आस्था का महापर्व छठः डूबते सूर्य को अर्घ्य आज.. जानिये इसका वैज्ञानिक महत्व
छठ महापर्व पर डूबते सूर्य को आज अर्घ्य दिया जायेगा। घाटों में इसके लिये विशेषतौर पर तैयारियां की गई है। चार दिवसीय इस उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है और जो कार्तिक शुक्ल सप्तमी को संपन्न होता है। डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट में पढ़ें, छठ का वैज्ञानिक महत्व
नई दिल्लीः आस्था का महापर्व छठ का शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि पर पूजा का विशेष विधान है। पूरे विश्व में सूर्य की उपासना का यह एकमात्र ऐसा महापर्व है जिसमें डूबते हुये सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है जो उत्तर भारत समेत पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। चार दिवसीय इस उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है और यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को संपन्न होता है। यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें पूजा का विशेष विधान है, व्रतियों के लिये जिस तरह से इस महापर्व में 36 घंटे का निर्जला उपवास रखा जाता है वह काफी कठिन होता है।
यह भी पढ़ेंः UP: 25 दलितों ने अपनाया बौद्ध धर्म.. धर्म परिवर्तन के पीछे आई चौंकाने वाली सच्चाई
इस व्रत को महिलायें और पुरुष दोनों कर सकते हैं। इस बार रविवार यानी सूर्य के दिन छठ की शुरुआत हुई है, यह बहुत ही शुभ संयोग बना है। छठ पूजा का जो शुभ मुहूर्त है वह षष्ठी तिथि 1:50 बजे से आरंभ है, 17:28 बजे सूर्यास्त पूजा की जायेगी और सूर्योदय की पूजा 06:41 बजे की जायेगी। षष्ठी तिथि 04:22 यानी 14 नवंबर 2018 को होगी।
यह भी पढ़ेंः देवरिया: ‘सुरों के दंगल’ में दिखा कलाकारों का दम, भोजपुरी गीतों ने मोहा दर्शकों का मन
यह भी पढ़ें |
नहाय- खाय के साथ शुरू हुआ आस्था का महापर्व छठ, घाटों में बिखरी अनोखी छटा
महापर्व छठ से जुड़ा है वैज्ञानिक तथ्य
छठ पूजा का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी छुपा हुआ है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो दिवाली के बाद सूर्य का ताप पृथ्वी पर कम पहुंचता है। इस वजह से व्रत के साथ सूर्य के ताप से ऊर्जा का संचय किया जाता है। इससे शरीर सर्दी में स्वस्थ रहता है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि सर्दी के मौसम में मनुष्य के शरीर में कई तरह के परिवर्तन भी होते हैं। जिसका सीधा असर पाचन तंत्र पर पड़ता है। इसलिये आस्था के इस महापर्व छठ में 36 घंटों का उपवास पाचन तंत्र के लिये बहुत ही लाभकारी माना गया है।
यह भी पढ़ेंः फिर गिरे सोने के भाव.. चांदी भी फिसली, जानिये अब क्या है नये रेट
यह भी पढ़ें |
बिहार में सूर्योपासना का महापर्व छठ समाप्त
यह भी पढ़ेंः बिहार में अब शराब बेचने के लिये अपनाये जा रहे ये नये पैंतरे, हुआ पर्दाफाश
यह पर्व नहाय-खाय से शुरू होता है और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही पूर्ण होता है। सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे भी कई वैज्ञानिक कारण भी गिनाये जाते हैं। सुबह के समय सूर्यदेव को अर्घ्य देने से शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से रंग संतुलन बना रहता है। जो कुछ भौतिक विज्ञान के प्रिज्म के सिद्धांत से जुड़ा है। यह तथ्यामत्क सत्य है कि सूर्य के प्रकाश और इस पर रंगों के प्रभाव के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। साथ ही यह भी सभी जानते ही है कि सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन डी भी शरीर को मिलता है।