जानिये भारतीय मतदाताओं में ऐसी कौन-सी चीज की है कमी, जिससे चुनाव में मिलता है धन संस्कृति को बढ़ावा
भारत में चुनाव के दौरान धन संस्कृति को प्रोत्साहित करने वाला सबसे अहम कारक मतदाताओं के नैतिक मूल्यों में कमी आना है। विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने यहां शनिवार को एक ‘मीडिया सम्मेलन’ के दौरान यह बात कही। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
इटानगर: भारत में चुनाव के दौरान धन संस्कृति को प्रोत्साहित करने वाला सबसे अहम कारक मतदाताओं के नैतिक मूल्यों में कमी आना है। विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने यहां शनिवार को एक ‘मीडिया सम्मेलन’ के दौरान यह बात कही।
विशेषज्ञों की यह भी राय थी कि भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) एक तटस्थ निकाय के रूप में अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहा है, जिससे चुनावों के दौरान धन संस्कृति का खतरा आम हो गया है।
इस दौरान अरुणाचल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (एसीसीआई) के महासचिव टोको तातुंग ने कहा, ‘‘राजनीतिक विश्लेषक इस बात से सहमत हैं कि पैसे के बिना लोकतंत्र नहीं चल सकता है और चुनाव लड़ना या उम्मीदवार बनना पैसे के बिना संभव नहीं है।’’
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अरुणाचल इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया संघ (एईडीएमए) द्वारा अपने 11वें स्थापना दिवस के अवसर पर ‘चुनावों में धन संस्कृति’ विषय पर यह सम्मेलन आयोजित किया गया।
तातुंग ने कहा कि वर्ष 2019 के आम चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा करीब 600 अरब रुपये खर्च किये गये।
सेवानिवृत्त विंग कमांडर ग्याति कागो ने अरुणाचल प्रदेश में चुनावों को पैसा और मिथुन (राज्य पशु) का उत्सव करार देते हुए कहा कि अरुणाचली समाज के लोगों के नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है।
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कागो ने कहा कि वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में एक वोट की खरीद-बिक्री की औसत कीमत 25 हजार रुपये थी।
ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन (एएपीएसयू) के पूर्व महासचिव टोबोम दाई ने इस अवसर पर सुझाव दिया कि लोगों को इस खतरे को खत्म करने के लिए दृढ़ निर्णय लेना चाहिए।