उत्तराखंड: मलारी गांव के लोगों ने छह दशक पहले ली गयी जमीन का मुआवजा मांगा

डीएन ब्यूरो

छह दशक पूर्व सेना द्वारा ली गई जमीन के मुआवजे की मांग को लेकर भारत-चीन सीमा पर स्थित मलारी गांव के जनजातीय परिवारों ने आंदोलन की चेतावनी दी है।

जमीन का मुआवजा मांगा (फाइल)
जमीन का मुआवजा मांगा (फाइल)


गोपेश्वर: छह दशक पूर्व सेना द्वारा ली गई जमीन के मुआवजे की मांग को लेकर भारत-चीन सीमा पर स्थित मलारी गांव के जनजातीय परिवारों ने आंदोलन की चेतावनी दी है।

प्रधानमंत्री की 'जीवंत ग्राम' योजना में शामिल चमोली जिले के इस गांव के लोगों ने उनके साथ हुए इस 'अन्याय' के चलते योजना के लक्ष्यों के पूरा होने पर भी संदेह जताया है ।

मलारी गांव के पूर्व ब्लॉक विकास समिति के सदस्य सुपिया सिंह राणा ने यहां कहा कि गांव के लोग भारतीय सेना या सरकार के विरोधी नहीं हैं लेकिन वे अपनी ‘नाप भूमि’ (खेती की जमीन) का मुआवजा चाहते हैं जो सेना ने साठ साल पहले उनसे ली थी ।

उन्होंने कहा, ' यदि सरकार या भारतीय सेना द्वारा ग्रामीणों को उचित मुआवजा नहीं दिया गया तो हमें मजबूरन सेना द्वारा उस भूमि पर किए जा रहे पक्के निर्माण कार्यों को रोकने व आंदोलन करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।'

नीति घाटी के कागा गरपक गांव के प्रधान और ग्राम प्रधान संगठन के नेता पुष्कर सिंह राणा ने बताया कि सीमांत तहसील जोशीमठ के सीमावर्ती गांव मलारी के ग्रामीणों ने 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय भारतीय सेना को अपनी तीन हजार ‘नाली नाप भूमि’ देश हित को सर्वोपरि मानते हुए उपयोग के लिए दी थी जिस पर वर्तमान समय में सेना की रेजिमेंट बसी है ।

ग्रामीणों ने कहा कि युद्ध की आपातकालीन स्थिति को देखते हुए ग्रामीणों ने बिना किसी शर्त या लिखित दस्तावेज़ के देश को सर्वोपरि मानते हुए अपनी नाप भूमि भारतीय सेना को दी थी ।

उन्होंने कहा कि इस ‘नाप भूमि’ पर उनकी आजीविका निर्भर थी लेकिन तब से आज तक छह दशक बीत जाने के बाद भी सरकार या भारतीय सेना की ओर से ग्रामीणों को भूमि के बदले अब तक कोई भी मुआवजा नहीं दिया गया ।

ग्रामीणों ने कहा कि इसके लिए ग्रामीणों की ओर से समय-समय पर प्रदेश सरकार, केन्द्र सरकार व सेना के उच्च अधिकारियों से पत्राचार व वार्ता की गई लेकिन इस संबंध में कोरे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला ।

 










संबंधित समाचार