इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस केस के आरोपी को दी जमानत, जानें पूरा मामला

डीएन ब्यूरो

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने गोवध अधिनियम के तहत दर्ज मामले में आरोपी बनाए गए एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि मामले में पेश सबूत ‘सतही’ प्रतीत होते हैं। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने गोवध अधिनियम के तहत दर्ज मामले में आरोपी बनाए गए एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि मामले में पेश सबूत ‘सतही’ प्रतीत होते हैं।

यह आदेश न्‍यायमूर्ति मोहम्‍मद फैज आलम खान की एकल पीठ ने जुगाड़ी उर्फ नजीमुददीन की ओर से दाखिल अग्रिम जमानत अर्जी को मंजूर करते हुए पारित किया। पीठ ने कथित ‘घटिया’ साक्ष्य के आधार पर गोवध अधिनियम के तहत दर्ज मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी।

आदेश पारित करते हुए न्यायमूर्ति खान की पीठ ने कहा कि मौजूदा मामला दंडात्मक कानून के दुरुपयोग का एक ज्वलंत उदाहरण है क्योंकि न तो प्रतिबंधित जानवर और न ही उसका मांस किसी आरोपी व्यक्ति के कब्जे से या मौके से बरामद किया गया था। अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी द्वारा केवल एक रस्सी और कुछ मात्रा में गाय का गोबर एकत्र किया गया था।

अपने आदेश में पीठ ने यह भी कहा, ‘‘राज्य का कर्तव्य निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना है, जो कि इस न्यायालय की राय में इस मामले में नहीं किया गया है।’’

अदालत ने न केवल आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी बल्कि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को आदेश की प्रति भेजकर कहा कि वह देखें कि किस प्रकार विवेचक गो हत्या के मामलों में लापरवाही पूर्ण विवेचना करते हैं और ऐसे में उचित कार्यवाही की जाये।

याची की ओर से अधिवक्ता नरेंद्र गुप्ता का तर्क था कि घटनास्थल से कोई प्रतिबंधित जानवर या उसका मांस नहीं मिला था और केवल गोबर मिला था जिसे विधि विज्ञान प्रयोगशाला ने जांचने से मना कर दिया था फिर भी याची के खिलाफ सीतापुर पुलिस ने आरोपपत्र दाखिल कर दिया।

पुलिस पर झूठे मामले में फंसाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा गया कि याची निर्दोष है और उसे गलत फंसाया जा रहा है।

अपने आदेश में, पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि आदेश में निहित सभी टिप्पणियां केवल तत्काल अग्रिम जमानत याचिका के निपटान के लिए थीं और किसी भी तरह से मुकदमे की कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेंगी।










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