उपराज्यपाल हमारे प्रधानाध्यापक नहीं

डीएन ब्यूरो

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल (एलजी) वी के सक्सेना पर चुनी हुई सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सक्सेना “हमारे प्रधानाध्यापक नहीं हैं, जो हमारा गृह कार्य जांचेंगे । पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

केजरीवाल  के विधायकों ने विधानसभा से एलजी के दफ्तर तक  किया मार्च
केजरीवाल के विधायकों ने विधानसभा से एलजी के दफ्तर तक किया मार्च


नयी दिल्ली, 16 मार्च (भाषा) दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल (एलजी) वी के सक्सेना पर चुनी हुई सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सक्सेना “हमारे प्रधानाध्यापक नहीं हैं, जो हमारा गृह कार्य जांचेंगे और उन्हें हमारे प्रस्तावों पर केवल हां या ना कहना है।’’

केजरीवाल ने कहा कि सक्सेना को विद्यार्थियों के “गृह कार्य” की जांच करने वाले “प्रधानाध्यापक की तरह व्यवहार” नहीं करना चाहिए।

केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी (आप) के विधायकों ने विधानसभा से एलजी के दफ्तर तक मार्च किया। उन्होंने दावा किया कि स्कूली शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को सक्सेना ने खारिज कर दिया है, लेकिन एलजी के दफ्तर ने इस आरोप से इनकार किया।

केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली ‘तानाशाही’ बर्दाश्त नहीं करेगी। मुख्यमंत्री ने बाद में यह भी दावा किया कि उनकी सरकार किसी भी कीमत पर शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए भेजकर रहेगी।

वहीं, दिल्ली विधानसभा के सत्र की पहले दिन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई, क्योंकि ‘आप’ विधायक एलजी के खिलाफ नारेबाजी करते हुए बार-बार अध्यक्ष के आसन के पास आ रहे थे।

मार्च के दौरान केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत ‘आप’ नेता व कार्यकर्ता हाथों में तख्तियां पकड़े हुए थे, जिन पर लिखा था, ‘एलजी साहब शिक्षकों को फिनलौंड जाने दो’, ‘एलजी साहब शिक्षकों को ट्रेनिंग करने दो।’ साथ में वे सक्सेना के खिलाफ नारेबाज़ी भी कर रहे थे।

वे दिल्ली विधानसभा से एलजी सचिवालय की ओर लगभग तीन किलोमीटर तक पैदल चले, लेकिन पुलिस ने राज निवास से कुछ मीटर की दूरी पर उन्हें रोक दिया।

एलजी के कार्यालय ने केजरीवाल और सिसोदिया को सक्सेना से मिलने के लिए कहा, लेकिन मुख्यमंत्री ने यह कहते हुए प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि ‘आप’ के सभी विधायकों को भी इसमें शामिल होने की अनुमति दी जाए।

केजरीवाल ने पत्रकारों से कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एलजी ने मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों से मिलने से इनकार कर दिया है। हम बहुत छोटे लोग हैं, लेकिन हम दिल्ली के दो करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। एलजी ने एक तरह से दिल्ली की जनता का अपमान किया है।”

विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने केजरीवाल और उनके विधायकों के व्यवहार को ‘अराजक’ बताया।

प्रदेश भाजपा प्रमुख वीरेंद्र सचदेवा ने कहा, “विधानसभा के अंदर और एलजी के कार्यालय के बाहर केजरीवाल और उनके विधायकों का व्यवहार स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वे हद दर्जे के अराजकतावादी हैं और उनमें संवैधानिक पद या विधानसभा जैसी लोकतांत्रिक संस्था के लिए कोई सम्मान नहीं है।”

बाद में एलजी के कार्यालय ने एक बयान में कहा कि शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजने के प्रस्ताव को खारिज नहीं किया गया है, बल्कि सरकार को इसका समग्र मूल्यांकन करने की सलाह दी गई है।

हालांकि, केजरीवाल ने दावा किया कि एलजी ने प्रस्ताव को दो बार खारिज कर दिया और कहा कि सक्सेना को ‘प्रधानाध्यापक’ की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए।

राज निवास के पास सड़क पर इंतजार करने के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा, “हम बच्चे नहीं हैं और न ही वह (एलजी) हमारा गृह कार्य जांचने वाले हमारे प्रधानाध्यापक हैं। उन्हें हमारे प्रस्ताव पर हां या ना कहना है। उन्हें प्रधानाध्यापक की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “दिल्ली सरकार के प्रस्ताव को एलजी दो बार खारिज कर चुके हैं। अगर वह कहते हैं कि प्रस्ताव खारिज नहीं किया गया है, तो उन्हें लिखित में देना चाहिए।”

केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली की जनता तानाशाही बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी लोकतंत्र से चलेगी और एलजी को संविधान और उच्चतम न्यायालय के आदेशों का पालन करना होगा।

केजरीवाल ने कहा कि चार जुलाई 2018 को उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास खुद से निर्णय लेने की शक्ति नहीं है और फिर भी वह शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड जाने से रोक रहे हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि एलजी के कदमों से संकेत मिलता है कि वह शीर्ष अदालत के फैसले का सम्मान नहीं करते हैं।

केजरीवाल ने दावा किया, “यह रवैया लोकतंत्र और संविधान के सिद्धांतों के लिए हानिकारक है। यह निराशाजनक है कि मुख्यमंत्री को दिल्ली के विधायकों के साथ उपराज्यपाल के आवास तक मार्च करना पड़ा, ताकि शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए भेजने जैसी सरल चीज की पैरवी की जा सके।”

उन्होंने कहा, “दिल्ली के दो करोड़ लोगों ने अपने मुख्यमंत्री को चुना और उन्हें विधानसभा में 62 सीटों के साथ बहुमत दिया। यदि वह शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए भेजने में असमर्थ हैं, तो यह ऐसे चुनावों के उद्देश्य और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठाता है। मैं उम्मीद और प्रार्थना करता हूं कि एलजी अपनी गलती स्वीकार करें और शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए जाने की अनुमति दें।”

मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि दिल्ली को ‘बंद’ करके भाजपा यह दिखाना चाहती है कि वह राज्य सरकार चलाने में असमर्थ हैं।

केजरीवाल ने कहा, “वे मुझे बदनाम करने की कोशिश कर दिल्ली के लोगों को परेशान कर रहे हैं।”

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह जरूरी है कि सत्ता दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास हो, न कि एलजी के पास। उन्होंने दावा किया कि सरकार के कई काम जैसे विभिन्न विभागों और मोहल्ला क्लीनिक जैसी परियोजनाओं के भुगतान को सक्सेना ने रोक दिया है।

केजरीवाल ने कहा, “पहले, अंग्रेजों द्वारा भेजा गया एक वाइसरॉय हुआ करता था, जो सरकार चलाता था। लोग स्वतंत्रता, लोकतंत्र और एक चुनी हुई सरकार के लिए लड़े। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है कि चुनी हुई सरकार के पास शक्ति का अभाव हो और एक व्यक्ति के पास सारी शक्ति हो।”

दिल्ली सरकार ने अब तक 1,079 शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए विभिन्न देशों में भेजा है। इनमें से 59 फिनलैंड, 420 कैंब्रिज और 600 सिंगापुर गए हैं। इसके अलावा, 860 स्कूल प्रधानाचार्यों को भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), अहमदाबाद और लखनऊ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रशिक्षण दिया गया है।










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