Uttarakhand: उत्तराखंड के कोदो, झंगोर, मंड़ुआ से बने पारंपरिक भोजन को लोकप्रिय बनाने का अनूठा अभियान

डीएन ब्यूरो

वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड बना तो पारंपरिक पहाड़ी भोजन के स्वाद और उच्च पोषण गुणों पर अपने दृढ़ विश्वास के कारण ‘‘गढ़ भोज’’ के नाम से पहाड़ों के व्यंजनों से बनी एक विशिष्ट उत्तराखंडी ‘थाली’ को लोकप्रिय बनाने का अभियान शुरू किया गया। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

उत्तराखंड के पारंपरिक खाद्यान्नों में पोषक तत्वों की प्रचूरता
उत्तराखंड के पारंपरिक खाद्यान्नों में पोषक तत्वों की प्रचूरता


देहरादून: उत्तराखंड की स्थापना के लिए आंदोलन जब 1990 के दशक में चरम पर था तब यहां अक्सर पहाड़ियों में ‘‘कोदो-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे’’ के नारे से गूंजा करते थे। राज्य के पारंपरिक भोजन को लोकप्रिय बनाने के अभियान पर निकले सामाजिक कार्यकर्ता द्वारका प्रसाद सेमवाल इन्हीं बातों को याद करते हैं।

यह नारा सेमवाल को बहुत भाया जो उस वक्त किशोर थे और अपने पिता के छोटे से ढाबे को चलाने में मदद करते थे । इस ढाबे में आने वाले स्थानीय लोगों को ‘मंड़ुआ’ तथा ‘झंगोरा’ (एक प्रकार का मोटा अनाज) से बने व्यंजन परोसे जाते थे। इन मोटे अनाजों की गांव में बहुतायत में पैदावार होती थी।

सेमवाल ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैं तब 18-19 साल का था। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह आंदोलन उत्तराखंड की अलग पहचान के लिए था और इसके पारंपरिक भोजन एवं खान-पान इसका अभिन्न हिस्सा थे।’’

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड बना तो पारंपरिक पहाड़ी भोजन के स्वाद और उच्च पोषण गुणों पर अपने दृढ़ विश्वास के कारण सेमवाल ने ‘‘गढ़ भोज’’ के नाम से पहाड़ों के व्यंजनों से बनी एक विशिष्ट उत्तराखंडी ‘थाली’ को लोकप्रिय बनाने का अभियान शुरू किया।

यह भी पढ़ें | उत्तराखंड में बड़ा सड़क हादसा, पौड़ी-गढ़वाल में खाई में गिरी बस, 45 की मौत

इसके दो मकसद थे - लोगों में उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन का स्वाद विकसित करने में मदद कर राज्य की संस्कृति को जिंदा रखना और स्थानीय फसलों विशेषकर बाजरे जैसे मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देना।

करीब 23 साल बाद सेमवाल को इसमें थोड़ी-बहुत सफलता मिली क्योंकि कोदो, झंगोर, मंड़ुआ और राज्य बहुतायत में उगाए जाने वाले इन अनाजों से बने पकवान समूचे राज्य में सरकारी स्कूलों में सप्ताह में कम से कम एक बार मध्याह्न भोजन के रूप में परोसा जा रहा है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के सभी सांस्कृतिक मेलों में अब ‘गढ़ भोज’ के स्टॉल में ‘मंड़ुए का हलवा’, ‘झंगोरे की खीर’, ‘स्वाले की पूरी’, ‘गहत का फनू’, ‘गहत की पटूंगी’ और ‘गहत की रोटी’ जैसे पारंपरिक व्यंजन देखे जा सकते हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक राज्य सरकार ने 9,600 मीट्रिक टन मंड़ुआ खरीद कर स्कूलों में आपूर्ति करने के आदेश जारी कर दिए हैं। मंड़ुआ के लिए 3,500 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की भी घोषणा की गई है।

यह भी पढ़ें | उत्तराखंडः पिथौरागढ़ में बादल फटने से कई गांवों में घुसा पानी, 1 की मौत

सेमवाल 2023-24 को मोटे अनाज वर्ष के रूप में मनाने के केंद्र के फैसले और उत्तराखंड के मोटे अनाज मिशन को राज्य कैबिनेट द्वारा हाल में मिली मंजूरी को उनके जैसे कार्यकर्ताओं और स्थानीय व्यंजनों और कृषि उपज को बढ़ावा देने की दिशा में सरकारों द्वारा सामूहिक रूप से किए गए प्रयासों की परिणति के रूप में देखते हैं।

राज्य सरकार का मोटा अनाज मिशन सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से प्रत्येक अंत्योदय परिवार को एक किलोग्राम मोटे अनाज के मासिक वितरण की सुविधा प्रदान करेगा।

सेमवाल ने कहा, ‘‘सरकार के इस तरह के कदम से मोटे अनाजों के लिए एक बड़ा बाजार तैयार होगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और पहाड़ी गांवों से निरंतर पलायन पर ब्रेक लगाने के अलावा हमारे किसानों द्वारा इसकी खेती को बढ़ावा मिलेगा।’’










संबंधित समाचार