UP News: वाराणसी में जलती चिताओं के बीच नगरवधुओं ने किया अनोखा नृत्य, जानिए क्या है परंपरा

सौम्या सिंह

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद जिसे हम काशी के नाम से भी जानते हैं, यहां महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगरवधुओं का नृत्य एक ऐतिहासिक परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है। पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की खास रिपोर्ट

महाश्मशान मणिकर्णिका घाट(फाइल फोटो)
महाश्मशान मणिकर्णिका घाट(फाइल फोटो)


वाराणसी: जिसे हम काशी के नाम से भी जानते हैं, भारतीय संस्कृति की एक अनमोल धरोहर है। यह ऐसा शहर है, जहां जीवन और मृत्यु के बीच एक अनोखा संतुलन देखने को मिलता है। यहां महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच नगरवधुओं का नृत्य एक ऐतिहासिक परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है। यह नृत्य न सिर्फ स्थानीय संस्कृति की विविधता को दर्शाता है, बल्कि जीवन और मृत्यु के अंतर्संबंध की गहराइयों को भी प्रदर्शित करता है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, चैत्र नवरात्र के सप्तमी तिथि को काशी के इस महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर अद्भुत नजारा देखने को मिला। एक तरफ चिता जल रही है तो दूसरी तरफ पैरों में घुंघरू बांध नगरवधू जलती चिताओं के बीच नृत्य कर रहीं थी। 

यह परंपरा हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। इसका एक ऐतिहासिक संदर्भ है, जो राजा मान सिंह से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि राजा मान सिंह ने कई वर्षों पहले इस महाश्मशान की परंपरा का पुनः उद्धार किया था। उस समय, जब कोई भी संगीतकार या कलाकार महाश्मशान में आने के लिए तैयार नहीं हुआ, तब नगरवधुओं ने आगे बढ़कर बाबा महाश्मासननाथ के समक्ष अपनी नृत्यांजलि अर्पित की। उनके इस साहसिक प्रयास के बाद से यह परंपरा हर वर्ष चलने लगी।

विशेष तिथि का महत्व

यह भी पढ़ें | Rangbhari Ekadashi in Varanasi: महादेव संग विदा हुईं माता पार्वती, भव्य गौना बारात का हुआ आयोजन

इस दिन की धार्मिक मान्यता है कि जो नगरवधुएं यहां आकर बाबा महाश्मासननाथ को अपनी नृत्यांजलि अर्पित करती हैं, उन्हें अगले जन्म में नरकीय जीवन से मुक्ति मिल जाती है। यही कारण है कि हर साल इस विशेष तिथि पर बड़ी संख्या में नगरवधुएं महाश्मशान पर प्रायश्चित के लिए आती हैं। इसका कोई अन्य उदाहरण भारत में नहीं मिलता, इकलौता वाराणसी है जहां मृत्यु के स्थान पर नृत्य, संगीत और उल्लास का माहौल बनता है।

नृत्य का आयोजन

जलती चिताओं के बीच नगरवधुओं का नृत्य एक अनोखा दृश्य प्रस्तुत करता है। मणिकर्णिका घाट पर रातभर घुंघरुओं की आवाज गूंजती है, जो इस अद्भुत परंपरा को जीवंत बनाए रखती है। इस दौरान, एक ओर चिताएं जलती हैं और दूसरी ओर नर्तकियों का नृत्य समस्त जीवन के द्वंद्व को एक साथ लाता है। यह दृश्य न केवल भक्तों के लिए, बल्कि पर्यटकों के लिए भी अत्यधिक आकर्षक होता है।

इस परंपरा का सामाजिक पहलू 

यह भी पढ़ें | UP News: विद्युतकर्मियों में आक्रोश, संविदाकर्मियों की छटनी और अवैध वसूली के खिलाफ उठाई आवाज

इस परंपरा का सामाजिक पहलू भी है। वाराणसी की नगरवधुएं, जो पहले की अपेक्षा अब समाज में अधिक स्वीकृत हो रही हैं, इस आयोजन के माध्यम से अपने अस्तित्व को फिर से स्थापित करती हैं। यह नृत्य उनकी कला का प्रदर्शन करने का एक अनूठा मंच प्रदान करता है और शोक के वातावरण में भी उत्सव का अंश लेकर आता है।

काशी की अद्भुतता

काशी की यह परंपरा अद्भुत है और इसके माध्यम से जीवन की सच्चाईयों को अभिव्यक्त किया जाता है। यहां मृत्यु का भय कम पड़ जाता है और उसे एक उत्सव की तरह मनाया जाने लगता है। यह हमें यह सिखाती है कि जीवन और मृत्यु का चक्र हमेशा चलता रहता है और हमें हर परिस्थिति को स्वीकार करना चाहिए।

इस प्रकार, जलती चिताओं के बीच नगरवधुओं का नृत्य न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह मानवता के अनंत संघर्ष और जीवन के जश्न का प्रतीक है। वाराणसी का यह अद्भुत नजारा न केवल भारत बल्कि विश्व को यह संदेश देता है कि हर अंत में एक नया आरंभ छिपा होता है। 










संबंधित समाचार