जानिये पुलिस हिरासत में दिये गये बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

डीएन ब्यूरो

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि ऐसी कोई ''स्वत: धारणा'' नहीं है कि हिरासत में बयान मजबूरी में दिया गया होगा। इसने कहा कि पुलिस की हिरासत में दर्ज किए जाने वाले आरोपी के बयान को घटकों में विभाजित किया जा सकता है तथा स्वीकार्य अंशों से अलग किया जा सकता है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)


नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि ऐसी कोई ''स्वत: धारणा'' नहीं है कि हिरासत में बयान मजबूरी में दिया गया होगा। इसने कहा कि पुलिस की हिरासत में दर्ज किए जाने वाले आरोपी के बयान को घटकों में विभाजित किया जा सकता है तथा स्वीकार्य अंशों से अलग किया जा सकता है।

शीर्ष अदालत की टिप्पणियां कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए मार्च 2020 के फैसले की पुष्टि करती हैं, जिसने हत्या के एक मामले में एक व्यक्ति को दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 का उल्लेख किया, जो इस बात से संबंधित है कि अभियुक्तों से प्राप्त कितनी जानकारी साबित हो सकती है।

पीठ ने 38 पृष्ठ के फैसले में कहा, 'ऐसा कोई स्वत: अनुमान नहीं है कि हिरासत में लिए गए बयानों को मजबूरी के माध्यम से लिया गया होगा।’’

इसमें कहा गया, 'पुलिस हिरासत में रहने के दौरान दर्ज किए गए आरोपी के बयान को उसके घटकों में विभाजित किया जा सकता है और स्वीकार्य भागों से अलग किया जा सकता है।'










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