DN Exclusive: देखिये कैसे 43 सालों से लंबित पड़ी सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना को जमीन पर उतारा केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने

डीएन ब्यूरो

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जोधपुर के युवा सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत को जब भारत सरकार के जल शक्ति जैसे भारी भरकम मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया तो बहुत लोगों को आश्चर्य हुआ लेकिन अपने अब तक के छोटे से कार्यकाल में शेखावत ने दिन-रात मेहनत कर पीएम के सपने को साकार किया है। जिसका सबसे बड़ा सबूत है 43 सालों से लंबित पड़ी सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना को पूरा कर जमीन पर उतारना। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:

43 सालों से लंबित थी सरयू नहर परियोजना
43 सालों से लंबित थी सरयू नहर परियोजना


लखनऊ/बलरामपुर: पिछले 43 सालों से लंबित पड़ी सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना (Saryu Canal Project) का शनिवार को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया। 

उद्घाटन समारोह का दृश्य

इस मौके पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत विशेष तौर पर मौजूद रहे। 

लोगों में इस बात को लेकर जबरदस्त चर्चा रही कि जो योजना 1971 में शुरु हुई। 43 साल से पूरी नहीं हुई उसे कैसे केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बेहद कम समय में पूरा कर दिखाया। इस योजना के लोकार्पण के बाद आम लोगों में काफी उत्साह दिखा। 

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत जनसभा को संबोधित करते हुए

इस योजना के पांच नदियों को आपस में जोड़ा गया है। इससे तराई और पूर्वांचल के 9 जिलों के किसानों को फायदा होगा। उम्मीद है इन जिलों के किसानों की फसल पानी के अभाव में नहीं सूखेगी, जिस नदी में पानी कम होगा उसे दूसरे नदी के पानी से रिचार्ज कर दिया जाएगा।

सरयू नहर परियोजना के बारे में जानें:

इस परियोजना के तहत पांच नदियों घाघरा, सरयू, राप्ती, बाणगंगा और रोहिणी को आपस में जोड़ा गया है। शुरुआत में 100 करोड़ के लागत की इस योजना पर 43 साल बाद 9800 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं।

बड़ी नदी के पानी को छोटी नदियों तक पहुंचाने के लिए बैराज बनाए गए हैं। इनसे पांच नहरें निकाली गयी हैं। इन नहरों से बहराइच, श्रावस्ती, गोण्डा, बलरामपुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, महराजगंज और गोरखपुर के 29 लाख किसानों को सिंचाई पहले से बेहतर मिल सकेगी। 

1971 में इस परियोजना की नींव पड़ी थी तब इसे लेफ्ट बैंक घाघरा कैनाल नाम दिया गया था। गोण्डा और बहराइच जिलों के लिए इसे तैयार किया जाना था, लेकिन 1982 में इसमें सात और जिले जोड़ दिए गए, तब से लेकर इसके काम में सुस्ती ही रही। जमीन अधिग्रहण, पैसे की कमी, दूसरे विभागों की एनओसी जैसे उलझनों में मामला लटका रहा। अब यह योजना साकार हो सकी है। 










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