DN Exclusive: यूपी के गृह विभाग पर उठे सवाल, जूनियर आईपीएस को बनाया बड़े जिले का एसएसपी
उत्तर प्रदेश के ब्यूरोक्रेसी की अजब लीला है। कब क्या कर दे कोई नहीं जानता? कुछ ऐसा ही मामला देखने को मिल रहा है बरेली के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की ताजा नियुक्ति में। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:
लखनऊ: अफसरों से बार-बार कहा जाता है कि कानून-व्यवस्था को हर हाल में सुधारा जाय। महकमे में अनुशासन कायम रहे लेकिन जब महत्वपूर्ण जिलों में तैनाती की बात आती है तो इसमें मेरिट और वरिष्ठता को दरकिनार कर चेहरे को वरीयता दे दी जाती है। जिससे अफसरों में असंतोष होना स्वभाविक है। ताजा मामला बरेली के एसएसपी की तैनाती से जुड़ा है।
बरेली प्रदेश के टॉप-टेन के बड़े और संवेदनशील जिलों में से एक है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बरेली में एसएसपी के अलावा आईजी रेंज और एडीजी जोन स्तर के अधिकारी भी बैठते हैं।
एक तरफ दावा किया जा रहा है कि अपराध को काबू में करने के लिए बड़े और संवेदनशील जिलों में एसएसपी के पद पर डीआईजी स्तर के अधिकारी को तैनात कर रहे हैं। अयोध्या से लेकर कानपुर जैसे जिलों में एसएसपी के पद पर डीआईजी स्तर के अधिकारी तैनात हैं तो फिर राज्य के गृह विभाग ने कैसे बरेली जैसे अति संवेदनशील और बड़े जिले में यूपी कैडर के 2013 बैच के अत्यंत जूनियर अधिकारी को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नियुक्त कर दिया? इसके पीछे क्या मंशा छिपी है, यह सवालों के घेरे में है?
अंदर के जानकार सूत्र बताते हैं कि रोहित बरेली में एसपी सिटी के पद पर रह चुके हैं और इस जिले से इनको ‘खास लगाव' है। उत्तराखंड के मूल निवासी रोहित को इनके गृह राज्य के पास के संवेदनशील जिले में तैनात करना कई आईपीएस अफसरों को चौंका गया।
इससे पहले रोहित के पास सिर्फ एक छोटे जिले महराजगंज के एसपी के पद के पद पर काम करने का अनुभव है।
डाइनामाइट न्यूज़ के महराजगंज संवाददाता के मुताबिक महराजगंज में बतौर एसपी रोहित सिंह बुरी तरह निष्क्रिय रहे। बड़ी से बड़ी घटना हो जाने के बाद भी ये कभी मौके पर नहीं पहुंचते थे। पुलिसिंग से ज्यादा ये डीएम के पीछे घूम और फोटो खींचा अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते थे। इनके कार्यकाल में जिले में क्राइम आउट ऑफ कंट्रोल रहा। पुलिसकर्मी बेलगाम थे। कभी पुलिस पिटती तो कभी आम जनता। शाम चार से सात बजे कुछ भी हो जाये ये न तो किसी से मिलते थे और न ही बात करते थे, अपना सीयूजी मोबाइल टेलीफोन ड्यूटी को सौंप साहब बंगले में आराम फरमाते थे। आये दिन रात के अंधेरे में गाड़ी लेकर ये अकेले खुद ड्राइव करके कहां जाते थे? इस रहस्यमय सवाल का जवाब हर कोई जानना चाहता है?
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कई आईपीएस अफसरों ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि रोहित के कई सीनियर और बैचमेट नोएडा और लखनऊ जैसे कमिश्नरेट में थाने और सर्किल में उलझे हुए हैं और वहीं पर 2013 बैच के बेहद जूनियर आईपीएस को बरेली जैसे बड़े और संवेदनशील जिले का कप्तान बना दिया गया।
सवाल यह है कि राज्य के गृह विभाग ने बरेली जैसी अहम तैनाती से पहले इनकी पूर्व जिले में तैनाती का कोई ट्रैक रिकार्ड क्यों नहीं देखा? अगर बरेली में रोहित की निष्क्रियता के चलते कोई बड़ी वारदात होगी तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?