महराजगंज: बरगदवां के घूसखोर थानेदार का नया पैंतरा.. चोरी और सीनाजोरी

डीएन ब्यूरो

महराजगंज जिले के बरगदवां थाने के चालबाज और शातिर एसओ अनिल कुमार ने डीजीपी मुख्यालय की जांच से बचने के लिए गजब का बहाना बनाया है। कैसे यह भ्रष्टाचारी दरोगा कोर्ट के आदेश के ढ़ाई महीने से अधिक बीत जाने के बाद भी गरीब पीड़ित महिला का मुकदमा दर्ज नही करता और जब मामला लखनऊ पहुंच जाता है तो पीड़ित महिला को ही झूठा बताने पर आमादा हो जाता है। पूरी खबर..

कोर्ट के आदेश को घूसखोर दरोगा ने फेंका रद्दी की टोकरी में
कोर्ट के आदेश को घूसखोर दरोगा ने फेंका रद्दी की टोकरी में


महराजगंज: जिले के बरगदवां थाने की इमिरती देवी अकेली पीड़ित नही है जिसे न्याय नही मिल पा रहा.. ऐसी अनगितन कहानियां हैं जिसमें गरीबों को न्याय के लिए तड़प-तड़प कर जान देने को मजबूर कर दिया जा रहा है।

बरगदवां थानेदार घूसकांड मामले में डीजीपी मुख्यालय का बड़ा एक्शन, सीओ नौतनवा करेंगे जांच

डाइनामाइट न्यूज़ की पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि ढ़ाई महीने पहले एक नवंबर 2017 को न्यायालय अपर सत्र न्यायाधीश, न्याय कक्ष संख्या 4, महराजगंज के कार्यालय से प्रकीर्ण वाद संख्या 583/2017 में लिखित सुस्पष्ट आदेश दिया गया कि "धारा-156(3) CRPC में वर्णित तथ्यों से संज्ञेय आपराधिक मामला प्रकट होता है। थानाध्यक्ष- बरगदवां को आदेशित किया जाता है कि वह उचित धाराओं में प्रथम सूचना रिपोर्ट पंजीकृत करते हुए इस मामले की विवेचना करायें।" 

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न्यायालय के आदेशों की क्यों उड़ायी धज्जियां
अब सोचिये ऐसा कौन सा कारण होगा.. जिसके चलते ढ़ाई महीने से न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ाने पर एक रिश्वतखोर दरोगा आमादा है।

पांच हजार की रिश्वत के बिना नही दर्ज होगा मुकदमा
बरगदवां थाना क्षेत्र के नारायणपुर निवासी इमिरती देवी जब इस आदेश की सत्य प्रतिलिपि लेकर थाने पहुंची तो थानेदार ने पांच हजार रुपये की रिश्वत मांगी और कहा कि जब तक पांच हजार रुपया नही दोगी तब तक तुम्हारा मुकदमा नही लिखूंगा..बहुत देख रखे हैं ऐसे आदेश..

शुरुआती दौर में ही भगा दिया था.. थाने से
रिश्वतखोर दरोगा के बारे में यहां गौर करने वाली बात यह है कि पीड़िता सबसे पहले जब सीधे थाने अपनी एफआईआर लिखवाने गयी तो उसकी एफआईआर दबंगों के प्रभाव में थानेदार ने नही लिखी और उसे थाने से भगा दिया। फिर जब पीड़िता ने थक-हार कर न्यायालय की गुहार लगायी औऱ 156(3) से FIR का आदेश प्राप्त किया, इसके बाद भी घुसखोर दरोगा ने ढ़ाई महीने तक मुकदमा नही लिखा। 

निष्पक्ष विवेचना पर लगा प्रश्नचिन्ह
अब ऐसे में आप सहज ही अंदाजा लगाइये कि सारी ताकत लगा देने के बाद यदि पीड़िता का मुकदमा लिख ही गया तो फिर इसी थानेदार के मातहत आने वाले किसी दरोगा को इसकी जांच बतौर विवेचक मिलेगी तो क्या उसकी निष्पक्ष जांच संभव है और यह घूसखोर दरोगा इस गरीब महिला को न्याय मिलने देगा?

डीजीपी मुख्यालय ने बैठायी जांच, घूसखोर दरोगा जुटा कुर्सी बचाने में

खबर के बाद मचा हड़कंप, जांच अधिकारी को गुमराह करने में जुटा एसओ
घूसखोरी के इस प्रकरण की खबर जब डाइनामाइट न्यूज़ ने प्रकाशित की तो डीजीपी मुख्यालय हरकत में आया और आनन-फानन में इस अत्यंत गंभीर प्रकरण की जांच सीओ नौतनवा को सौंपी गयी। जैसे ही इस जांच की भनक थानेदार अनिल कुमार को लगी उसने उच्चाधिकारियों को गुमराह करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने शुरु कर दिये। 

शातिर दिमाग का चालबाज दरोगा
शातिर दिमाग का चालबाज दरोगा अपने बचाव में झूठी दलीलें देने लगा कि जिस व्यक्ति ने वीडियो बनाया है वह अपराधी किस्म का है और उसे जेल भेजा जा चुका है। न्यायालय का मुकदमा दर्ज करने संबंधी कोई आदेश उसे ढ़ाई महीने बाद भी नही मिला है। वीडियो बनाने वाला व्यक्ति औऱ महिला एक ही गांव के हैं औऱ साजिश रचकर उसे फंसा रहे हैं। 

चोर की दाढ़ी में तिनका
सच्चाई क्या है डीजीपी मुख्यालय द्वारा बैठायी गयी जांच में साफ हो ही जायेगा लेकिन थानेदार ने रिश्वत क्यों मांगी और इससे भी बड़ी बात कि कोर्ट के आदेश के ढ़ाई महीने बाद भी महिला को क्यों दौड़ाते रहे और उसका मुकदमा क्यों नही लिखे? क्या चोर की दाढ़ी में तिनका नही है? 

आखिर कोर्ट की शरण लेने को क्यों मजबूर हुई महिला
जब महिला कोर्ट के आदेश की सत्य प्रतिलिपि देती रही तब भी थानेदार कैसे रहते रहे कि उनको कोर्ट का आदेश नही मिला है? इससे भी बड़ी बात कि जब सीएम, डीजीपी और एसपी का साफ निर्देश है कि किसी भी पीड़ित का तत्काल मुकदमा लिखा जाय तो फिर इस महिला को शुरुआती दौर में ही थाने से क्यों भगाया गया..आखिर महिला को क्यों मुकदमा लिखाने के लिए कोर्ट की शरण में जाने को मजबूर होना पड़ा? 

गाज गिरना तय
ये ऐसे ज्वलंत सवाल है जिसके जाल में यह थानेदार बुरी तरह उलझ गया है और निष्पक्ष जांच के बाद इसके ऊपर गाज गिरना तय है। 

 










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