Fatehpur: पहले की तुलना में अब रामलीला काफी बदल गयी है। पहले जहां रामलीला में भक्ति गाने बजते थे। वहीं अब फिल्मी गानों पर भी रामलीला का मंचन नजर आ रहा है। जनपद फतेहपुर के कल्याणपुर थाना क्षेत्र के ग्राम रेवाड़ी बुजुर्ग में आयोजित रामलीला कार्यक्रम के मंच पर फिल्मी गानों पर नर्तकियों का प्रदर्शन कराया गया।
यह दृश्य देखकर स्थानीय लोगों में गहरी नाराजगी व्याप्त है। प्रश्न यह उठता है कि जिस मंच पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की लीला का मंचन होना चाहिए, वहां फिल्मी धुनों पर नृत्य का क्या स्थान है?
रामलीला भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर है, जिसमें भगवान श्रीराम के जीवन, त्याग, धर्मपालन, और आदर्शों को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसका उद्देश्य समाज को नीति, मर्यादा और आदर्श जीवन का संदेश देना होता है। लेकिन आज के समय में कुछ आयोजक इस परंपरा को मनोरंजन का साधन बना रहे हैं — जहाँ धर्म और संस्कृति की जगह फिल्मी गानों, डीजे और नर्तकियों का प्रदर्शन हावी होता जा रहा है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि ऐसे आयोजन न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाते हैं बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के संस्कारों को भी दूषित करते हैं। एक ग्रामीण ने कहा, “रामलीला का अर्थ भगवान श्रीराम की लीला है, न कि मंच पर नर्तकियों का प्रदर्शन। यह हमारे धर्म और संस्कृति का अपमान है।”
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प्रशासन को भी ऐसे आयोजनों की अनुमति देते समय यह देखना चाहिए कि कार्यक्रम का स्वरूप धार्मिक-सांस्कृतिक है या मनोरंजन प्रधान। यदि आयोजक सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर फिल्मी नृत्य प्रस्तुत करा रहे हैं, तो यह न केवल नियमों का उल्लंघन है बल्कि आस्था के साथ खिलवाड़ भी है।
रामलीला मंचन में सामान्यतः बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, युद्धकांड आदि प्रसंगों का मंचन किया जाता है — जिसमें संवाद, अभिनय, भक्ति गीत, कीर्तन और प्रसंगानुसार नृत्य सम्मिलित होते हैं, लेकिन वे धार्मिक भावनाओं और पवित्रता से ओत-प्रोत होते हैं, न कि फिल्मी गानों से।
ऐसे आयोजनों पर रोक लगाना और आयोजकों से जवाब तलब करना आवश्यक है ताकि भविष्य में कोई भी धार्मिक मंच अशोभनीय मनोरंजन का माध्यम न बने।
समाज और प्रशासन दोनों को यह समझना होगा कि यदि रामलीला के मंच पर भी भौंडापन परोसा जाने लगा, तो संस्कृति और आस्था दोनों का पतन निश्चित है।