सहारनपुर में फिर जमकर हुआ बवाल, 20 दिन में तीसरी बार बिगड़े हालात

डीएन संवाददाता

20 अप्रैल, 5 मई और अब इसके बाद 9 मई। सहारनपुर में इन तीन तारीखों को शोभा यात्राओं के नाम पर जमकर बवाल, हंगामा, उपद्रव, पथराव, फायरिंग व आगजनी हुई और पुलिस-प्रशासन तमाशबीन बन सिर्फ अपने दामन बचाने में जुटा रहा। सवाल लखनऊ में बैठे उच्चाधिकारियों पर भी उठ रहे हैं कि वे आखिर क्यों 20 दिन से सुलग रहे सहारनपुर में काबिल अफसरों को भेजकर क्यों नही हालात काबू में कर पा रहे हैं।

सहारनपुर में फिर जमकर तांडव
सहारनपुर में फिर जमकर तांडव


सहारनपुर: 20 दिन के भीतर तीसरी बार सहारनपुर सांप्रदायिक और जातीय संघर्ष के नाम पर सुलग उठा और स्थानीय अधिकारी तमाशा देखते रह गये। नाकाम खुफिया तंत्र हर बार मौके की नजाकत भांपने में विफल रहा है। 

शोभा यात्राओं के नाम पर हो रहा बवाल सहारनपुर में बड़ी समस्या बन चुका है। 

इस बवाल में तीन तारीखें बेहद अहम हैं।

मंगलवार को आगजनी की शिकार मोटरसाइकिल

20 अप्रैल: एक समुदाय के लोग अंबेडकर शोभा यात्रा जिस रास्ते से निकालना चाहते थे, उसकी इजाजत प्रशासन ने नहीं दी। इसके बावजूद भी आयोजकों ने शोभा यात्रा निकाली जिस पर दूसरे संप्रदाय के लोगों ने पथराव किया। पथराव के बाद हिंसा भड़की और जमकर तोड़फोड़ हुई। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने हरिद्वार- अंबाला नेशनल हाइवे को जाम कर दिया। इसी बीच बीजेपी सांसद राघव लखनपाल ने अपने समर्थकों के साथ एसएसपी के घर को घेर लिया और जमकर हंगामा किया। 

5 मई: थाना बडग़ांव क्षेत्र के अन्तर्गत गांव शब्बीरपुर से ठाकुर समाज के लोग समीपवर्ती गांव शिमलाना में महाराणा प्रताप की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने के लिए डीजे की धुन पर डांस करते हुए शिमलाना गांव जा रहे थे। जैसे ही यह लोग गांव शब्बीरपुर में दलित बस्ती से निकल रहे थे तो संत रविदास मंदिर के पास डीजे बजाने का दलितों ने विरोध किया। इसके बाद दोनों पक्षों के बीच में वाद विवाद के बाद गाली-गलौज भी होने लगी। इसके बाद पथराव शुरू हो गया। पथराव में एक दलित महिला घायल हुई तो दलितों ने उग्र होकर जबरदस्त पथराव शुरू कर दिया। एक पक्ष की ओर से संत रविदास मंदिर में तोडफ़ोड़ शुरू कर दी गई। डा. अंबेडकर की मूर्ति को भी तोड़ा गया। पथराव के साथ-साथ फायरिंग हुई। इस पथराव व फायरिंग में सुमित पुत्र धर्मपाल उम्र 26 वर्ष की गोली लगने से मौत हो गयी।

9 मई: आज 5 तारीख की घटना के विरोध में दलित समुदाय के लोगों ने पंचायत बुलायी थी, जिसकी इजाजत प्रशासन ने नही दी थी। शहर के गांधी पार्क में भीम आर्मी सेना के बैनर तले दलित जुटे और शब्बीरपुर के पीडि़तों को मुआवजा दिलाने की मांग को लेकर धरना शुरू कर दिया इसी बीच पुलिस पहुंची और बिना अनुमति के धरना देने पर वहां से आन्दोलनकारियों को उठाने का प्रयास किया। तभी आन्दोलनकारी भड़क उठे और बवाल हो गया। इसमें कई वाहनों को आग लगा दी गयी। कई पुलिस वाले अपनी जान बचाकर भागे। सवाल यह कि बिना पर्याप्त पुलिस फोर्स के क्यों जोर-जबरदस्ती से धरना दे रहे दलितों को खदेड़ने का प्रयास किया गया। क्या यह मौके के अफसरों की नासमझी नही है?

इन अफसरों के सहारे हैं सहारनपुर के हालात सुधारने की जिम्मेदारी: आईजी अजय आनंद, मंडलायुक्त एमपी अग्रवाल, डीआईजी जेके शाही, जिलाधिकारी नागेंद्र प्रसाद सिंह और एसएसपी सुभाष चंद दुबे के भरोसे सहारनपुर की जिम्मेदारी है औऱ आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि ये अफसर कितनी जिम्मेदारी से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। जिले का खुफिया तंत्र पूरी तरह से फेल है। दो दिन पहले ही प्रमुख सचिव गृह देवाशीष पांडा और डीजीपी सुलखान सिंह सहारनपुर का दौरा कर इन अफसरों को ताकीद कर चुके हैं कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। इन अफसरों पर इसका कितना असर हुआ..इसका अंदाजा आप आज की घटना से सहज ही लगा सकते हैं।










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