जॉर्ज फर्नांडिस: जॉर्ज पंचम पर पड़ा था नाम..जानिए..पूर्व रक्षा मंत्री और श्रमिक नेता की दिलचस्प कहानी...

डीएन ब्यूरो

पूर्व रक्षा मंत्री, समाजवादी नेता और श्रमिकों के मसीहा रहे जॉर्ज फर्नांडिस का आज दिल्ली के मैक्स अस्पताल में निधन हो गया। उन्होंने 88 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। डाइनामाइट न्यूज़ उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी ज़िंदगी के कुछ बेहतरीन लम्हों को याद कर रहा है...

पूर्व रक्षा मंत्री एवं श्रमिक नेता जॉर्ज फर्नांडिस
पूर्व रक्षा मंत्री एवं श्रमिक नेता जॉर्ज फर्नांडिस


नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस एक कुशल राजनीतिज्ञ, समाजवादी नेता तथा श्रमिकों के मसीहा थे। आज 88 बरस की उम्र में उनका निधन हो गया। वे लंबे अरसे से बीमार चल रहे थे। दिल्ली के मैक्स अस्पताल में उनका इलाज चल रह था। वहीं उन्होंने आखिरी सांस ली। फर्नांडिस अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रक्षा मंत्री थे। उन्हीं के समय में करगिल युद्ध हुआ और भारत ने पोकरण में परमाणु परीक्षण भी किया। 

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एक कैथोलिक परिवार में हुआ था जन्म
जॉर्ज फरनांडिस का जन्म मंगलोर में 3 जून 1930 को एक कैथोलिक परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम जॉर्ज मैथ्यू फर्नांडिस था। राजनीति में आने से पूर्व वे एक पत्रकार थे। उन्होंने समता पार्टी की स्थापना की थी।

पूर्व रक्षा मंत्री के नाम के पीछे की दिलचस्प कहानी
जॉर्ज फर्नांडिस अपने 6 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उनके नाम के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। दरअसल फर्नांडिस की मां किंग जॉर्ज-V की प्रशंसक थीं इसलिए उन्होंने अपने पहले बेटे का नाम उनके नाम पर रखा। एक दिलचस्प बात यह भी है कि किंग जॉर्ज-V का जन्म भी तीन जून को हुआ था। 
अब मन में आएगा कि ये जॉर्ज-V कौन सा किंग है? किंग जॉर्ज-V या जॉर्ज पंचम प्रथम ब्रिटिश शासक थे, जो विंडसर राजघराने से संबंधित थे। वे यूनाइटेड किंगडम एवं अन्य राष्ट्रमंडल समूह के महाराजा थे। साथ ही भारत के सम्राट एवं स्वतंत्र आयरिश राज्य के राजा भी थे। जॉर्ज ने सन 1910 से प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान और उसके बाद 1936 में अपनी मृत्यु पर्यन्त राज किया था।
संसद में कभी अंग्रेजी में नहीं बोले
कहा जाता है कि जॉर्ज फर्नांडिस 10 भाषाओं के जानकार थें। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, तुलु, कोंकणी आदि भाषाओं का ज्ञान था। एक दिलचस्प बात यह है कि ईसाई परिवार में जन्मे फर्नांडिस, संसद में कभी अंग्रेजी में नहीं बोले। 
देश के कई मंत्रालय संभाले
हालांकि आज उन्हें पूर्व रक्षा मंत्री कहकर संबोधित किया जा रहा है लेकिन अपनी सक्रिय राजनीति में उन्होंने बहुत बेहतर कार्य किया और केंद्रीय सरकार में रहते हुए कई मंत्रालय संभाले। 
उन्होंने साल 1967 से 2004 तक 9 लोकसभा चुनाव जीते और इस दौरान उन्होंने कई बड़े मंत्रालय भी संभाले, जिसमें रक्षा मंत्रालय समेत संचार, उद्योग और रेलवे मंत्रालय के नाम शामिल हैं। 'अनथक विद्रोही' के नाम से मशहूर जॉर्ज फर्नांडिस के निर्देशन में कई बड़ी हड़ताल और विरोध प्रदर्शन हुए,  जिसमें 1974 में की गई देशव्यापी रेल हड़ताल अहम है।

इमरजेंसी के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए बन गए थे मशहूर लेखक “खुशवंत सिंह”
जॉर्ज फरनांडिस उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने खुलकर आपातकाल का विरोध किया था। प्रभात खबर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी से बाचने के लिए उन्होंने पगड़ी पहनकर और दाढ़ी बढ़ाकर एक सिख का भेष धारण कर लिया था। हालांकि बाद में उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया था। उस दौरान तिहाड़ जेल में रहते हुए वे कैदियों को गीता के श्लोक सुनाया करते थे। उनके साथ जेल में रहे विजय नारायण के अनुसार, “पुलिस हमें ढूंढ रही थी। हम ना सिर्फ छिप रहे थे, बल्कि अपना काम भी कर रहे थे। गिरफ्तारी से बचने के लिए जॉर्ज ने पगड़ी और दाढ़ी के साथ एक सिख का भेष धारण किया था। उन्होंने बाल बढ़ा लिये थे। वह मशहूर लेखक के नाम पर खुद को ‘खुशवंत सिंह' कहा करते।” खुशवंत सिंह अंग्रेजी के मशहूर लेखक हैं।

डायनामाइट मामले में चला था मुकदमा

फर्नांडिस के साथ नारायण और अन्य लोगों को 10 जून, 1976 को कोलकाता में गिरफ्तार किया गया था। कुख्यात बड़ौदा डायनामाइट मामले में उन पर मुकदमा चलाया गया था। उन पर सरकार का तख्तापलट करने के लिए सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का भी मुकदमा चलाया गया था। विजय नारायण इस पूरे मामले के बारे में बताते हुए कहते हैं..

‘‘सेंट पॉल्स चर्च में जार्ज के पास एक टाइपराइटर, एक साइक्लोस्टाइल मशीन थी। वह इसी से पत्र लिखते थे, जिसे मैं विभिन्न स्टेशनों पर रेलवे मेल सर्विस के काउंटरों पर डालने जाया करता था। मैंने पुलिस से बचने के लिए एक बनारसी मुस्लिम बुनकर का वेश धारण किया था। हम भले ही छिप रहे थे, लेकिन निष्क्रिय नहीं थे। जार्ज को 10 जून की रात को भारतीय वायुसेना के एक कार्गो विमान में दिल्ली ले जाया गया, मुझे पुलिस हिरासत में रखा गया और करीब एक पखवाड़े तक कोलकाता में पुलिस के खुफिया ब्यूरो द्वारा मुझसे पूछताछ की गयी। बाद में हम सभी को दिल्ली के तिहाड़ जेल में डाल दिया गया और मुकदमा तीस हजारी कोर्ट में चला.."
   


 










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