‘महराजगंज-पाप-कांड’ के तीन साल पूरे, देखिये भ्रष्टाचारी आईएएस अमरनाथ उपाध्याय का 13 सितंबर 2019 को किया गया ‘महा-पाप’

डीएन ब्यूरो

ठीक तीन साल पहले 13 सितंबर 2019 को उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद मुख्यालय पर एक ‘महा-पाप’ किया गया था। जिलाधिकारी जैसे बेहद संवेदनशील पद पर बैठे एक महाभ्रष्ट प्रमोटेड आईएएस ने जिस ‘पाप-कांड’ को अंजाम दिया था, उसकी लपटें आज भी सुलग रही हैं और अब दोषी अमरनाथ खुद उन लपटों की आग में बुरी तरह झुलस रहे हैं। देखिये क्या हुआ था उस दिन। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:

13 सितंबर 2019 को डीएम ने दिखायी कायरता, धोखे से गिरवाया पैतृक मकान
13 सितंबर 2019 को डीएम ने दिखायी कायरता, धोखे से गिरवाया पैतृक मकान


महराजगंज: तारीख- 13 सितंबर 2019, दिन- शुक्रवार, समय- साढ़े तीन बजे, स्थान- महराजगंज का मुख्य चौराहा। ठीक तीन साल पहले यहां एक ऐसे ‘पाप-कांड’ को अंजाम दिया गया था जिसे आज लोग ‘महराजगंज-पाप-कांड’ के नाम से जानते हैं। डाइनामाइट न्यूज़ की इस एक्सक्लूसिव खबर में हम आपको उस बर्बर अत्याचार की एक-एक दास्तां को सिलसिलेवार तरीके से बता रहे हैं कि किस तरह का गुनाह तबके जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय ने किया था और अब 36 महीने से कैसे वे ‘निलंबन-सजा-जांच’ में उलझ गुमनामी भरी जिंदगी काट रहे हैं। 

देश के जाने-माने पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश का दो-मंजिला पैतृक मकान उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के मुख्य चौराहे पर स्थित है। इस पैतृक मकान की जमीन को मनोज के दिवंगत दादा पीतराम टिबड़ेवाल ने सन् 1960 में रजिस्टर्ड बैनामे से खरीदा था। लगभग 6 दशक से मनोज के माता-पिता इस मकान में रहते चले आ रहे हैं। मनोज का जन्म भी इसी पैतृक मकान में हुआ था। बेहद पिछड़े जिले महराजगंज से निकलकर अपने मेहनत के बल-बूते देश की पत्रकारिता में मनोज ने अपना खास मुकाम बनाया। राजधानी नई दिल्ली में दस साल तक लगातार मनोज ने दूरदर्शन न्यूज़ के लिए बतौर एंकर और वरिष्ठ राजनीतिक संवाददाता के रुप में काम किया। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ उनके विशेष राजकीय विमान में देश-दुनिया में अनगिनत यात्रायें कर राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान बनायी, जिस पर महराजगंज जिले वासी गर्व करते हैं कि कैसे मनोज ने इस पिछड़े जिले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का काम किया। आज बड़ी संख्या में जिले के नौजवान मनोज को अपना रोल-मॉडल मानते हैं। 

गिराये जाने से पहले निजी जमीन पर बने पैतृक मकान की स्थिति 

इसी लोकप्रियता से घबराये कुछ लोगों की एक बड़ी साजिश में शामिल हो तत्कालीन डीएम अमरनाथ उपाध्याय ने नगर में राष्ट्रीय मार्ग 730 के निर्माण की आड़ में धोखे से, 24 घंटे पहले के अपने निर्णय को रहस्यमय परिस्थितियों में बदल, बगैर मुआवजा, बगैर विधिक प्रक्रिया अपनाये, दवायें-मंदिर-कैश बाक्स जैसे जरुरी सामानों को निकालने के लिए बिना एक मिनट का वक्त दिये दुकान और मकान के समस्त सामानों सहित पैतृक दो मंजिला मकान को भारी पुलिस फोर्स भेज बुलडोजरों से ज़मीदोज करा दिया। इसका एक मात्र उद्देश्य था मनोज टिबड़ेवाल आकाश को अपमानित करना।

