जानिए..उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने संविधान निर्माण में निभाई अहम भूमिका

डीएन ब्यूरो

अकसर जब भी संविधान निर्माण की बात सामने आती है तो पुरुष नेताओं के ही नाम सामने आते हैं। संविधान निर्माण में महिलाओं का नाम और योगदान कहीं छिप जाता है। लेकिन संविधान निर्माण के दौरान देश की कई प्रभावी महिलाओं से सलाह ली गई थी। डाइनामाइट न्यूज़ आपको बता रहा है इन महिलाओं के बारे में..

संविधान निर्माण में महिलाओं ने निभाई थी  अहम भूमिका
संविधान निर्माण में महिलाओं ने निभाई थी अहम भूमिका


नई दिल्ली: देश को संविधान मिले हुए 70 साल हो चुके हैं। इस दौरान देश में बहुत कुछ बदल गया है। लाख रुकावटों के बावजूद देश की महिलाओं ने लगभग हर क्षेत्र में आपना जगह बना ली है। देश को इंदिरा गांधी के रूप में पहली महिला प्रधानमंत्री मिली, तो प्रतिभा देवी पाटिल के रूप में पहली महिला राष्ट्रपति। 

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आज देश की रक्षा और सुरक्षा का जिम्मा भी महिलाओं के ऊपर है। देश की रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री दोनों महिला हैं। रक्षा की कमान जहां निर्मला सीतारमण के पास है तो वहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हैं। यहां तक कि देश के 70वें गणतंत्र दिवस परेड में महिलाओं के लिए मिसाल बन चुकीं भावना कस्तूरी ने परेड में हिस्सा लेते हुए पुरुष सैन्य टुकड़ी का नेतृत्व किया। 
यहां हम आपको उन महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने संविधान निर्माण में अहम भूमिका अदा की। इन महिलाओं में सरोजिनी नायडू, विजय लक्ष्मी पंडित, अम्मू स्वामीनाथन, सुचेता कृपलाणी आदि शामिल हैं।

सुचेता कृपलाणी

सुचेता कृपलाणी
महिलाओं, गरीबों और मज़दूरों के लिए वे हमेशा आवाज़ उठाती रहीं। उनके इसी गुण के कारण उन्हें संविधान सभा के सलाहकारों के लिए चुना गया था। उन्होंने राजनीति में महिलाओं के लिए कई आयाम खोलें। वे देश की पहली महिला सांसद रहीं। साथ ही उत्तर प्रदेश की  मुख्य मंत्री भी बनीं। 1940 में कांग्रेस में वुमेन विंग की स्थापना करने वालीं सुचेता कृपलाणी ही थीं। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का वे अहम हिस्सा भी रही थीं।  

अम्मू स्वामीनाथन

अम्मू स्वामीनाथन
देश में जब संसद का निर्माण हो रहा था तो तब वे पहली संसद का हिस्सा थीं। बचपन से ही वे बागी थीं और महिलाओं के अधिकारों के प्रति सचेत थीं। 1917 में महिलाओं को एकत्रित कर उन्होंने वुमेन इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की थी। एनी बेसेंट भी इसकी सदस्य थीं। 24 नवंबर 1949 को अंबेडकर ने जब संविधान पर अपनी बात रखी तो अम्मू ने भी बड़े आत्मविश्वास के साथ अपने विचार पेश किए। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों का कहना हे कि भारत ने महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं दिए हैं लेकिन अब अपना संविधान खुद चुनकर भारत ने  महिलाओं को अन्य देशों की तरह पुरुषों के समान अधिकार दिए हैं। 

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सरोजिनी नायडू

सरोजिनी नायडू
भारत की नाइटिंगेल के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू एक प्रगतिशील महिला थीं। वे पहली महिला थीं जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया था। महात्मा गांधी से प्रेरित सरोजिनी नायडू उनके कई स्वतंत्रता आंदोलन का सक्रिय हिस्सा रहीं।

विजयलक्ष्मी पंडित

विजयलक्ष्मी पंडित
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित पहली महिला कैबिनेट मंत्री थीं। 1953 में पहली यूएन जनरल एसेंबली में शामिल होने वालीं वे पहली एशियाई महिला थीं। आज़ादी के संघर्ष के दौरान वे तीन दफा जेल भी गईं। महिलों के अधिकारों के लिए उन्हेंने काफी काम किया।

दक्क्षयानी वेल्याधन

दक्क्षयानी वेल्याधन
उन्होंने दबे-कुचले लोगों के लिए आवाज़ उठाई थी। इस कारण उन्हें संविधान निर्माण के दौरान अंबेडकर ने विशेष स्थान दिया था। 1946 में संविधान सभा के लिए चुने गए सदस्यों में वे एकमात्र दलित महिला थीं। 1912 में मद्रास के बोलगट्टी में जन्मी वेल्याधन पुलाया समुदाय से थीं। वे इस समुदाय की पहली महिला थीं जो पढ़ी लिखी थीं और आधुनिक कपड़े पहनती थीं। 1954 में वे कोचीन लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए चुनी गई थीं। दक्क्षयानी ने संविधान निर्माण के दौरान दलितों से जुड़ी कई समस्याओं को संविधान सभा में उठाया था।

अम्मू स्वामीनाथन, बेगम एजाज़ (बीच में) रसूल और तेहरी घरवाल की राजमाता (Tehri Garhwa) 

बेगम ऐजाज़ रसूल
वे स्वतंत्र भारत के संविधान सभा में शामिल होने वालीं पहली मुस्लिम महिला थीं। 1935 में उन्होंने मुस्लिम लीग की सदस्यता ली थी लेकिन संविधान के बंटवारे के बाद 1950 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्या ले ली थी। 1969-71 में वे सोशल वेलफेयर और अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री रहीं तथा 2000 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।  

 










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