नोटबंदी: एक साल बाद.. सफल या असफल?
एक साल पहले 8 नवम्बर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक टेलीविजन पर अवतरित होकर ऐलान करते हैं कि आधी रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। पीएम मोदी की डिमोनेटाइजेशन (विमुद्रीकरण) की इस घोषणा को मीडिया ने और सरल बनाते हुए नोटबंदी का नाम दिया। एक साल बाद आज भी यह सवाल लोग एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि आखिर नोटबंदी से देश और आम जनता को मिला क्या? पढ़ें पूरी रिपोर्ट..
नई दिल्ली: पिछले साल 8 नवम्बर को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक टेलीविजन पर आये और राष्ट्र के नाम लगभग 40 मिनट का संबोधन दिया। संबोधन के 15वें मिनट में पीएम मोदी ने कहा कि आज आधी रात से 500 और 1000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे। पीएम मोदी की डिमोनेटाइजेशन (विमुद्रीकरण) की इस घोषणा को मीडिया ने और सरल बनाते हुए नोटबंदी नाम दिया।
कई सवाल छोड़ गयी नोटबंदी
पीएम मोदी ने देश से काला धन, जाली नोट, भ्रष्टाचार और आंतकवाद के खात्मे के लिये नोटबंदी को अचूक और जरूरी हथियार बताया था, लेकिन विपक्ष ने इसे आर्थिक सुनामी और आर्थिक इमरजेंसी जैसे नाम दिये। नये नोट मेहमान बनकर आये और वित्तीय प्रणाली में शामिल हो गये। देश में 50 दिनों तक नोटबंदी रही और चली गयी। लेकिन कुछ बड़े सवाल छोड़ गयी.. कि आखिर नोटबंदी से देश और आम जनता को मिला क्या?
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'1000 रुपये के नोट लाने की कोई योजना नहीं'
कुछ कंपनियों को मिला कारोबार विस्तार का मौका
नोटबंदी के कई पहलु रहे। नोटबंदी के औपचारिक ऐलान के वक्त पीएम मोदी ने बैंकों से, एटीएम से नकदी निकालने और जमा कराने की कई शर्तें और सीमाएं निर्धारित की। आरटीजीएस, चैक, डीडी, क्रेड़िट-डेबिड कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग आदि के जरिये कोई कितना भी बड़ा ट्रांजेक्शन कर सकता था। पीएम मोदी ने इस दौरान देश की जनता से कैश लेश ट्रॉजेक्शन (नकदी रहित लेन-देन) अपनाने की अपील की। नोटबंदी की घोषणा के बाद बैंकों में जनता की जबरदस्त भीड़ उमड़ने लगी। बैंक भी नकदी का बड़ी समस्या से जूझने लगे। अपने ही पैसों के लिये लोग तरसने लगे। लोगों की बढती आफत, जरूरत और मौके की नजाकत ने कई ई-वॉयलेट कंपनियों को कारोबार विस्तार का बड़ा मौका दिया। नोटबंदी की आफत में लाइन में खड़े कई दर्जन लोग असमय काल के गाल में समा गये। तमाम लोगों को पहले से तय शादी जैसे कार्यक्रम टालने पड़े।
कितनी जरूरी थी नोटबंदी?
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आतंकवाद, कालेधन और जाली मुद्रा पर नोटबंदी के प्रभाव को स्पष्ट आंकड़ों के जरिये बताने में सरकार अब तक ज्यादा सफल नहीं हो सकी है। हालांकि सरकार मानती है कि नोटबंदी के बाद काले धन और आंतरिक आंतकवाद (नक्सलवाद) के खिलाफ उसे बड़ी कामयाबी मिली है। अपने इस तथ्य के लिये सरकार कुछ तर्क दे रही है। मसलन- नोटबंदी के बाद 3 लाख फर्जी और शैल कंपनियों का पता चला। कालेधन के खिलाफ सरकार का ऑपरेशन 158 फीसदी बढ़ा। टैक्स कलेक्शन और टैक्स फाइलिंग में इजाफा हुआ। सरकार का यह भी कहना है कि नोटबंदी के बाद कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, क्योंकि उनकी फंड़िग रुक गयी। सरकार के मुताबिक नोटबंदी से नक्सलवाद में 20 फीसदी की गिरावट आयी है। कश्मीर में पत्थरबाजी में भी गिरावट आयी है। लेकिन दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियां लगातार बढ़ रही है। सीमा पर लगभग हर रोज मुठभेड़ हो रही है और खून बह रहा है। नोटबंदी के बाद नक्सलवाद अब और नहीं पनपेगा, इस सवाल का जबाव भी सरकार को देना होगा। आम जनता के गले यह बात नहीं उतर रही है कि सरकार अपनी जिन उपलब्धियों को गिना रही है, क्या उसे नोटबंदी के जरिये ही हासिल किया जा सकता था? और इसके लिये इतना बड़ा व अप्रत्याशित कदम उठाना कितना जरूरी था?
डिजिटल पेमेंट में कामयाबी
आतंकवाद, कालेधन और जाली मुद्रा के खिलाफ नोटबंदी कितनी कारगर हुई, इस सवाल का जबाब अभी पूरी तरह साफ नहीं है लेकिन इन सबके बीच डिजिटल पेमेंट के मोर्चे पर नोटबंदी को जरूर कामयाबी मिली है। सरकार समेत आंकड़े यह जरूर बताते हैं कि नोटबंदी के बाद देश में डिजीटल पेमेंट के चलन में जबरदस्त इजाफा हुआ है। अक्टूबर 2017 तक देश में 1800 करोड़ का डिजीटल पेमेंट हुआ। नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट में पहले की तुलना में 80 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसके लिये UPI-BHIM, IMPS, M-wallet, डेबिट कार्ड जैसे सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म का भी इस्तेमाल बढ़ा है।