IIT में लिंगानुपात में सुधार के प्रयास को लेकर बड़ा खुलासा, पढ़ें ये रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

आईआईटी की पहली महिला निदेशक बनने वालीं प्रीति अघालयम के अनुसार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में महिलाएं अभी भी अल्पसंख्यक हैं और परिसर में लिंगानुपात में सुधार के लगातार प्रयासों के बावजूद एक लंबा रास्ता तय करना है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: आईआईटी की पहली महिला निदेशक बनने वालीं प्रीति अघालयम के अनुसार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में महिलाएं अभी भी अल्पसंख्यक हैं और परिसर में लिंगानुपात में सुधार के लगातार प्रयासों के बावजूद एक लंबा रास्ता तय करना है।

पहला आईआईटी 1951 में खड़गपुर में स्थापित किया गया था लेकिन सात दशकों के बाद किसी महिला को इस प्रतिष्ठित संस्थान की प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया है। अघालयम जंजीबार में आईआईटी के नए परिसर की प्रभारी निदेशक नियुक्त की गई हैं।

वर्ष 1959 में स्थापित आईआईटी-मद्रास, अंतरराष्ट्रीय परिसर शुरू करने वाला देश का पहला आईआईटी बन गया है। तंजानिया के जंजीबार में नया संस्थान अक्टूबर में अपना पहला शैक्षणिक सत्र शुरू करने के लिए तैयार है।

अघालयम (49) ने पिछले कुछ महीनों में भारत से जंजीबार की यात्राएं की हैं और वह चीजों को गति देने में व्यस्त हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए, यह तथ्य कि यह विदेश में आईआईटी का पहला परिसर है, मेरे आईआईटी प्रमुख बनने वाली पहली महिला होने से अधिक महत्वपूर्ण है। यह मेरे लिए केवल परंपरा को तोड़ने के बारे में नहीं है। एक बार जब आप आईआईटी से जुड़ते हैं तो जीवनभर उसी से जुड़े रहते हैं।’’

उन्होंने जंजीबार से एक साक्षात्कार में डाइनामाइट न्यूज़ से कहा, ‘‘मैंने आईआईटी-मद्रास से पढ़ाई की। मैंने पूर्व में आईआईटी-बंबई में काम किया और 14 वर्षों से आईआईटी-मद्रास में पढ़ा रही हूं। इसलिए यह उस प्यार और जुनून का विस्तार है कि आईआईटी में चीजें कैसे काम करती हैं जो इसके लिए मेरे मन में है...मेरे कई करीबी मित्र आईआईटी से हैं और मैं अपने पति से भी आईआईटी मद्रास में मिली थी।’’

उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब कई आईआईटी परिसर में विषम लिंगानुपात में सुधार के लिए सचेत प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह सच है कि आईआईटी में महिलाएं अल्पसंख्यक रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में हालात में थोड़ा सुधार हुआ है लेकिन समस्या अभी भी मौजूद है और यह सभी स्तरों पर है-विद्यार्थियों और संकाय दोनों में। हम आईआईटी-मद्रास में लगभग 12 प्रतिशत महिला संकाय हैं। समस्या परिसरों में लैंगिक समावेशिता के बारे में नहीं है, बल्कि प्रौद्योगिकी संस्थानों के आसपास की संपूर्ण धारणा के बारे में है।’’

भारत में इंजीनियरिंग कॉलेजों ने 1990 के दशक के बाद से एक लंबा सफर तय किया है जब लड़कों और लड़कियों के दाखिले का अनुपात 10:1 था। 2000 के दशक की शुरुआत में यह अनुपात घटकर 7:1 हो गया और 2000 के दशक के मध्य और अंत में 4:1 हो गया। 2014 में इसमें और गिरावट आई जब अधिकतर आईआईटी परिसरों में लड़कियों की संख्या 5 प्रतिशत से 12 प्रतिशत के बीच थी।

वर्ष 2018 में छात्राओं के लिए अतिरिक्त कोटा शुरू होने से एक साल पहले, भारत में आईआईटी ने 995 लड़कियों और 9,883 लड़कों को प्रवेश दिया। 2022-23 शैक्षणिक सत्र के लिए प्रवेश के दौरान, 3310 लड़कियों, या कुल सीट संख्या का 20 प्रतिशत, ने 23 आईआईटी में दाखिला लिया। 2023-24 शैक्षणिक सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया अभी जारी है।

यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी नियुक्ति लैंगिक समावेशिता के बारे में एक मजबूत संदेश भेजने के लिए आईआईटी-मद्रास द्वारा एक सचेत प्रयास है, अघालयम ने कहा, ‘‘हर बार जब हम आईआईटी-मद्रास की टीम के रूप में जंजीबार का दौरा करते थे, तो हमने देखा कि उनके पक्ष में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी मजबूत था। इसलिए, यह महत्वपूर्ण था कि हम इसे सोच-समझकर करें और हमारा प्रयास नए परिसर में लिंग संतुलन बनाने का भी होगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अभी इसके आसपास कोई कठोर मानदंड नहीं हैं, लेकिन आने वाले वर्षों में, हम निश्चित रूप से इसे प्राप्त करने की दिशा में काम करेंगे।’’

अघालयम ने 1995 में आईआईटी-मद्रास से केमिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक और 2000 में मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की। उन्होंने एमआईटी, कैम्ब्रिज में पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर और आईआईटी-बंबई में संकाय के रूप में काम किया है।

वह 2010 में आईआईटी-मद्रास में शामिल हुईं, जहां वह वर्तमान में केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर हैं। अघालयम ने कहा कि उन्हें हमेशा से यकीन था कि वह उद्योग में शामिल नहीं होना चाहतीं, बल्कि शिक्षाविद के रूप में अपना करियर बनाना चाहती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं शिक्षाविदों के परिवार से हूं। मेरी मां, मेरे पिता, मेरे विस्तृत परिवार से जुड़ा हर कोई शिक्षाविद है। इसलिए यही परिवार में चलता है। मैं कक्षा आठवीं के बाद से शिक्षाविद के रूप में करियर अपनाने के बारे में निश्चिंत थी और यह एक संतुष्टिदायक यात्रा रही है।’’

अघालयम आईआईटी-मद्रास में ‘जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टिट्यूशंस’ (जीएटीआई) कार्यक्रम के लिए नोडल अधिकारी रही हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘कार्यक्रम के तहत मुझे और मेरे सहकर्मियों को हर क्षेत्र में लिंग-पृथक डेटा को देखने का मौका मिला, जिससे हमें खुद को परखने में मदद मिली। हमने ऐसी ठोस योजनाएं बनाईं जो संस्थान को संख्या और अवसर दोनों के संदर्भ में लैंगिक समानता प्रदान कर सकें। ये कदम नए परिसर में भी मेरे मिशन का हिस्सा होंगे।’’

जंजीबार में आईआईटी-मद्रास के परिसर की स्थापना के लिए पिछले सप्ताह एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए थे। जंजीबार पूर्वी अफ्रीका के तट पर तंजानिया का द्वीपसमूह है।

कई आईआईटी को मध्य-पूर्व और दक्षिण एशियाई देशों से अपने परिसर स्थापित करने के लिए अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं। आईआईटी-दिल्ली संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में एक कैंपस स्थापित कर रहा है। मिस्र, थाईलैंड, मलेशिया और ब्रिटेन में भी आईआईटी परिसर स्थापित करने की योजना है।










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