गजब का दुस्साहस: भ्रष्टाचार में निलंबित अफसर बना वादी, लिखाया गायों को ढूंढने का मुकदमा!

डीएन ब्यूरो

कमलेश तिवारी के जघन्य हत्याकांड से पूरे यूपी की भद.. देश भर में पिट रही है। दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने लताड़ लगाते हुए कहा है कि यूपी में जंगलराज है। इसके बाद भी राज्य के अफसर सुधरने को तैयार नहीं हैं। वे हर ऐसा काम करने को तैयार है जिससे शासन की छवि देश भर में खराब हो। मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के निर्देशों को ठेंगा दिखाते हुए ‘मधवलिया गो-सदन कांड के निलंबित अफसर’ ने खुद ही वादी बनकर पुलिस में केस लिखा दिया है। तो क्या आजम खान के भैंसों की तर्ज पर अब यूपी की पुलिस योगी जी की गायों को ढूंढने का काम करेगी? डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव..

यह केस लिखाया गया है निलंबित अफसर की तरफ से
यह केस लिखाया गया है निलंबित अफसर की तरफ से


लखनऊ: एक झूठ को छिपाने के लिए दस झूठ बोलना पड़ता है। इन दिनों कुछ ऐसा ही कर रहे हैं गोरखपुर मंडल के अधिकारी। साढ़े तीन सौ एकड़ बेशकीमती जमीन को भारी भ्रष्टाचार कर प्राइवेट लोगों को देने और सरकारी धन के गबन में, 14 अक्टूबर को मुख्यमंत्री ने महराजगंज के पूर्व डीएम अमरनाथ उपाध्याय समेत पांच अफसरों को निलंबित कर विभागीय जांच और एफआईआर के आदेश दिये थे।

इसके बाद से ही राज्य मशीनरी का भ्रष्ट तंत्र सक्रिय हो उठा। कुछ अफसर नहीं चाहते हैं कि मुख्यमंत्री के निर्देशों के बाद भी उनके भ्रष्टाचारी साथी पर मुकदमा दर्ज हो। इसके लिए वे नये-नये हथकंडे अपना रहे हैं और खुद के बुने जाल में बुरी तरह फंसते जा रहे हैं। 

डाइनामाइट न्यूज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक अमरनाथ उपाध्याय के साथ सस्पेंड हुए महराजगंज जिले के मुख्य उप पशु चिकित्साधिकारी वीरेन्द्र कुमार मौर्य ने कल की तारीख में एक आनलाइन रिपोर्ट खुद वादी बनकर यूपी पुलिस में दर्ज करायी है। डाइनामाइट न्यूज़ के पास मौजूद रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश पुलिस की शाखा ‘राज्य अपराध अभिलेख ब्यूरो, लखनऊ’ में LAR No. 613248/2019 पंजीकृत करायी गयी है। Lost Article Information तब लिखायी जाती है जब किसी की कोई वस्तु या अभिलेख गायब हो जाता है। हैरानी है कि संगीन भ्रष्टाचार को इन लोगों ने वस्तु और अभिलेख समझ लिया है। इस रिपोर्ट में अंकित कराया गया है कि मधवलिया गो सदन में दो सितंबर को सुबह 10.54 बजे से लेकर 1 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 54 मिनट तक गायें अज्ञात लोगों ने गायब की हैं। 

रिपोर्ट में अंग्रेजी में लिखा गया है: 
The Go dynasty is do disappeared by unknown people at night from Go Sadan Madhavalia, Officers and employees of the district are being implicated so you are requested to take action against unknown / guilty persons by filing a First Information Report.  

बड़ी खबर: गोरखपुर के कमिश्नर ने भ्रष्टाचारी आईएएस अमरनाथ उपाध्याय को बचाने का खेला नया दांव, अज्ञात में एफआईआर दर्ज करा झोंकना चाहते हैं मुख्यमंत्री की आंखों में धूल

इसका हिंदी में अनुवाद है:
गो-सदन मधवलिया से गो-वंश को रात में अज्ञात लोगों द्वारा गायब कर दिया जाता है। जिले के  अधिकारियों और कर्मचारियों को फंसाया जा रहा है। ऐसे में आपसे अनुरोध है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अज्ञात/दोषी व्यक्तियों के खिलाफ उचित कार्यवाही की जाये। 

अब खुद देंखे कैसे गोरखपुर मंडल के अधिकारी एक के बाद एक गलती कर रहे हैं और खुद के बुने जाल में बुरी तरह फंसते जा रहे हैं। डाक्टर से अफसर बने इन साहब के रिपोर्ट लिखाने के दिमाग की दाद देनी पड़ेगी.. साहब के पास कौन सा ऐसा तंत्र है जिससे साहब ने पता कर लिया कि गायें सुबह 10 बजकर 54 मिनट से लेकर दोपहर 2 बजकर 54 मिनट तक ही गायब हुई हैं। कहीं ऐसा तो नहीं डाक्टर साहब ने किसी की लिखी हुई स्क्रिप्ट को आगे बढ़ा दिया? तो फिर स्क्रिप्ट लिखने वाले साहब कौन हैं?

 

 

14 अक्टूबर को लोकभवन में आयोजित प्रेस वार्ता में मुख्य सचिव आरके तिवारी ने खुद कहा था कि इस मामले में वित्तीय अनियमितता और आपराधिक गतिविधियों के लिए निलंबित अफसरों पर मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दे दिया गया है। (देखें वीडियो) 

देखिये: अमरनाथ उपाध्याय को 'महोदय', 'जिलाधिकारी के नेतृत्व 'और 'अपील' जैसे शब्दों से कैसे पूज रहे हैं कमिश्नर जयंत नार्लिकर

इतने स्पष्ट आदेश के बाद भी ये अफसर सिर्फ एक चाल चल रहे हैं कि किसी भी तरह भ्रष्टाचारी आईएएस अमरनाथ उपाध्याय के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत न होने पाये ताकि मामले की लीपा-पोती कर उसे बहाल कर दिया जाये। 

हैरान करने वाला सवाल यह है कि क्या अब यूपी पुलिस का यही काम रह गया है कि वह गायों को खोजेगी? क्या सोचकर महराजगंज जिला प्रशासन ने निलंबित डाक्टर को लखनऊ में शिकायत पंजीकृत कराने को मंजूरी दी? 

भयानक आश्चर्य यह भी है कि इस रिपोर्ट को लिखाये 24 घंटे बीत चुके हैं लेकिन फिर भी महराजगंज से लेकर गोरखपुर और लखनऊ तक कोई भी जिम्मेदार कुछ भी बताने को तैयार नहीं। आखिर क्यों? कहीं चोर की दाढ़ी में तिनका तो नहीं? 

जब अपर आय़ुक्त अजय कांत सैनी की जांच में खुला अपराध प्रमाणित हो चुका है तो फिर क्यों नहीं, उस जांच रिपोर्ट के आधार पर समस्त निलंबित अफसरों के खिलाफ वित्तीय अनियमितता और आपराधिक धाराओं में नामजद मुकदमा अब तक पंजीकृत किया गया?

कब तक चूहे-बिल्ली का खेल चलता रहेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि लखनऊ में बैठे राज्य के आला-अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की हवा निकालने में जुटे हुए हैं। यदि यह सही है तो फिर यह कहना मौजूं होगा कि.. हर शाख पे उल्लू बैठे हैं, अंजाम ए गुलिस्ताँ क्या होगा?










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