New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा सीटों के पुनः परिसीमन की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 170(3) का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि देश में अगली जनगणना (2026 के बाद) तक किसी भी राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या में वृद्धि या परिसीमन नहीं किया जा सकता।
क्यों दायर की गई थी याचिका?
दरअसल, यह याचिका आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा 26(1) के क्रियान्वयन की मांग को लेकर दायर की गई थी, जिसमें आंध्र प्रदेश में सीटों की संख्या 175 से बढ़ाकर 225 और तेलंगाना में 119 से बढ़ाकर 153 करने का प्रस्ताव है। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि इस अधिनियम को लागू हुए दस वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जिससे दोनों राज्यों के नागरिक न्यायसंगत राजनीतिक प्रतिनिधित्व से वंचित हैं।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार और भारत निर्वाचन आयोग ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 170(3) और 84वां संविधान संशोधन (2002) यह स्पष्ट रूप से कहता है कि 2026 के बाद की पहली जनगणना से पहले परिसीमन की अनुमति नहीं है। दोनों पक्षों ने यह भी स्पष्ट किया कि एक सामान्य कानून (statutory law) कभी भी संविधान के ऊपर नहीं हो सकता।
जम्मू-कश्मीर में हुए परिसीमन का दिया हवाला
याचिकाकर्ताओं ने अपने पक्ष में जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए परिसीमन का हवाला दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जम्मू-कश्मीर का परिसीमन एक विशिष्ट स्थिति में, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत किया गया था, जो अन्य राज्यों पर लागू नहीं होता।
कोर्ट ने क्या दिया तर्क?
कोर्ट ने दो टूक कहा कि आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम की धारा 26 को संविधान से ऊपर नहीं माना जा सकता और इसे संविधान की समग्र व्यवस्था के अनुरूप ही लागू किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि परिसीमन पर यह रोक जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में किए गए प्रयासों को सम्मान देने और बेहतर जनसंख्या प्रबंधन करने वाले राज्यों को नुकसान से बचाने के लिए है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक 2026 के बाद की जनगणना नहीं होती, तब तक आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में न तो सीटों की संख्या बढ़ाई जा सकती है और न ही परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इसलिए याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया गया।