जाति भेदभाव रोधी अध्यादेश पारित होना उत्पीड़ितों के लिए ‘‘ऐतिहासिक जीत’’ : क्षमा सावंत

डीएन ब्यूरो

लेखिका एवं राजनीतिज्ञ क्षमा सावंत ने गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों में जाति के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए सोमवार को कहा कि सिएटल सिटी काउंसिल द्वारा जाति आधारित भेदभाव रोधी अध्यादेश पारित किया जाना उत्पीड़ित जाति के लोगों के लिए ‘‘ऐतिहासिक जीत’’ है।

लेखिका एवं राजनीतिज्ञ क्षमा सावंत
लेखिका एवं राजनीतिज्ञ क्षमा सावंत


वाशिंगटन: लेखिका एवं राजनीतिज्ञ क्षमा सावंत ने गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों में जाति के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए सोमवार को कहा कि सिएटल सिटी काउंसिल द्वारा जाति आधारित भेदभाव रोधी अध्यादेश पारित किया जाना उत्पीड़ित जाति के लोगों के लिए ‘‘ऐतिहासिक जीत’’ है।

भारतीय अमेरिकी राजनीतिज्ञ एवं अर्थशास्त्री क्षमा सावंत ने सिएटल सिटी काउंसिल में भेदभाव न करने की नीति में जाति को शामिल करने के लिए पिछले सप्ताह एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे पारित कर दिया गया। इसके साथ ही सिएटल जाति आधारित भेदभाव को प्रतिबंधित करने वाला अमेरिका का पहला शहर बन गया।

उच्च जाति से संबद्ध सावंत (49) ने कहा कि वह भारतीय-अमेरिकियों के एक समूह के कड़े विरोध, प्रौद्योगिकी कंपनियों के प्रतिरोध और डेमोक्रेट पार्टी के लगभग असहयोग के बावजूद यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने में कामयाब रहीं।

सावंत ने भारतीय-अमेरिकियों के उस समूह को ‘‘हिंदू दक्षिणपंथी’’ करार दिया जिसने प्रस्ताव का विरोध किया था।

सावंत ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘ पिछले मंगलवार को अध्यादेश पारित हुआ, वह न केवल सिएटल में बल्कि अमेरिका, भारत और बाकी दुनिया में भी उत्पीड़ित जाति के लोगों के लिए एक असाधारण ऐतिहासिक जीत है क्योंकि यह पहला ऐसा अध्यादेश है जो जाति आधारित भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।’’

ऐसा करने वाला सिएटल न केवल पहला अमेरिकी शहर है, बल्कि जाति आधारित भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने के लिए दक्षिण एशिया के बाहर दुनिया का पहला क्षेत्र है।

सावंत ने कहा, ‘‘ यह पूरी तरह से एक बड़ी जीत है क्योंकि दक्षिण एशिया के बाहर यह पहली बार है कि कानून के जरिए यह तय किया गया कि जाति आधारित भेदभाव को अनदेखा नहीं किया जाएगा बल्कि कानून में इसे गैरकानूनी कहा जाएगा।’’

नए कानून की प्रमुख बात यह है कि यह कार्यस्थल पर किसी भी प्रकार की प्रताड़ना का सामना करने वाले कर्मचारी को कंपनी पर मुकदमा करने का अधिकार देता है।

उन्होंने कहा, ‘‘ जाहिर है कि अदालतों में जीत स्वत: नहीं मिलेगी क्योंकि पूंजीवाद के तहत न्याय व्यवस्था कर्मचारियों और पीड़ितों के पक्ष में नहीं है।’’

सावंत ने कहा कि अदालत में यह लड़ाई जीतना कामकाजी लोगों के लिए एक बड़ी बात होगी।

सावंत ने कहा कि उन्हें एक ‘‘हिंदू दक्षिणपंथी समूह’’ से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और साथ ही ‘‘एक मजबूत लोकतांत्रिक प्रतिष्ठान जो इस अध्यादेश को पारित नहीं करना चाहता था।’

उन्होंने कहा, ‘‘ हमें एक शक्तिशाली ‘रैंक-एंड-फाइल’ (आम सदस्यों) का एक संयुक्त आंदोलन चलाना पड़ा जो विरोध की इन ताकतों पर काबू पाने में सक्षम रहे।’’

सावंत ने कहा कि वह ऐसा करने में केवल इसलिए कामयाब रहीं क्योंकि उनके समाजवादी या मार्क्सवादी नगर परिषद कार्यालय, उनके संगठन ‘सोशलिस्ट अल्टरनेटिव’ और दलित उत्पीड़ित जाति नीत कई संगठनों ने उनका साथ दिया।

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि जाति आधारित भेदभाव की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इस तरह के भेदभाव की अकसर शिकायत नहीं की जाती और उनके शहर सिएटल में खासकर कई उत्पीड़ित जाति के कर्मचारी इसका उचित तरीके से विरोध करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि सामने आकर भेदभाव की शिकायत करने पर उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे।

सावंत ने कहा, ‘‘ जहां तक प्रोद्यौगिक क्षेत्र की बात है, मैं कह सकती हूं कि वास्तव में आईबीएम से लेकर गूगल, अमेजन, सिस्को और माइक्रोसॉफ्ट तक सभी में यह काफी है।’’

उन्होंने कहा कि वह उम्मीद करती हैं कि इस ‘‘ असाधारण ऐतिहासिक जीत’’ से उत्पीड़ित कमर्चारियों को हिम्मत मिले और उनमें एकता का भाव उत्पन्न हो ताकि वे खुलकर अपनी व्यथा व्यक्त कर सकें।

 










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