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इलाहाबाद हाईकोर्ट का अनोखा फैसला: व्हाट्सएप चैट और गूगल मैप से मिला मां को न्याय, जानें पूरा मामला

व्हाट्सएप चैटिंग और गूगल मैप ने मां की ममता की गवाही खुद ही है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की खास खबर
Post Published By: Asmita Patel
Published:
इलाहाबाद हाईकोर्ट का अनोखा फैसला: व्हाट्सएप चैट और गूगल मैप से मिला मां को न्याय, जानें पूरा मामला

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बेटियां चाहे चाची, दादी, नानी या पापा की लाडली क्यों न हों, लेकिन उनकी तुलना मां से नहीं की जा सकती। युवावस्था की दहलीज पर खड़ी बेटी के लिए मां का साथ सबसे जरूरी होता है, क्योंकि मां जैसा हितैषी इस दुनिया में कोई और नहीं हो सकता।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की अदालत ने उस मामले में दी। जिसमें एक मां ने अपनी बेटी की कस्टडी के लिए याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने बेटी को मां के हवाले करने का आदेश देते हुए पिता को तीन हफ्ते के भीतर बेटी को दिल्ली में रह रही मां को सौंपने का निर्देश दिया।

व्हाट्सएप चैटिंग और गूगल मैप बने मां की ममता के सुबूत

मां ने कोर्ट को बताया कि 2022 की व्हाट्सएप चैटिंग और गूगल मैप की लोकेशन इस बात का सबूत हैं कि उन्होंने बेटी से संपर्क करने की लगातार कोशिश की, लेकिन न मिलने दिया गया और न ही बात कराई गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें सरकारी आवास से निकाल कर सर्वेंट क्वार्टर में शिफ्ट किया गया ताकि वह मानसिक रूप से टूटकर घर छोड़ दें।

बेटी को सुरक्षित मां तक पहुंचाएं: कोर्ट

कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि पिता आदेश का पालन नहीं करते हैं, तो मां को बाल कल्याण समिति में शिकायत दर्ज कराने का अधिकार होगा। साथ ही, एक महिला पुलिस अधिकारी और एक योग्य बाल परामर्शदाता बेटी को मां तक सुरक्षित पहुंचाने में मदद करेंगे। लखनऊ पुलिस आयुक्त यह सुनिश्चित करेंगे कि पति, जो एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी हैं, अपनी स्थिति का दुरुपयोग कर आदेशों को प्रभावित न करें।

जानें क्या है मामला

दिल्ली के एक महाविद्यालय में प्रवक्ता पद पर कार्यरत महिला की शादी 2012 में गोरखपुर निवासी एक आईआरएस अधिकारी से हुई थी। शादी के बाद वे कटवा, पटना, दानापुर और लखनऊ में साथ रहे। नवंबर 2012 में बेटी का जन्म हुआ, लेकिन बाद में दंपती के बीच विवाद बढ़ा और मामला तलाक तक पहुंच गया। पत्नी ने घरेलू हिंसा का मामला भी दर्ज कराया और बेटी की कस्टडी की अर्जी दी।

ट्रायल कोर्ट के फैसले पर आपत्ति

स्थानीय अदालत ने बेटी के बयान के आधार पर मां की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि वह पिता संग रहना चाहती है। साथ ही अदालत ने कहा कि हिरासत की अर्जी घरेलू हिंसा कानून के बजाय ‘हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम’ के तहत दी जानी चाहिए थी। इसके खिलाफ महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।

बेटी के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता दी जाए

याची की अधिवक्ता विजेता सिंह ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय पर सवाल उठाते हुए कहा कि युवावस्था में बेटी को मां की जरूरत होती है। घर में दादा-दादी गंभीर बीमार हैं और सभी नौकर पुरुष हैं। ऐसे में बेटी का सर्वोत्तम हित मां के पास रहना है न कि सिर्फ बयान के आधार पर फैसला लेना।

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