DPR में हेराफेरी
सरकारी अभिलेखों में मनोज के पैतृक मकान संख्या 177 के सामने सरकारी भूमि महज 16 मीटर है लेकिन यहां 30 मीटर सरकारी भूमि होने का झूठा दावा करते हुए सड़क निर्माण का डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट ‘डीपीआर’ धोखाधड़ी, कूटरचना और जालसाजी से कागजों में हेर-फेर कर बना दिया गया। अभिलेखों में मौके पर 16 मीटर सरकारी जमीन है और उसके बाद किसी की निजी जगह पर सड़क का निर्माण करना है तो निजी जमीन का मुआवजा देकर ही कोई निर्माण करना चाहिये लेकिन यहां बिना मुआवजे के मकान को जबरन गैरकानूनी तरीके से प्रशासनिक गुंडागर्दी के बल पर ध्वस्त कर दिया गया।

लिखित शिकायत को किया गया नजरअंदाज
मनोज की मां ने लिखित तौर पर 04 जुलाई 2019 को जिलाधिकारी को अवगत कराया था कि उनके मकान के सामने सरकारी भूमि मात्र 16 मीटर है और इसके साक्ष्य के रुप में आरटीआई से प्राप्त सरकारी नक्शे की प्रतिलिपि भी डीएम को दी और कहा कि वे उनकी निजी जमीन का मुआवजा देकर सड़क का निर्माण करा लें, उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।  

12 सितंबर को अफसरों ने नापी जमीन, अभिलेखों की जांच के बाद मकान को बताया वैध

एक दिन पहले 12 सितंबर का घटनाक्रम
इसके बाद तारीख आयी 12 सितंबर की। शाम पांच बजे जिलाधिकारी के निर्देश पर भारी संख्या में लोगों की मौजूदगी में मुख्य चौराहे से कोतवाली रोड पर एनएच, पीडब्ल्यूडी, तहसील के अफसरों ने आकर मौके पर घंटों विस्तृत जांच-पड़ताल की और मौके की भूमि का सरकारी नक्शे से मिलानकर सत्यापन किया गया और मकान-जमीन के रजिस्टर्ड कागजात देखे गये। बात सच पायी गयी कि मौके पर सरकारी भूमि मात्र 16 मीटर है और मनोज का पैतृक मकान निजी जमीन पर बना है। इसके बाद फीता गिरा पीले रंग से निशानदेही की गयी कि अफसरों ने कहा कि मनोज अपना मकान पांच फीट तक तोड़ लें। हजारों लोगों के बीच 12 सितंबर की शाम को सरकारी अफसरों ने डीएम अमरनाथ को बताया कि मनोज का पैतृक मकान जायज है और यह इनकी निजी जमीन पर बना है, लिहाजा मुआवजा देने के बाद ही यहां आगे कोई काम कराना नियमसंगत होगा। इसके बाद डीएम ने मनोज को फोन पर कहा कि आप पांच फीट मकान पीले रंग की निशानदेही तक तोड़ लें, आगे आपको मुआवजा देकर कार्य होगा। डीएम की बात पर भरोसा कर रात भर में पांच फीट मकान तोड़ लिया गया। 

धोखे से डीएम ने बदल दिया 24 घंटे पहले का अपना निर्णय
इसके बावजूद अगले दिन वह हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। डीएम ने न जाने क्यों, किसके दबाव में 24 घंटे पहले के अपने निर्णय को रहस्यमय तरीके से संदिग्ध परिस्थितियों में बदल डाला। 13 सितंबर को साढ़े तीन बजे बिना किसी पूर्व जानकारी के, दुकान व घर के सामानों को निकालने के लिए बिना एक मिनट का वक्त दिये, बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये, गैर कानूनी ढ़ंग से देखते ही देखते भूकंप की तरह दुकान व मकान को समस्त सामानों के साथ जबरन बुलडोजरों से जमींदोज करा दिया गया।

