आत्महत्या को रोकने में मदद करने वाले विकल्प
आत्महत्या के प्रयासों को अपराध के दायरे में लाने वाले देशों को अब यह महसूस होने लगा है कि ऐसे लोगों को दंडित करना उन्हें आत्महत्या करने के बारे में सोचने से नहीं रोकता, बल्कि यह उन्हें मदद मांगने से रोकता है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
कुआलालंपुर: आत्महत्या के प्रयासों को अपराध के दायरे में लाने वाले देशों को अब यह महसूस होने लगा है कि ऐसे लोगों को दंडित करना उन्हें आत्महत्या करने के बारे में सोचने से नहीं रोकता, बल्कि यह उन्हें मदद मांगने से रोकता है।
पाकिस्तान ने पिछले साल आत्महत्या को आखिरकार अपराध के दायरे से बाहर किया और घाना ने 1960 के आपराधिक कानून में संशोधन को मंजूरी दी। इस कानून में पहले आत्महत्या की कोशिश करना एक अपराध था।
मलेशिया भी उनके पदचिह्नों पर चलते हुए दंड संहिता की धारा 309 की समीक्षा कर रहा है, जिसके तहत आत्महत्या की कोशिश करना एक अपराध है।
अभी 20 देशों में आत्महत्या एक अपराध है। इनमें से 15 देश ब्रिटिश राष्ट्रमंडल देशों का हिस्सा है, जिन्होंने संभवत: ब्रिटिश कानून से इसे अपनाया होगा। विडम्बना यह है कि ब्रिटेन ने 1961 के बाद से आत्महत्या के प्रयासों को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था।
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इन 20 देशों में से ब्रूनेई में आत्महत्या का यह आंकड़ा प्रति एक लाख की आबादी पर 2.5 है, जबकि गुयाना में प्रति एक लाख लोगों पर यह संख्या 40.9 है। साल 2019 में इन 20 में से घाना, केन्या, मलावी, सोमालिया, यूगांडा, गुयाना और पाकिस्तान समेत सात देशों में आत्महत्या की दर वैश्विक औसत 1,00,000 की आबादी पर नौ के आंकड़े से अधिक थी।
जिन देशों ने आत्महत्या के प्रयासों का गैर-अपराधीकरण किया, उनमें आत्महत्या की दरों पर इसका मिलाजुला असर देखा गया। मनोवैज्ञानिक डेविड लेस्टर के अनुसंधान में पाया गया कि कनाडा में 1972 में आत्महत्या के प्रयास को अपराध के दायरे से बाहर करने के बाद आत्महत्या की दरों में वृद्धि हुई।
हालांकि, श्रीलंका में आत्महत्या की कोशिश का गैर-अपराधीकरण किए जाने के बाद खुदकुशी की दरों में कमी आयी, जिसके पीछे विभिन्न आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रम में वृद्धि की वजह हो सकती है।
एक अध्ययन में पाया गया है कि जिन देशों में आत्महत्या के प्रयास को दंडनीय अपराध बनाया गया, वहां आत्महत्या की दरों में बहुत कम गिरावट आयी, जबकि जिन देशों में आत्महत्या का प्रयास अपराध नहीं है, वहां आत्महत्या की दर में ज्यादा गिरावट आयी। यह इसलिए हो सकता है कि आत्महत्या के बारे में सोच रहे लोग खुलकर मदद ले रहे हैं।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 2019 में 7,00,000 से अधिक लोगों ने आत्महत्या की यानी कि हर 1,00,000 लोगों में से नौ की मौत आत्महत्या की वजह से हुई। यह साल 2000 के मुकाबले कम है, जब 1,00,000 लोगों में 14 लोगों ने आत्महत्या की थी। यह दिखाता है कि आत्महत्या की दर हर साल कम हुई है।
यह साफ है कि आत्महत्या के प्रयासों को रोकने के लिए उन्हें अपराध के दायरे में लाने के बजाय कई तरीके हैं।
आत्महत्या के बारे में सोचने के कई कारण है। इनमें से एक मनोवैज्ञानिक तकलीफ है। मनोवैज्ञानिक परेशानी बढ़ाने और लोगों को मदद करने से रोकने वाला कानून जैसे कि आत्महत्या के प्रयास का अपराधीकरण, आत्महत्या को रोक नहीं सकता बल्कि यह पीड़ित लोगों और उनके परिवार के सदस्यों के लिए हालात और बिगाड़ सकता है।