उत्तर प्रदेश: शिक्षिका ने खानाबदोश जनजाति के बच्चो को दिया नया जीवन, पढ़िए ये दिल छू लेने वाली खबर

डीएन ब्यूरो

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के एक सरकारी स्कूल की अध्यापिका ने खानाबदोश जनजाति के 40 बच्चों को भीख मांगने की प्रथा से निजात दिलाकर उन्हें एक स्कूल में सफलतापूर्वक दाखिला दिलाया और उनके जीवन बदल दिया। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाकर दिया नया जीवन
बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाकर दिया नया जीवन


शाहजहांपुर: उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के एक सरकारी स्कूल की अध्यापिका ने खानाबदोश जनजाति के 40 बच्चों को भीख मांगने की प्रथा से निजात दिलाकर उन्हें एक स्कूल में सफलतापूर्वक दाखिला दिलाया और उनके जीवन बदल दिया।

जिले के जलालाबाद थाना क्षेत्र के बझेड़ा गांव की प्राथमिक विद्यालय की अध्यापिका सीता त्रिवेदी ने व्यक्तिगत रूप से कलाबाज समुदाय के बच्चों के घरों का दौरा किया और उनके माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए राजी किया।

राज्य में हाशिये पर पड़ी खानाबदोश जनजातियों में से कलाबाज एक है और इस जनजाति के लोग कलाबाज़ी कर या भीख मांग कर अपनी आजीविका कमाते हैं।

सीता त्रिवेदी ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया की 2019 से वह बझेड़ा प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका है और उन्हें बाल गणना का काम दिया गया था। जब वह गांव में पहुंची तो लोगों ने उनसे कहा गया कि 'उधर मत जाना वहां कलाबाजों की बस्ती है।' हालांकि हिम्मत कर इसके बाद भी जब वह इस बस्ती में पहुंची तो उन्होंने पढ़ने वाले बच्चों के बारे में पूछा तो महिलाओं ने बताया कि उनकी बस्ती से कोई बच्चा नहीं पढ़ता।

कारण पूछने व शिक्षा का महत्व बताने पर महिलाओं ने उनका उपहास उड़ाते हुए कहा, 'यहां कितनी मास्टरनी आई और चली गई आप भी जाकर अपना काम करो।'

त्रिवेदी ने पुरानी स्मृतियों को भी साझा किया। बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने के अपने प्रयासों में उनको कलाबाज बुजुर्गों के विरोध का भी सामना करना पड़ा।

उन्होंने कहा, 'मैं कई बार हर घर में गयी और बड़ों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया। मैंने उन्हें साधारण पृष्ठभूमि के बच्चों के शिक्षित होने के बाद अधिकारी और सफल उद्योगपति बनने की कहानियां सुनाईं। उसका उन पर प्रभाव पड़ा और फिर उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया।''

इस दौरान त्रिवेदी को चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि जो बच्चे अपनी कला दिखाने व मांगने चले जाते हैं, उन्हें वह विद्यालय समय के बाद दो घंटे पढ़ाती हैं। इसी बीच विद्यालय में बनने वाले मध्यान्ह भोजन में कलाबाज समुदाय के बच्चों के साथ अन्य जातियों के बच्चों ने भोजन करना बंद कर दिया। इसके बाद उन्होंने छात्रों के परिजनों को बुलाकर जाति धर्म के इस भेदभाव को खत्म किया और नतीजा यह है कि अब सभी बच्चे मध्यान भोजन एक साथ करते हैं।

त्रिवेदी ने कहा कि वह अक्सर इन बच्चों के लिए कपड़े और किताबें खरीदती हैं क्योंकि उनके माता-पिता के पास पर्याप्त पैसे नहीं होते हैं।

जिलाधिकारी उमेश प्रताप सिंह ने सीता त्रिवेदी के प्रयासों की सराहना करते हुए 'पीटीआई-भाषा' को बताया, ''उन्होंने (सीता) 40 बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा है और यही बच्चे समाज हित में आगे बढ़ेंगे, शिक्षित होंगे।''

सिंह ने दावा किया कि इस प्रयास से जातिगत आधारित जो कुरीतियां थी वह भी दूर हुई है, सभी बच्चे आपस में सामन्जस्य बनाकर विद्यालय में ही मध्यान्ह भोजन कर रहे हैं।

बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) रणवीर सिंह ने कहा कि शिक्षक द्वारा किए गए प्रयास सराहनीय हैं। हमें उम्मीद है कि अन्य स्कूलों में भी ऐसे प्रयास किए जाएंगे ताकि जिले का एक भी बच्चा स्कूल से दूर न रहे।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार बीएसए ने कहा कि विद्यालय में 40 कलाबाज जाति के बच्चे शिक्षा अर्जित कर रहे हैं और फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे हैं। बच्चों के अंदर शिक्षा प्राप्त करने की ललक हमने देखी है। उन्होंने बताया कि हमारी अध्यापिका का इस कार्य में लोगों ने मजाक भी बनाया परंतु वह निराश नहीं हुई आज उसी का प्रतिफल है कि बच्चे और उनके अभिभावक दोनों खुश हैं।










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