दहशत फैलाने के लिए चारों तरफ के रास्तों को कर दिया बंद

इस गैरकानूनी कार्यवाही को अंजाम देने के लिए सैकड़ों की संख्या में पुलिस फोर्स भेजी गयी। मकान को चारों तरफ से घेर लिया गया। पुलिसिया बैरिकेडिंग लगा सब तरफ के रास्ते बंद कर आवागमन ठप कर दिया गया। देखते ही देखते बिना वारंट-बिना परमिशन पुलिस घर के अंदर घुस गयी और परिजनों को खींचकर जबरन बाहर निकाल सड़क पर बंधक बना लिया। घर के जरुरी सामान, दवाइयां, मंदिर, कैश-बॉक्स, दुकान के लेजर, कागजात आदि तक निकालने का मौका नहीं दिया गया। चारों तरफ से पुलिसिया दहशत के बीच घर औऱ दुकान के समस्त सामानों सहित दो मंजिला पैतृक मकान को भूकंप की तरह मलबे में तब्दील कर दिया गया। 

शौचालय, बिजली, पानी जैसी मूलभूत जरुरतों से किया वंचित; घर-दुकान के सभी सामान किये मलबे में तब्दील

Right to Life के अधिकार से किया गया वंचित
हैरानी की बात थी कि जिले का एक मात्र मकान मनोज टिबड़ेवाल आकाश का भ्रष्टाचारी जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय ने गैरकानूनी ढ़ंग से ध्वस्त कराने का पाप किया। मनोज का परिवार पूरी रात सड़क पर गुजारने को मजबूर हुआ। मानवाधिकारों को कुचल दिया गया। घर का शौचालय, बिजली-पानी हर सुविधाओं से महरुम करते हुए जीने के अधिकार (Right to Life) से वंचित कर दिया गया। प्रशासनिक बर्बरता, अत्याचार के इस नंगे नाच को देख हर किसी ने सिर्फ एक ही सवाल पूछा कि आजाद भारत में इस तरह का अत्याचार कैसे एक अफसर कर सकता है? 

36 महीने में अमरनाथ का जीवन बना नर्क
पद के नशे में चूर अहंकारी अमरनाथ को लगा कि वह आईएएस है, जिलाधिकारी की कुर्सी पर है तो जो चाहे सो कर सकता है, किसी के वैध मकान को गैरविधिक तरीके से ज़मीदोज कर सकता है लेकिन यह उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित हुई। वह यह पाप करते हुए भूल गया कि देश में कानून का राज है और उसके सामने मनोज टिबड़ेवाल आकाश जैसा कोई पहाड़ खड़ा है। मकान गिराये जाने के बाद देश की तमाम जांच-एजेंसियां उसके ऊपर एक साथ टूट पड़ी हैं। 36 महीने में उसका जीवन घनघोर नर्क बन चुका है। आज वह पछता रहा होगा कि किस मनहूस घड़ी में उसने महराजगंज जिले में डीएम की कमान संभाली और क्यों उसने निजी जमीन पर खून-पसीने की मेहनत से बने एक जायज मकान को गिराने का ‘महा-पाप’ किया। 

