राजधानी लखनऊ में छठ पूजा के महापर्व पर आस्था का सैलाब

डीएन संवाददाता

छठ पूजा के पर्व पर लखनऊ के लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। गोमती नदी के घाट पर छठ पूजा के लिये कई वेदियां बनाई गयी है, जहां ढाई से तीन लाख लोग भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए जुटेंगे। इस महापर्व पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गये हैं।

छठ पूजा के लिए बनाई गई वेदियां
छठ पूजा के लिए बनाई गई वेदियां


लखनऊ: छठ पूजा को लेकर राजधानी के गोमती नदी तट पर श्रद्धालुओं की आस्था का सैलाब उमड़ने लगा है। भीड़ को देखते हुए जिला प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा के मद्देनजर कड़े इंतजाम किए हैं। गोमती नदी के घाट पर आज ढाई से तीन लाख लोग छठ पूजा के मौके पर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए जुटेंगे।

श्रद्धालुओं की बढ़ती तादाद

अखिल भारतीय भोजपुरी महासभा के अध्यक्ष प्रभुनाथ राय ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि उनकी कमेटी के सदस्य पिछले 1 महीने से छठ पूजा के मद्देनजर श्रमदान कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि राजधानी लखनऊ में इस समय भोजपुरी समाज के लोगों की तादाद 15 से 20 लाख के लगभग है, जिनमे से बड़ी संख्या में लोग गोमती नदी के घाट पर छठ पूजा के लिये आयेंगे। छठ पूजा के महत्व को देखते हुए श्रद्धालुओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है।

30 साल से छठ पूजा सुविधा

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प्रभुनाथ के मुताबिक छठ पर्व की तैयारियों को लेकर जिला प्रशासन की ओर से उनकी कमेटी को लगातार सहयोग मिल रहा है। नगर निगम की ओर से सफाई व्यवस्था और पुलिस की ओर से सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं, ताकि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी असुविधा का सामना ना करना पड़े। उन्होंने बताया कि वह पिछले 30 साल से छठ पूजा के मौके पर श्रद्धालुओं को सुविधा उपलब्ध कराने का काम रहे हैं।

4 दिनों का बड़ा पर्व

छठ पूजा का पर्व कुल 4 दिनों का होता है, जिसमें पहले दिन नहाया-खाया जाता है। दूसरे दिन गुड़ से बना भोजन किया जाता है और तीसरे-चौथे दिन 24 घंटे का निराहार व्रत रखा जाता है। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को पानी में खड़े रहकर अर्घ्य दिया जाता है। चौथे और अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर इस व्रत का समापन होता है। यह व्रत महिलाएं और पुरुष सभी लोग कर सकते हैं।

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वेदी बनाने में जुटे बच्चे

गोमती नदी घाट पर छठ पूजा की वेदी बनाने में छोटे छोटे बच्चे लगे हुए हैं। दरअसल छठ पूजा करने वाले श्रद्धालु अपनी-अपनी वेदी बनवाते हैं। जिसका अलग-अलग रंगों से श्रृंगार किया जाता है। जबकि शाम को यहीं बैठकर सूर्यास्त होने की प्रतीक्षा की जाती है, ताकि सूर्य को अर्घ्य दिया जा सके। इस पूजा की खास बात यह है कि इसको कराने के लिए किसी धर्माचार्य की जरूरत नहीं पड़ती।
 










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