Prayagraj Mahakumbh 2025: जानिये महाकुंभ में नागा साधुओं के 'शाही स्नान' की खास बातें
इस समय महाकुंभ में करोड़ो लोग शाही स्नान के लिए प्रयागराज पहुंच रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं 'शाही स्नान' का नाम कब मिला? डाइनामाइट न्यूज़ के इस रिपोर्ट में पढ़िए पूरी जानकारी।
प्रयागराज: महाकुंभ इस समय पूरी दुनिया में चर्चा के केंद्र बना हुआ है। इसकी शुरुआत 13 जनवरी यानि सोमवार से हो चुकी है। महाकुंभ में 40 करोड़ श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर आ रहे हैं और संगम में डुबकी लगाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं नागा साधु के इस स्नान को शाही स्नान का नाम कब और कैसे मिला? डाइनामाइट न्यूज़ में पढ़िए पूरी जानकारी।
'शाही स्नान' का इतिहास
कुंभ मेला सनातन धर्म के सबसे बड़े और सबसे पवित्र धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो हर 12 वर्ष में एक बार होता है। यह सिर्फ धार्मिक आयोजन ना होकर खगोलीय घटनाओं से जुड़ी एक चिर पुरातन परंपरा है, जिसमें ग्रहों की स्थिति का विशेष महत्व होता है और इसी आधार पर इसका आयोजन होता है।
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प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाला महाकुंभ 144 वर्ष बाद आया है। इस कुंभ में दुनिया भर से करीब 40 करोड़ भक्त शाही स्नान करने आए हैं। बता दें, महाकुंभ में अखाड़ों के जिस स्नान को अमृत स्नान कहा जा रहा है। कई लोगों का मामना है कि अमृत स्नान को शाही स्नान का नाम मुगलों द्वारा दिया गया है।
सनातनी साधु-संतों ने किया शुरू
हालांकि, उससे पहले भी हिंदू या उस समय के सनातनी साधु-संतों ने अपनी ताकत दिखाने के लिए कुंभ के प्रमुख पर्वों पर जुलूस बनाकर उसी तरह तड़क भड़क और सज-धज कर निकाला करते थे। उनके ये जुलूस वैसे ही होते थे, जैसे राजा महाराजा युद्ध के समय अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए सेना के साथ निकला करते थे।
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माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने हिंदू समुदाय को सशक्त करने के लिए अखाड़ों की स्थापना की। साथ ही उनकी शक्ति जनता में दिखाने के मकसद से स्नान पर्वों को चुना। इन पर्वों पर सामान्य गृहस्थों के साथ साधु संत भी तीर्थों नदियों में स्नान किया ही करते थे।
जानिए शाही स्नान का महत्व
अमृत या शाही स्नान का महत्व अमृत, राजसी या शाही स्नान- इस नामों के पीछे विशेष महत्व और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है। माना जाता है कि नागा साधुओं को उनकी धार्मिक निष्ठा के कारण सबसे पहले स्नान करने का अवसर दिया जाता है। वे हाथी, घोड़े और रथ पर सवार होकर राजसी ठाट-बाट के साथ स्नान करने आते हैं। इसी भव्यता के कारण इसे अमृत स्नान (शाही या राजसी स्नान) नाम दिया गया है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, मध्यकाल में राजा-महाराज, साधु-संतों के साथ भव्य जुलूस लेकर स्नान के लिए निकलते थे। इसी परंपरा ने अमृत स्नान की शुरुआत की। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि महाकुंभ का आयोजन सूर्य और गुरु जैसे ग्रहों की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है।