RBI: दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता में ‘कुछ सुधार’ की जरूरत
दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत कर्जदाताओं ने अपने कुल दावों पर 32 प्रतिशत की वसूली की है, लेकिन इस कानून के संबंध में ‘कुछ सुधार’ की जरूरत है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बृहस्पतिवार को यह बात कही। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
मुंबई: दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत कर्जदाताओं ने अपने कुल दावों पर 32 प्रतिशत की वसूली की है, लेकिन इस कानून के संबंध में ‘कुछ सुधार’ की जरूरत है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बृहस्पतिवार को यह बात कही।
उन्होंने कहा कि इस कानून को लेकर अभी तक हमने जो सीखा है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इसमें सुधार की जरूरत है।
दास ने कहा कि आईबीसी की प्रमुख आलोचना दो मोर्चों पर है- समाधान में लगने वाला समय और ऋणदाताओं को बकाया वसूली पर होने वाला नुकसान (हेयरकट)।
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आईबीसी 2016 में अस्तित्व में आया था। यह एक महत्वपूर्ण कानून है और इसका उद्देश्य समयबद्ध और बाजार से जुड़े तरीके से विवाद का समाधान करना है।
यहां सेंटर फॉर एडवांस्ड फाइनेंशियल रिसर्च एंड लर्निंग (कैफ्राल) द्वारा आईबीसी पर आयोजित एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए दास ने कहा, ‘‘अगर हमें आईबीसी के क्रियान्वयन की यात्रा और इसके अबतक के प्रभाव का जायजा लेना है, तो इसमें महत्वपूर्ण सकारात्मक संकेतों के साथ-साथ सीख भी है, जो कुछ सुधार की जरूरत बताती है।’’
केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने कहा कि लेनदारों ने सितंबर, 2023 तक 9.92 लाख करोड़ रुपये के स्वीकृत दावों में से 3.16 लाख करोड़ रुपये की वसूली की है, जो 32 प्रतिशत की वसूली दर के बराबर है।
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डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार सकारात्मक पहलुओं पर उन्होंने कहा कि इसकी स्थापना के बाद से समाधान की प्रकृति के संदर्भ में 7,058 कॉरपोरेट देनदारों के मामलों को दिवाला समाधान के लिए स्वीकार किया गया। इसमें से 5,057 मामले सितंबर, 2023 तक निपटा दिए गए।
दास ने कहा कि 2,001 मामले समाधान प्रक्रिया के विभिन्न चरणों के तहत हैं।