नई दिल्ली: बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे – जैसे नजदीक आ रहे है। वैसे-वैसे सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है। इसी बीच ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी बिहार दौरे पर पहुंचे। राहुल गांधी के बिहार पहुंचते ही सूबे का सियासी पारा एकदम सातवें आसमान पर पहुंच गया। सालों से सोई कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी ने जान फूंकने की पूरी कोशिश की। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपने नेताओं की पूरी फौज के साथ बिहार की रणभूमि में उतरे, जहां उनके सियासी एजेंडे के केंद्र में दलित समाज रहा। राहुल गांधी ने बिहार में दलित छात्रों के साथ बातचीत से लेकर सिनेमा देखने तक की गजब की स्ट्रैटेजी बनाई है, जिससे जनता में पकड़ बनाने की पूरी कोशिश की गई।
दलित पर फोकस और दलितों की ओर कांग्रेस की वापसी
आपको बता दें कि राहुल गांधी ने पिछले 5 महीनों में 4 बार बिहार का दौरा किया। कल उन्होंने दरभंगा जिले के अंबेडकर छात्रावास में दलित छात्रों के साथ शिक्षा न्याय संवाद किया। इसके बाद पटना में फूले पिक्चर देखी। यहां जिला प्रशासन ने निषेधाज्ञा लगा दी थी और राहुल को रोकना चाहता था लेकिन रोक नहीं पाए।
कल दरभंगा की सड़कों पर पैदल मार्च करते हुए राहुल गांधी नजर आए। ठिकाना था दरभंगा का अंबेडकर छात्रावास यानी दलितों का सरकारी छात्रावास। निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए राहुल गांधी वहां पहुंचे। फिर अंबेडकर छात्रावास और दलितों के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा दी। राहुल गांधी दिल्ली से सीधे दरभंगा पहुंचे थे, जहां तय कार्यक्रम के मुताबिक उन्हें अंबेडकर छात्रावास में एक जनसभा को संबोधित करना था। लेकिन स्थानीय प्रशासन ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए उस स्थान की अनुमति नहीं दी और उनके सभा स्थल में बदलाव कर दिया गया। इस आदेश को न मानते हुए राहुल गांधी गाड़ी से उतरकर पैदल ही निकल पड़े और सभा स्थल की ओर वहां सभा को संबोधित भी किया। इस कारण राहुल गांधी के साथ-साथ कांग्रेस के कई नेताओं पर लहेरियासराय थाने में 20 नामजद और 100 अज्ञात लोगों के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस से भिड़ंत का वीडियो खूब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
एफआईआर दर्ज होने के सवाल पर राहुल ने कहा ये सब मेरे लिए मेडल हैं। पहले से ही मुझे 30-32 मेडल मिल चुके हैं। उन्होंने 75 स्थानों पर टाउनहॉल और छात्र संवाद के जरिए युवाओं से शिक्षा, नौकरी और भागीदारी पर बात की। इस दौरान राहुल गांधी ने तीन प्रमुख बातें कहीं।
- देश में जातीय जनगणना, मेरे कहने पर नरेंद्र मोदी जातीय जनगणना पर मजबूर हुए
- निजी क्षेत्रों में ओबीसी, ईबीसी, एससी और एसटी के लिए आरक्षण
- SC-ST सब प्लान के तहत फंडिंग की गारंटी
बिहार में एक दौर था जब दलित, ब्राह्मण और अल्पसंख्यक कांग्रेस के प्रमुख वोट बैंक हुआ करते थे, लेकिन 1995 के बाद कांग्रेस का ये आधार धीरे-धीरे खिसकता गया। मंडल राजनीति, क्षेत्रीय दलों का उभार और सामाजिक न्याय की नई परिभाषाओं ने कांग्रेस को राज्य की राजनीति में हाशिए पर पहुंचा दिया। जिसके बाद धीरे-धीरे- धीरे कांग्रेस की तरफ से दलित समाज का मोहभंग होता चला गया। इसी साल अक्टूबर में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
बिहार में दलितों की आबादी करीब 19% है, जो राज्य की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभा सकती है। साल 2005 में नीतीश कुमार की सरकार ने दलितों को ‘महादलित’ श्रेणी में बांटकर इस वोट बैंक को अपने पक्ष में मोड़ने में कामयाबी हासिल की। इस दरमियान पासवान जाति को छोड़ बाकी 21 जातियों को महादलित श्रेणी में शामिल किया गया था, जिसे बाद में पासवानों को भी जोड़ लिया गया। इस सामाजिक जोड़-तोड़ का असर ये हुआ कि दलितों का बड़ा वर्ग JDU और NDA की ओर झुक गया।
यहां गौर करने वाली बात है कि बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से 38 सीटें अनुसूचित जाति और 2 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा 20-25 ऐसी सीटें भी हैं जहां दलित समाज का वोट चुनावी हार और जीत का समीकरण तय करते हैं। इसलिए बिहार में दलितों की राजनीतिक अहमियत निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
कांग्रेस ने चुनाव को लेकर कई प्रयोग किए हैं। पहले कन्हैया कुमार के नेतृत्व में बिहार जोड़ो यात्रा चला रही है। इस यात्रा के जरिए पूरे राज्य में पार्टी को फिर से जिंदा करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस ने दलित समाज से आने वाले राजेश राम को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। राजेश राम को पार्टी की कमान देकर कांग्रेस ने दलितों के हितैषी होने का इशारा किया। अंबेडकर की तस्वीर और संविधान की किताब लिए राहुल गांधी यही संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं।
इसके बाद राहुल पटना के सिटी सेंटर मॉल के आइनाक्स हाल में सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ फूले फिल्म देखी। महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले उर्फ ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी व समाजसुधारक सावित्रीबाई फुले के जीवन पर यह फिल्म आधारित है।
जातीय खांचों में बंटे बिहार में राहुल के लिए राहें आसान नहीं हैं। मौजूदा गठबंधन के दौर में देखना होगा उनकी मेहनत कितनी सफल होगी।

