Fatehpur: फतेहपुर के असोथर विकासखंड की सरकंडी ग्राम पंचायत इन दिनों सुर्खियों में है। वजह है, आवास घोटाले की सतही जांच, जिसमें करोड़ों की धांधली की परतें धीरे-धीरे खुल रही हैं। लेकिन यह कहानी सिर्फ आवास घोटाले की नहीं है। यह कहानी है उस ढाई दशक की हुकूमत की, जिसने एक गांव को अपने रसूख और सत्ता के साये में रखा।
सत्ता का दरख्त और “संतोष महाराज”
सरकंडी में बीते 20 वर्षों से एक ही परिवार का राज रहा। कभी ग्राम प्रधान की कुर्सी पर, तो कभी आरक्षित सीट पर रबर स्टैंप उम्मीदवारों के जरिए—सत्ता हमेशा संतोष द्विवेदी और उनके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही। एक वक्त था जब संतोष द्विवेदी गार्ड की नौकरी करते थे। विवादों में फंसकर नौकरी छोड़ी, फिर फैक्ट्री की चौकीदारी से शुरुआत की। इसके बाद जमीन, मिट्टी और मौरंग के कारोबार में हाथ डाला और पैसा, शोहरत, रसूख सब कुछ हासिल कर लिया। आज गांव ही नहीं, पूरे इलाके में वे “महाराज” कहलाते हैं।
भ्रष्टाचार का जाल
ग्रामीणों का आरोप है कि आवास योजना में घर दिलाने के बदले मोटी रकम वसूली गई। यही नहीं, मनरेगा में बिना काम के ही भुगतान, मध्यान्ह भोजन में गड़बड़ी, स्वच्छ भारत मिशन और 15वें वित्त आयोग की धनराशि तक में हेराफेरी की बातें अब खुलकर सामने आने लगी हैं। ग्रामीण पहले चुप रहते थे, लेकिन लखनऊ से आई जांच टीम के सामने उन्होंने खुलकर बोल दिया। करीब 1600 आवासों के मामले में वसूली के आरोप ने प्रशासन की नींद उड़ा दी।
विपक्ष का खेल और सत्ता का सहारा
कहानी का दूसरा पहलू भी है। संतोष द्विवेदी के बढ़ते रसूख और साम्राज्य ने उनके राजनीतिक विरोधियों को बेचैन कर दिया। आरोप है कि जांच की आंच केवल भ्रष्टाचार की वजह से नहीं, बल्कि सत्ता के गलियारों में चल रही साजिश का हिस्सा भी है।
विरोधियों ने शतरंज की बाजी बड़ी चालाकी से बिछाई है—मोहरें आगे हैं, लेकिन असली ताकत पीछे छिपी है। उधर संतोष द्विवेदी भी पीछे हटने वाले नहीं। सत्ता के बड़े मंत्रियों से नजदीकी और लखनऊ में डेरा डालना इस बात का सबूत है कि वे अपने साम्राज्य को बचाने के लिए हर कोशिश कर रहे हैं।
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शोहरत और महत्वाकांक्षा
संतोष द्विवेदी का दायरा गांव की राजनीति से आगे निकल चुका है। उन्होंने शॉर्ट फिल्मों में किरदार निभाए, कई बार मंत्री की भूमिका में नजर आए। शायद यही वजह है कि अब वे ब्लॉक प्रमुख के बाद विधायकी तक की महत्वाकांक्षा रखने लगे हैं। लेकिन यही शोहरत उनके लिए मुसीबत भी बन गई है। विरोधी खेमा अब उनकी छवि को “भ्रष्टाचार” की परतों में उलझाकर गिराने की पूरी तैयारी में है।
सवाल वही – क्या टूटेगा साम्राज्य?
सरकंडी के लोग अब बोलने लगे हैं। जांच की आंच शासन तक पहुंची है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ राजनीतिक खेल है या फिर वास्तव में भ्रष्टाचार की सच्चाई सामने आएगी? ढाई दशक से खड़ा “सत्ता का दरख्त” क्या वास्तव में गिर जाएगा या फिर सत्ता-सहयोग से फिर खड़ा हो जाएगा?

