराती है। लेकिन कमीशन के चक्कर में नियमों का खुलेआम माहौल उड़ाते हुए निजी प्रकाशकों की ही किताबें लेने के लिए छात्रों को मजबूर किया जा रहा है। इनकी कीमत लगभग पांच से सात हजार रुपये तक होती है। साथ ही अन्‍य सामानों पर पर दो चार हजार खर्च हो जाते हैं। मध्‍यम और निम्‍न मध्‍यम आय वर्ग के लोग यह रकम चुकाने में असमर्थ होने पर कर्ज आदि भी ले लेते हैं। 

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ब्रांड को लेकर भी बच्‍चों को पड़ती है डांट

शिक्षा के नाम पर लूट का आलम यह है कि छात्रों के प्रयोग में आने वाली स्टेशनरी की भी लंबी लंबी सूचियां बनी हुई हैं। वहीं यदि आप सूची पर लिखे ब्रांड से अलग सामान खरीद कर देते हैं तो बच्‍चों को डांट सुननी पड़ती हैं। हालांकि स्‍कूल अभिभावकों को सूची देकर मौखिक तौर बता देते हैं कि किस दुकान से किताबें ख़रीदनी हैं।

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क्‍या कहते हैं जनपद के लोग

नगर के निजी विद्यालयों के मनमानी से परेशान बीसोखोर के अभिभावक संजय शर्मा और सिसवा के उत्पल बिस्वास,भोला यादव,तारकेश्वर वर्मा आदि ने बताया कि पहले साल दर साल एक ही किताबें लगती थी। परिवार के कई बच्चे उसे ही पढ़कर अगली कक्षाओं में चले जाते थे। लेकिन अब इतनी महंगी किताबों की विषयवस्तु प्रत्येक वर्ष प्रचलन से बाहर हो जाती है और अभिभावक जेब कटवाने को मजबूर हो जाते हैं।

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1970  के दशक से शुरू हुए निजी स्‍कूल

गौरतलब है कि 1970 के दशक से निजी स्कूलों को बढ़ावा देने की शुरुआत हुई। 1986 में नई शिक्षा नीति लागू की गई। प्राइवेट स्कूलों को खोलने की मंजूरी इस शर्त पर मिली की वह गरीब बच्चों को निश्शुल्क प्रवेश देंगे, पर निशुल्क प्रवेश को कौन कहे, बल्कि उनसे मनमानी कीमत वसूली जा रही है।

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