DN Exclusive: हथकरघा उद्योग पर संकट से बुनकरों का हाल हुआ बुरा, पुश्तैनी धंधा छोड़ पलायन को मजबूर

डीएन ब्यूरो

पूर्वी उत्तर प्रदेश का संत कबीर नगर जिला हथकरघा उद्योग के कारण पूरे राज्य में अपनी एक अलग पहचान रखता है लेकिन इन दिनों हथकरघा उद्योग पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसी से जुड़ी देखिये डाइनामाइट न्यूज़ की ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट:

बुनकरों का हाल हुआ बुरा, पुश्तैनी धंधा छोड़ पलायन को मजबूर
बुनकरों का हाल हुआ बुरा, पुश्तैनी धंधा छोड़ पलायन को मजबूर


धनघटा (संत कबीर नगर): धनघटा तहसील क्षेत्र के रुस्तमपुर व छपिया में बुनकर समुदाय के लोग निवास करते हैं। यहां के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कपड़ा तैयार कर गांधी आश्रमों पर बेचकर उससे अपनी जीविका चलाना था लेकिन गांधी आश्रमों के बंद होने के कारण उनके हथकरघा उद्योग पर संकट छा गया है और वह बंद होने की कगार पर पहुंच गया है। जिसका परिणाम है कि अब बुनकर अपना पुश्तैनी धंधा छोड़कर पलायन करने को मजबूर हो गए हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार धनघटा तहसील क्षेत्र के रुस्तमपुर के बुनकर समुदाय के लोग पुश्तैनी व्यवसाय के रूप में हथकरघा चलाने का काम करते थे। यहां पर गांव के अब्दुल गनी रसूल, नूरुल, करम अली, नियाज अली, मुनीर, खलील सहित दो दर्जन लोग हथकरघा चलाने का काम करते थे। पूरे दिन में 5 चद्दर तैयार कर उससे चद्दर 10 से 12 रुपये प्रति चद्दर मजदूरी कमा लेते थे। 

महीने में 15 से 18 सौ रुपये की आमदनी हो जाती थी, यह लोग पहले नाथनगर व हैसर गांधी आश्रमों से सूत लेकर तैयार कपड़ा गांधी आश्रमों पर देते थे और उनके जो मजदूरी मिलती थी उसी से अपना जीविकोपार्जन करने का काम करते थे। अब गांधी आश्रम बंद हो गए हैं मजबूरी में इनको सिकरीगंज से सूत ले आना पड़ता है। जिसका परिणाम है कि अब बुनकर इस धंधे से अपना मुंह मोड़ने लगे अब रुस्तमपुर में मात्र 3 हथकरघा चल रहा है। जिसमें आस मोहम्मद, शाह मोहम्मद व गामा तीन लोग अभी पुश्तैनी धंधे में लगे हैं। इनका कहना है पूरे दिन में एक से डेढ़ चद्दर तैयार हो पाती है जिसकी मजदूरी हम लोगों को 50 रुपये मिलते हैं। 50 रुपये में पूरे दिन काम करना कठिन हो रहा है। महीने में 15 सौ रुपए से जिंदगी काटना मुश्किल है। जिसके कारण अब महंगाई के जमाने में वाजिब मजदूरी व समय से सूत न मिलने के कारण बुनकर पलायन करना शुरू कर दिए हैं।

बुनकर आस मोहम्मद का कहना है कि पहले जब महंगाई नहीं थी तो एक चद्दर  तैयार करने में 10 रुपये मजदूरी मिलती थी। आज भी एक चद्दर तैयार करने का 50 रुपये ही मिलता है जबकि 1 दिन में एक से डेढ़ चद्दर तैयार हो पाती है। अब 50 रुपये में परिवार का भरण पोषण करना कठिन हो गया है। 

इसी तरह से बुनकर का काम करने वाले शाह मोहम्मद, मोहम्मद इस्लाम आदि का कहना है कि अभी हम लोग किसी तरह से खींचतान कर कपड़ा बुनाई कर उसी से अपनी जीविका चला रहे हैं लेकिन नयी पीढ़ी के बच्चे अब इस कार्य से अपना मुंह मोड़ कर पलायन करना शुरू कर दिए हैं।

गांव के निवासी फकरुद्दीन, कादिर, कासिम, मुस्तकीम आदि का कहना है कि पूरा गांव लगभग आज के चार दशक पूर्व बुनकर का काम करता था। कपड़ा तैयार कर उसी से अपना जीविका जलाने का काम करता था। अब महंगाई बढ़ जाने के कारण उचित मजदूरी न मिलने के कारण इस काम से उनका मोहभंग होने लगा है। वहीं गांधी आश्रम के बंद होने के कारण सूत मिल मिलना मुश्किल होने के कारण बुनकरों की समस्याऔर बढ़ गयी है। 

इनका कहना है कि हम लोगों को कोई सरकारी सुविधाएं नहीं मिलती हैं। जिसके कारण अब हम लोगों के सामने संकट खड़ा हो गया है। 

इस संबंध में पूछने पर एसडीएम उत्कर्ष श्रीवास्तव ने बताया कि बुनकरों को हर संभव सुविधा दिलवाने की व्यवस्था की जाएगी उनके सामने कोई समस्या नहीं आने दी जाएगी।










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