भारत से बातचीत शुरू करने के लिए अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर: उमर अब्दुल्ला
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को कहा कि भारत के साथ बातचीत शुरू करने के लिए जम्मू-कश्मीर में अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है।पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
जम्मू: नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को कहा कि भारत के साथ बातचीत शुरू करने के लिए जम्मू-कश्मीर में अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक अब्दुल्ला ने यहां पार्टी मुख्यालय में पत्रकारों से कहा, 'हमने हमेशा भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत का समर्थन किया है, लेकिन उनके बीच बातचीत फिर से शुरू करने के लिए अनुकूल माहौल की आवश्यकता है। यह न केवल भारत की जिम्मेदारी है, बल्कि पाकिस्तान पर भी यह जिम्मेदारी है कि वह बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाए।'
यह भी पढ़ें |
ब्रिटिश संसद: गिलगित-बाल्टिस्तान पर सिर्फ भारत का हक है, पाक का कब्जा अवैध
उन्होंने जून में कनाडा में एक खालिस्तानी अलगाववादी नेता की हत्या में भारतीय एजेंट की 'संभावित' संलिप्तता के कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों पर चिंता व्यक्त की और कहा कि 'इससे दोनों देशों के बीच बहुत मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचने का खतरा है।”
उमर ने कहा, '...उनका (ट्रूडो) दावा है कि यह बात जांच पर आधारित है। बेहतर होता कि वह जांच पूरी होने तक इंतजार करते। अगर उनके पास अपने दावे का समर्थन करने के लिए सबूत हैं, तो मैं विनम्रतापूर्वक उन्हें सुझाव दूंगा कि वह इन सबूतों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ साझा करें वरना उनके बयान से कनाडा से हमारे मजबूत द्विपक्षीय रिश्तों को नुकसान पहुंचाने का खतरा है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा।”
बुधवार को संसद में पेश किए गए महिला आरक्षण विधेयक पर उन्होंने कहा कि बिल के मसौदे को देखते हुए इसे लागू होने में कम से कम 10 साल लगेंगे।
यह भी पढ़ें |
भारत: Pak-China संयुक्त वक्त्तव्य में जम्मू-कश्मीर का उल्लेख को किया खारिज
उन्होंने कहा, 'विधेयक में कार्यान्वयन से पहले परिसीमन और जनगणना की बात कही गई है। इसका मतलब है कि 2029 से पहले कोई उम्मीद नहीं है और पूरी संभावना है कि यह 2034 में लागू होगा। जब कानून लागू होने में कम से कम 10 साल लगेंगे तो (संसद का) विशेष सत्र बुलाने की क्या जरूरत थी। शीतकालीन सत्र में भी इसे पेश किया जा सकता था।”