निलंबन से जिले में बना इतिहास
मनोज ने सारे घटनाक्रम से मुख्यमंत्री को अवगत कराया कैसे जिलाधिकारी ने यह ‘महा-पाप’ किया है। इसके बाद बतौर डीएम अमरनाथ के कार्यकाल की एक-एक कुंडली को खंगालने का काम शुरु किया गया। मुख्यमंत्री ने गोरखपुर के मंडलायुक्त की अध्यक्षता में चार सदस्यीय टीम का गठन किया। मंडलायुक्त की जांच में अमरनाथ पर मधवलिया गोसदन में सरकारी धन की खुली लूट और भारी भ्रष्टाचार के आरोप जांच में प्रमाणित हुए। इसके बाद जिले के इतिहास में वह हुआ जिसको सोच अमरनाथ कांप उठा। डाइनामाइट न्यूज़ पर खबर से जुड़ा लाइव वीडियो प्रसारित होने के अगले ही दिन मुख्यमंत्री ने अमरनाथ को एक झटके में निलंबित कर डाला। जिलाधिकारी का निलंबन कोई साधारण बात नहीं होती। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिले के 33 साल के इतिहास में यह एक मात्र डीएम हैं, जिन्हें पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार की वजह से सस्पेंड किया गया। इस निलंबन की जानकारी खुद मुख्य सचिव ने लोक भवन में प्रेस वार्ता कर दी। इसके बाद अमरनाथ लगातार 8 महीने तक निलंबन की काल-कोठरी में सड़ते रहे और बहाली के बाद अब लगभग ढ़ाई साल से राजस्व परिषद के सदस्य जैसे महत्वहीन पद पर नौकरी की अंतिम सांसें गिन रहे हैं। 

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पहली बार जिले में पहुंची NHRC की टीम
जिले के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब नई दिल्ली से राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) की उच्चस्तरीय टीम किसी मामले की जांच के लिए पहुंची। एक सप्ताह तक जनपद मुख्यालय पर डेरा डाल टीम ने घटना स्थल की गहन छानबीन की, सरकारी अभिलेख खंगाले। पीड़ित, स्थानीय नागरिकों, चश्मदीदों, एनएच, पीडब्ल्यूडी, नगर पालिका, पुलिस, राजस्व व जिला प्रशासन के कर्मचारियों व अफसरों के बयान रिकार्ड किये। इसके बाद विस्तृत जांच रिपोर्ट आयोग के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एचएल दत्तू को सौंपी। आयोग में चली लंबी जिरह और सुनवाई के बाद अमरनाथ दोषी पाये गये। आयोग ने अपने आदेश में मुआवजे का आदेश तो दिया ही साथ ही अमरनाथ के खिलाफ एफआईआर पंजीकृत करने और इसकी विवेचना सीबीसीआईडी, उत्तर प्रदेश से कराने का आदेश पारित किया। इसके अलावा इसके खिलाफ सख्त विभागीय दंडात्मक कार्यवाही किये जाने का आदेश भी पारित किया। 

मंडलायुक्त की जांच में अमरनाथ निकला दोषी
मुख्यमंत्री ने एक अन्य जांच इस मामले में अपने स्तर से करायी। मकान गिराये जाने की जांच के लिए खुद मौके पर बस्ती मंडल के आयुक्त और 1998 बैच के वरिष्ठ आईएएस अनिल कुमार सागर पहुंचे, स्थानीय अफसरों और एनएच के अफसरों की मौजूदगी में जब जांच शुरु हुई तो अफसरों के माथे से जाड़े में पसीने टपकने लगे। भारी भीड़ के बीच जब मंडलायुक्त ने खुद जरीब गिरवाकर सड़क नपवायी तो उनके सवाल का जवाब मौके पर मौजूद कोई अफसर नहीं दे पाया कि यहां जब सरकारी भूमि महज 16 मीटर ही है तो कैसे बिना मुआवजा दिये मकान ध्वस्त करा दिया गया? बस्ती के मंडलायुक्त ने स्थलीय जांच की जब विस्तृत रिपोर्ट शासन को सौंपी तो मानो अमरनाथ को सांप सूंघ गया। मंडलायुक्त ने शासन को सौंपी अपनी रिपोर्ट में 13 सितंबर की घटना के लिए तत्कालीन निलंबित डीएम अमरनाथ को पूर्ण रुप से दोषी करार दिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान तो खिसक गयी पैरों तले जमीन
अभी यह सब चल ही रहा था कि अमरनाथ के पैरों तले धरती उस वक्त खिसक गयी जब उसे पता चला कि लोकतंत्र में न्याय के सबसे बड़े मंदिर यानि सुप्रीम कोर्ट ने 13 सितंबर 2019 की इस बर्बर, अराजक, तानाशाही पूर्ण और अत्याचारी घटना का स्वत: संज्ञान (suo-moto-cognizance) ले लिया है क्योंकि लाखों मामलों में से किसी एक मामले का सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेता है।

