किशोरावस्था के प्रेम को नियंत्रित नहीं किया जा सकता, पॉक्सो जमानत मामलों में सावधानी जरूरी

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग लड़की के साथ आपसी सहमति से बनाये गये शारीरिक संबंध से जुड़े मामले में एक युवक को दो महीने की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि किशोर मनोविज्ञान और किशोर प्रेम को अदालतों द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है और न्यायाधीश को ऐसे मामलों में जमानत याचिकाओं का निपटारा करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

दिल्ली हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
दिल्ली हाई कोर्ट (फाइल फोटो)


नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग लड़की के साथ आपसी सहमति से बनाये गये शारीरिक संबंध से जुड़े मामले में एक युवक को दो महीने की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि किशोर मनोविज्ञान और किशोर प्रेम को अदालतों द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है और न्यायाधीश को ऐसे मामलों में जमानत याचिकाओं का निपटारा करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांत शर्मा ने कहा कि हालांकि कानून की नजर में नाबालिग की सहमति का कोई महत्व नहीं हो सकता है, लेकिन किशोर जोड़ों के भागने के मामले में अदालत ‘अपराधियों से नहीं निपटती’, बल्कि वह किशोरों के मामले से निपटती है जो उनके साथ अपना जीवन जीना चाहते हैं जिनसे प्यार करते हैं।

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अदालत ने वर्तमान मामले में इस बात का संज्ञान लिया कि पीड़िता और आरोपी की उम्र घटना के वक्त क्रमशः 16 और 19 वर्ष की थी और अब वे महीने के अंत में शादी कर रहे हैं। अदालत ने युवक को दो महीने के लिए जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया।

अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘मुख्य किरदार यानी मौजूदा मामले का आरोपी अपराधी नहीं है, लेकिन वह प्यार में था और कानून की बारीकियों से अनजान वह शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए दिल्ली से 2200 किलोमीटर दूर भागकर चला गया था।’’

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अदालत ने स्पष्ट किया कि इस तरह के हर मामले को उसके विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर तय किया जाना चाहिए।










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