कर्नाटक: आयकर विभाग की छापेमारी में 50 करोड़ रुपये मिलने के बाद कांग्रेस-भाजपा में जुबानी जंग

डीएन ब्यूरो

बेंगलुरु में हाल ही में आयकर विभाग के छापे में एक ठेकेदार से 42 करोड़ रुपये मिलने समेत विभिन्न लोगों से 50 करोड़ रुपये से अधिक की बेहिसाब नकदी बरामद होने के मामले में कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

आयकर विभाग की छापेमारी
आयकर विभाग की छापेमारी


बेंगलुरु:  बेंगलुरु में हाल ही में आयकर विभाग के छापे में एक ठेकेदार से 42 करोड़ रुपये मिलने समेत विभिन्न लोगों से 50 करोड़ रुपये से अधिक की बेहिसाब नकदी बरामद होने के मामले में कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया है।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कतील ने कहा कि यह पैसा कांग्रेस से जुड़ा है। हालांकि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कतील के आरोपों आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक भाजपा की प्रदेश इकाई ने सोमवार और मंगलवार को सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के इस्तीफे की मांग को लेकर विभिन्न जिला और तालुक मुख्यालयों में प्रदर्शन करने का फैसला किया है।

कतील ने कांग्रेस पर पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में खर्च के लिए कर्नाटक का ‘एटीएम’ (पैसा निकालने वाली मशीन) के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और कहा कि जब्त की गई नकदी कांग्रेस की है।

कतील ने जिला और तालुक इकाई के पदाधिकारियों के साथ बैठक के बाद पत्रकारों से कहा, 'कल और परसों, भाजपा सभी जिला और तालुक मुख्यालयों में विरोध प्रदर्शन करेगी।'

उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में लूटेरी सरकार है, जो धन उगाही कर रही है।

कतील ने कहा, 'जब हमने कहा कि राज्य में एटीएम सरकार है, तो कांग्रेस ने सबूत मांगा। आज मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने हमें सबूत दिया है।'

दक्षिण कन्नड़ से सांसद कतील ने दावा किया कि कुछ दिन पहले ही ठेकेदारों को 600 करोड़ रुपये जारी किए गए थे और फिर एक ठेकेदार के घर से 45 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि जब्त की गई।

सिद्धरमैया ने मैसूर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान आरोपों को खारिज करते हुए कहा, 'यह एक आधारहीन आरोप है। ठेकेदार किसी भी राजनीतिक दल से संबंधित नहीं होते हैं। न तो हम उनसे (ठेकेदारों से) मांगते हैं, न ही वे हमें देते हैं।'

 










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