स्थलीय कीटों की मदद से वैज्ञानिकों ने किया इस तकनीक का विकास

डीएन ब्यूरो

भारत के अनुसंधानकर्ताओं सहित एक अंतरराष्ट्रीय दल ने स्थलीय कीटों के एक यौगिक का उपयोग करने की ऐसी विधि विकसित की है जो 3डी प्रिंटिंग प्रक्रिया के साथ पर्यावरण के अनुकूल पॉलीमर बना सकती है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: भारत के अनुसंधानकर्ताओं सहित एक अंतरराष्ट्रीय दल ने स्थलीय कीटों के एक यौगिक का उपयोग करने की ऐसी विधि विकसित की है जो 3डी प्रिंटिंग प्रक्रिया के साथ पर्यावरण के अनुकूल पॉलीमर बना सकती है।

अंतरराष्ट्रीय दल में तमिलनाडु के श्री रामकृष्ण इंजीनियरिंग कॉलेज के अनुसंधानकर्ता शामिल हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने, प्राणी विज्ञान के आर्थोपोड समुदाय के कीटों के बाहरी कंकाल में पाए जाने वाले काइटिन से प्राप्त काइटोसन का उपयोग किया है। काइटोसन समुद्री जीवों जैसे केकड़ों के खोल में भी पाया जाता है। बहरहाल, अनुसंधानकर्ताओं ने कीटों से मिलने वाले काइटोसन को पर्यावरण के अनुकूल बताया है।

3डी प्रिंटिंग तकनीक विनिर्माण का एक रूप है जो जटिल आकार तथा ज्यामितीय गणना आधारित आकार को पारंपरिक निर्माण तकनीकों का उपयोग कर वास्तविक रूप में पेश करने की क्षमता की वजह से लोकप्रित होती जा रही है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, यही वजह है कि 3डी प्रिंटिंग के लिए कच्चे माल की मांग बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 12 के तहत यानी टिकाऊ खपत और उत्पादन पैटर्न को बढ़ावा देने के लिए 3डी प्रिंटिंग के वास्ते कच्चे माल का यथोचित उपयोग सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।

स्थलीय कीड़े काइटोसन का संभावित स्रोत हैं क्योंकि उनके बाह्य कंकाल में काइटिन यौगिक बहुतायत में पाया जाता है। काइटोसन के कई संभावित लाभ हैं। कीटों से काइटोसन निकालने से जहां पर्यावरण प्रदूषण नहीं बढ़ता वहीं इसके पारंपरिक स्रोत जैसे चिंराट (श्रिम्प) और केकड़ों के खोल पर्यावरण पर प्रतिकूल असर डालते हैं।

‘‘जर्नल ऑफ पॉलीमर्स एंड द एनवायरनमेंट’’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 3डी प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करके पर्यावरण के अनुकूल समग्र सामग्री विकसित करने की व्यवहार्यता की जांच की गई।

तमिलनाडु के ‘‘सविता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एंड टेक्नीकल साइंसेज’’ के शोधकर्ताओं सहित अनुसंधान दल ने पाया कि स्थानीय कीटों से प्राप्त काइटिन और काइटोसन को पॉलीलैक्टिक एसिड (पीएलए) में मिलाने पर वह कठोरता घटती है जो काइटिन एवं काइटोसन के सांद्रण के साथ बढ़ती जाती है। 3डी प्रिंटिंग में पीएलए का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि काइटिन पीएलए और काइटोसन पीएलए अच्छी तापीय स्थिरता प्रदर्शित करते हैं, और उनके संपीड़ित गुणों के आधार पर उनका खाद्य उत्पाद पैकेजिंग के लिए उपयोग किया जा सकता है।

अध्ययन में अन्य शोधकर्ता सिंगापुर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, सिंगापुर में न्यूकैसल विश्वविद्यालय, थाईलैंड में माहिदोल विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी टेक्नोलोजी मलेशिया से हैं।










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