जानिये, हाई कोर्ट ने कब्रिस्तान या श्मशान घाटों के लिए अलग-अलग लाइसेंस को लेकर क्या कहा

केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से इस बात की समीक्षा करने को कहा है कि क्या समुदायों के आधार पर कब्रिस्तान या श्मशान घाटों के लिए अलग-अलग लाइसेंस जारी करते रहने की कोई जरूरत है और क्या ऐसा करना समानता तथा जीवन के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 24 April 2023, 4:29 PM IST
google-preferred

कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से इस बात की समीक्षा करने को कहा है कि क्या समुदायों के आधार पर कब्रिस्तान या श्मशान घाटों के लिए अलग-अलग लाइसेंस जारी करते रहने की कोई जरूरत है और क्या ऐसा करना समानता तथा जीवन के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी सार्वजनिक कब्रिस्तान में हर एक इंसान के नश्वर शरीर को बिना किसी भेदभाव के दफनाने की अनुमति दी जानी चाहिए।

अदालत ने एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की ओर से दायर उस याचिका का निपटारा करते हुए यह बात कही, जिसमें आरोप लगाया था कि राज्य के पालक्काड जिले के एक ग्राम पंचायत में वंचित समुदाय के लोगों को एक सार्वजनिक कब्रिस्तान में अपने प्रियजनों को दफनाने की अनुमति नहीं है।

याचिका के अनुसार, पालक्काड जिले के पुथुर ग्राम पंचायत के पिछड़े चक्किलियन (अनुसूचित जाति) समुदाय को कब्रिस्तान में जाने की अनुमति नहीं है। इस जाति की एक महिला के शव को अप्रैल 2020 में वहां दफनाने की अनुमति नहीं दी गई थी। इसमें आरोप लगाया गया कि अन्य जातियों के सदस्यों ने उस महिला के परिवार के सदस्यों को कथित रूप से धमकाया और अवैध तरीके से रोका।

एनजीओ ने अपनी याचिका में जिला अधिकारियों को चक्किलियन समुदाय के लोगों के शवों को पुथुर पंचायत के सार्वजनिक कब्रिस्तान में शांतिपूर्वक दफनाने की अनुमति देने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।

पालक्काड के तत्कालीन जिला अधिकारी (डीसी) ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि विवादित श्मशान भूमि निजी थी क्योंकि उसे कुछ स्थानीय निवासियों द्वारा खरीदा गया था और अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों को दफनाने के लिए एक अलग जगह स्थान मौजूद है।

जिला अधिकारी (डीसी) ने कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के भय के कारण महिला के शव को निजी कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति नहीं दी गई और इसके लिए वहां उम्माथरनपडी होमियो डिस्पेंसरी क्षेत्र के पास एक खाली स्थान ढूंढकर समस्या का समाधान किया गया।

उच्च न्यायालय ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण उस समय व्याप्त गंभीर स्थिति तथा मृत्यु दर को देखते हुए, ‘‘स्थानीय निवासियों द्वारा व्यक्त की गई आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’’

अदालत ने कहा, ‘‘केवल एक घटना के आधार पर अदालत यह नहीं कह सकती कि भेदभाव हुआ। हालांकि किसी भी सार्वजनिक कब्रिस्तान में हर एक इंसान के नश्वर शरीर को बिना किसी भेदभाव के दफनाने की अनुमति होनी चाहिए।’’

अदालत ने कहा कि विभिन्न वैधानिक प्रावधानों के अनुसार सरकार सार्वजनिक कब्रिस्तान और श्मशान के अलावा समुदायों के आधार पर दफनाने की अनुमति दे सकती है और लाइसेंस जारी करके इसकी अनुमति दी गई है।

अदालत ने साथ ही विधायिका से ‘‘ इस पर विचार करने को कहा कि क्या समुदायों के आधार पर कब्रिस्तान या श्मशान के लिए अलग-अलग लाइसेंस जारी करते रहने की कोई जरूरत है और क्या इस तरह की कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करती है।’’

अदालत ने कहा, ‘‘ विधानपालिका और कार्यपालिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत न केवल एक जीवित व्यक्ति के लिए, बल्कि एक व्यक्ति के नश्वर शरीर के लिए भी उचित सम्मान तथा व्यवहार के अधिकार को बनाए रखने दें।’’

No related posts found.