बुरी दुर्गति होना तय
इनके अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ED), भारत के लोकपाल, प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा अमरनाथ की आय से अधिक संपत्तियों जैसी विभिन्न जांचें अलग-अलग स्तर पर प्रचलित हैं। जिनमें इसकी बुरी दुर्गति होना तो तय है ही, रिटायरमेंट के बाद बाकी का बचा सारा जीवन अदालतों और जांच एजेंसियों के फंदे में फंस समाप्त हो जायेगा। 

सड़क से लेकर संसद तक हर वर्ग का समर्थन 
इस बीच सड़क से लेकर संसद तक न्याय की लड़ाई जारी रही। बड़ी संख्या में महराजगंज जिले के और देश के पत्रकारों, नौजवानों तथा बुद्धिजीवियों ने अन्याय और बर्बर अत्याचार के खिलाफ जंग में मनोज का साथ दिया।

केस बनेगा नजीर
13 सितंबर के पाप के बाद से कार्यवाही से बचने, पोस्टिंग पाने और भविष्य के प्रमोशन तक के लिए हर दरवाजे पर नाक रगड़ रहे अमरनाथ जैसे पापी अफसर को यह समझना होगा कि देश में कानून का राज है, कानून से बड़ा कोई नहीं। अमरनाथ ने मकान गिराकर समाज में दो गलत संदेश देने की नापाक कोशिश की, पहला- मनोज के दिवंगत दादा का निजी जमीन पर बना जायज मकान अवैध था और दूसरा- वह जिलाधिकारी है जो चाहे सो कर सकता है। इसी गलतफहमी को तोड़ने के लिए यह कानूनी लड़ाई जारी है। 

हर पीड़ित को लड़ना होगा अन्याय के खिलाफ
यदि समाज में मनोज जैसे जागरुक नौजवान ऐसे जघन्य बर्बर अत्याचार के खिलाफ नहीं लड़ेंगे और घनघोर अराजकता के बावजूद चुप बैठ जायेंगे तो फिर इस समाज में अमरनाथ जैसे पापी बार-बार पैदा होंगे और बार-बार अत्याचार होगा, इसलिए जरुरी है कि जहां कहीं भी अन्याय और अत्याचार हो, अफसर अपने पावर का बेजा इस्तेमाल कर लोगों के हकों पर डाका डालें, वहां हर पीड़ित उठ खड़ा हो अत्याचार के खिलाफ।

देखिये तीन साल पहले का ये वीडियो, प्रसारण के 24 घंटे के अंदर अमरनाथ का हुआ निलंबन


इस वीडियो को देख आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे कि कैसे आजाद भारत में 13 सितंबर 2019 को एक बड़ी साजिश के तहत इस बर्बर अत्याचार को अमरनाथ ने अंजाम दिया। इस वीडियो को 13 अक्टूबर 2019 को शाम साढ़े तीन बजे डाइनामाइट न्यूज़ पर प्रसारित किया गया और इसके प्रसारण के 24 घंटे के अंदर अगले ही दिन 14 अक्टूबर को डेढ़ बजे अमरनाथ के निलंबन का लखनऊ से वारंट निकल गया। इस वीडियो के अंतिम हिस्से में आप देखेंगे जब अमरनाथ महराजगंज में बतौर जिलाधिकारी तैनात थे तब उन्हें कैसे मनोज टिबड़ेवाल ने कार्यवाही की खुली चुनौती दी थी। 
    










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