UP Politics: अखिलेश यादव ने इस खास रणनीति से निकाला मायावती की सोशल इंजीनियरिंग का तोड़

डीएन संवाददाता

उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा के विधायकों के बागी होना अखिलेश यादव की किसी रणनीति का हिस्सा थी या फिर मायावती ही एमएलए को काबू न कर सकी? पढिये, डाइनामाइट न्यूज की स्पेशल रिपोर्ट

बसपा विधायकों की बगावत से दोनों पार्टियां फिर आमने-सामने
बसपा विधायकों की बगावत से दोनों पार्टियां फिर आमने-सामने


लखनऊ: उत्तर प्रदेश में राज्य सभा की दस सीटों के चुनाव से ऐन पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायकों का बागी होना और समाजवादी पार्टी के खेमे से जा मिलने के पीछे जो भी अटकलें लगाई जाए, लेकिन यूपी समेत भविष्य की राजनीति के हिसाब से इस घटना ने अखिलेश यादव के राजनीतिक कद को और बड़ा कर दिया है।

बसपा सुप्रीमो मायावती भले ही इसे सपा की साजिश या विश्वासघात करार दे रही हो, लेकिन सच तो यह है कि इस राजनीतिक घटनाक्रम से उनके नेतृत्व और सोशल इंजीनियरिंग की काबलियत पर भी अब सवाल उठने लगे है। 

दरअसल, पिछले दो-तीन सालों में यह ऐसी पहली घटना नहीं है, जब बसपा के नेताओं ने जरूरत के समय पाला बदला हो। राज्य में भाजपा सरकार के गठन के बाद सपा-बसपा से नेताओं का टूटना और सत्ता पक्ष से जुड़ने का सिलसिला जारी रहा है। लेकिन यदि वर्तमान घटना की बात की जाए तो, इसमें कोई संदेह नहीं कि अखिलेश यादव ने एक साथ एक बड़ा राजनीतिक लाभ प्राप्त कर लिया है। अखिलेश की इस राणनीति ने मायवती के सोशल इंजीनियरिंग वाले फैक्टर का अचूक फार्मूला निकालकर एक तीर से कई शिकार कर डाले है, जिसका अखिलेश को दूरगामी फायदा जरूर मिलेगा। 

मायावती ने अपने बागी विधायकों को समझाने-बुझाने के बजाए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर वही काम किया, जो अखिलेश यादव चाहते थे। बसपा ने भले ही इस समय राज्यसभा चुनाव में एक सीट अपने नाम कर ली हो, लेकिन भविष्य के दृष्टि से यह लाभ बसपा के लिये घाटे का सौदा साबित हो सकता है। बसपा और मायावती को जिस सोशल इंजीनियरिंग के जाना जाता है, उसकी नींव कई हद तक यूपी की जातीगत, दलित और वर्ग विशेष वाली समीकरणों पर ही टिका हुआ है और इस दृष्टिकोण से निष्कासित किये सातों विधायकों की जातीय तौर पर अलग-अलग और वोटों के हिसाब से मजबूत पृष्ठभूमि है। इस हिसाब से बसपा से वे विधायक टूटे है, जो अलग-अलग वर्गों, क्षेत्रों और धार्मिक पृष्ठभूमि के हैं।  

मायावती की बसपा से जिन सात विधायकों ने पाला बदला है, उनमें से तीन मुस्लिम, दो पिछड़ा वर्ग, एक दलित और राजपूत विधायक शामिल हैं। बसपा के सोशल इंजीनियरिंग वाले फॉर्मूले में दलित, पिछड़े और मुस्लिम वर्गों का खासा स्थान है और कुछ हद तक इसी पृष्ठभूमि वाले लोगों या वोटरों को यूपी की सत्ता का किंगमेकर भी माना जाता है। ऐसे में इन विधायकों का अखिलेश के पक्ष में खड़ा होने का मतलब यूपी के एक बड़े तबके का अखिलेश के पक्ष में आने जैसा है। वोटरों का यह तबका भले ही प्रत्यक्ष तौर अखिलेश ये जुड़ा हो या न जुड़ा हो, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं अखिलेश को लेकर इन सभी को एक खासा और सुखद संदेश जरूर चला गया है। 

इन सात विधायकों के जरिये अखिलेश ने एक बड़ी जमीन हथियाने की जो कोशिश की है, उसमें वह फिलहाल सफल होते नजर आ रहे हैं। सपा के साथ इस वर्ग को जोड़ने और उनसे नजदीकियां बढ़ाने के अखिलेश के प्रयासों से बसपा के सोशल इंजीनियरिंग के समीकरण को गहरा झटका लगा है। अखिलेश की यह दूरगामी रणनीति उनके लिये यूपी के आगामी विधान सभा चुनाव में मजबूत जमीन तैयार करने के लिये बेहद जरूरी है।
 










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