

जिन नौनिहालों को इस छोटी सी उम्र में स्कूल जाने और खेलने-कूदने का काम करना चाहिये था, वे परिवार के भरण-पोषण के लिये सड़क पर नाचने को मजबूर हैं। पढिये, डाइनामाइट न्यूज की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
महराजगंज: खेलने-कूदने की उम्र में जब बच्चे खुद ही खिलौने बन जाएं तो स्थिति कैसी होगी, इसा अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। ऐसा ही कुछ कोल्हुई कस्बे में देखने को मिला, जहां दो नौनिहाल स्कूल जाने के बजाए भूख मिटाने के लिये कठपुतली का खेल दिखाने और सड़क पर नाचने को मजबूर हैं। ये दोनों बच्चे अपने छोटे से कंधों पर परिवार के भरण-पोषण का बड़ा बोझ उठा रहे हैं। गरीबी का दंश झेल रहे ये बच्चे विवशता के चलते लोगों का मनोरंजन का साधन बनने को मजबूर हैं।
कोल्हुई कस्बे के इन दो मासूमों को अपने व परिवार का पेट भरने के लिए कठपुतली व ढोल पर नाच करते देखा जा सकता है। ये दुकान-दुकान जाकर भी लोगों का मनोरंजन करते हैं और थोड़ा-बहुत जो पैसा मिलता है, उससे अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं।
डाइनामाइट न्यूज संवाददाता ने इन मासूम बच्चों ने कहा कि वह ये सब काम मजबूरी में करते है, ताकि दो वक़्त की रोटी का जुगाड हो सके। मासूमों ने बताया कि अगर उन्हें अच्छे से पढ़ने का मौका मिले तो वो ये सब काम छोड़कर पढ़ाई पर ध्यान देंगे।
दोनों मासूम खुटहा बाज़ार के निवासी है और उनके माता पिता ईट भट्ठे पर मजदूरी करते है। गरीबी मिटाने, शिक्षा देने और बच्चों का भविष्य संवारने के लिये हर साल कई योजनाओं की घोषणाएं करने वाले राजनेताओं और सरकारों के दावों को ये बच्चे सरेआम झुठलाते जैसे नजर आते हैं।
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