दुनियाभर के स्कूलों में पर्यटन को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाए: यूएनटीडब्ल्यूओ महासचिव

डीएन ब्यूरो

संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (यूएनडब्ल्यूटीओ) के महासचिव जुराब पोलोलिकाशविल ने स्कूलों में पर्यटन को एक विषय के रूप में पेश करने और दुनिया भर में अधिक पर्यटन अकादमियां और विश्वविद्यालय स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता जताई है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

यूएनटीडब्ल्यूओ
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समरकंद (उज्बेकिस्तान):  संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (यूएनडब्ल्यूटीओ) के महासचिव जुराब पोलोलिकाशविल ने स्कूलों में पर्यटन को एक विषय के रूप में पेश करने और दुनिया भर में अधिक पर्यटन अकादमियां और विश्वविद्यालय स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता जताई है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक उन्होंने शनिवार को यहां संपन्न हुई यूएनडब्ल्यूटीओ की 25वीं महासभा के दौरान “ग्लोबल एजुकेशन फोरम” में ये टिप्पणियां कीं।

महासचिव ने यह भी कहा कि पर्यटन क्षेत्र का बड़े पैमाने पर विस्तार कर रहे भारत जैसे देशों को पर्यटन अकादमियों और आतिथ्य स्कूलों में निवेश करने की आवश्यकता है।

उन्होंने अपने संबोधन में कहा, “पर्यटन उद्योग के भविष्य, सतत विकास और समावेशी विकास के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है। छात्रों को भूगोल, भौतिकी और गणित की तरह स्कूलों में पर्यटन को एक विषय के रूप में पढ़ना... इसकी तत्काल आवश्यकता है। उज्बेकिस्तान पहला देश बन गया है, जहां हाई स्कूल में बच्चों को यह विषय पढ़ाया जाता है और यह एक बहुत बड़ा कदम है।

उन्होंने कहा, “जब मैं बच्चा था तो मुझे जीव विज्ञान और इस तरह के कई विषय पसंद नहीं थे, लेकिन पर्यटन हर किसी के लिए स्वीकार्य और दिलचस्प होगा। इसलिए हमारी कोशिश दुनिया भर के सभी क्षेत्रों में, जितना संभव हो, उतने शैक्षिक केंद्र बनाने की है।”

वहीं, इंडियन स्कूल ऑफ हॉस्पिटैलिटी (आईएसएच) के प्रबंध निदेशक कुणाल वासुदेव के अनुसार, आतिथ्य शिक्षा व्यावसायिक प्रशिक्षण के रूप में पुरातनपंथ का शिकार रही है और इस धारणा में एक महत्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता है।

वासुदेव ने कार्यक्रम के दौरान मुख्य भाषण देते हुए यह टिप्पणी की।

उन्होंने कहा, “मेरा पालन-पोषण 70 के दशक में हुआ था, जब आतिथ्य में करियर को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी और (इसे) बुरा समझा जाता था। अक्सर इसे अंतिम उपाय के रूप में देखा जाता था और यहां तक कि कानून, वाणिज्य और मानविकी जैसे पारंपरिक क्षेत्रों को भी कमतर माना जाता था। आज की बात करें तो दुनिया तेजी से इन विषयों के महत्व को समझ रही है।”

 










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