देश के इस उद्योग की मुसीबत बढ़ी, टेक्स में बढ़ोत्तरी और नियमों को कठोर बनाने की सिफारिश, पढ़ें पूरी रिपोर्ट
हाल के एक अध्ययन में इस बात की सिफारिश की गई है कि बीड़ी उद्योग के खिलाफ कर में वृद्धि की जाए और नियामक उपायों को और अधिक कड़ा किया जाए। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नयी दिल्ली: हाल के एक अध्ययन में इस बात की सिफारिश की गई है कि बीड़ी उद्योग के खिलाफ कर में वृद्धि की जाए और नियामक उपायों को और अधिक कड़ा किया जाए।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक अध्ययन में कहा गया है कि ऐसा करने से अन्य तम्बाकू उत्पादों के अनुरूप बीड़ी की खपत कम हो सकती है और संबंधित मृत्यु दर को टाला जा सकता है।
यह अध्ययन जोधपुर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा क्षय रोग और फेफड़ों की बीमारी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय संघ के सहयोग से किया गया था। इस अध्ययन की रिपोर्ट शुक्रवार को जारी की गयी।
यह भी पढ़ें |
Type-2 Diabetes : भारत में ‘टाइप-2’ मधुमेह के इलाज को लेकर वैज्ञानिकों ने किया ये बड़ा खुलासा, पढ़िये ये शोध रिपोर्ट
अध्ययन में इस बात का सुझाव दिया गया है कि बीड़ी के उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य, पर्यावरण और आर्थिक बोझ को ध्यान में रखते हुए बीड़ी उद्योग का 'कुटीर उद्योग' का दर्जा वापस ले लेना चाहिए।
'बीड़ी विनियमन और कराधान के निहितार्थों को नेविगेट करना' नामक रिपोर्ट के मुताबिक बीड़ी उद्योग पर कर में वृद्धि करने से राजस्व में इजाफा होगा जबकि बीड़ी के अधिकतम खुदरा मूल्य में बढ़ोतरी करने से बीड़ी की मांग भी घटेगी।
एम्स-जोधपुर के स्कूल ऑफ पब्लिक हेड अकादमिक प्रमुख डॉ पंकज भारद्वाज के मुताबिक यदि बीड़ी पर लगने वाले कर को सिगरेट के बराबर कर दिया जाए, तो सरकारी खजाने में 10 गुना से अधिक राजस्व बढ़ सकता है और लगभग लोगों की जिंदगी के 50 लाख वर्ष बचाए जा सकते हैं।
यह भी पढ़ें |
बालासोर ट्रेन दुर्घटना मामले में सीबीआई ने तीन रेलकर्मियों को गिरफ्तार किया
डॉ पंकज भारद्वाज ने कहा, ‘‘मौजूदा समय में बीड़ी उद्योग का लगभग 20.6 प्रतिशत विनियमन के अधीन है। बीड़ी पर लगने वाला कर 22 प्रतिशत ही है, जबकि सिगरेट पर 52 प्रतिशत और धुआं रहित तंबाकू पर 64 प्रतिशत है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) की सिफारिश के अनुसार इन पर 75 प्रतिशत कर लगाया जाना चाहिए। ’’